Move to Jagran APP

दुनिया में भारतीय संस्कृति का फैला रहे उजियारा

आजमगढ़ नौकरी के दौरान न्यायालयों में पीड़ितों की तरफ झुक कर न्याय दिलाने वाले पूर्व स्पेशल जूडिशियल मजिस्ट्रेट डा. केएन श्रीवास्तव 75 वर्ष की उम्र में भी हार नहीं मानी है। अब वह दुनियां में भारतीय संस्कृति के ताना-बाना व उजियारा को फैला रहे हैं। यही वजह है कि रिटायर्ड होने के 15 साल बाद अब तक हालैंड बेल्जियम फ्रांस इटली यूरोप इंग्लैंड स्वीटजरलैंड आस्ट्रिया सहित एक दर्जन देशों की यात्रा कर चुके हैं और भारतीय संस्कृति का पैगाम लेकर संदेश दे रहे हैं।

By JagranEdited By: Published: Tue, 19 Mar 2019 08:15 PM (IST)Updated: Wed, 20 Mar 2019 12:07 AM (IST)
दुनिया में भारतीय संस्कृति का फैला रहे उजियारा

जागरण संवाददाता, आजमगढ़ : नौकरी के दौरान न्यायालयों में पीड़ितों की तरफ झुककर न्याय दिलाने वाले पूर्व स्पेशल ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट डा. केएन श्रीवास्तव 75 वर्ष की उम्र में भी हार नहीं मानी है। अब वह दुनिया में भारतीय संस्कृति का ताना-बाना व उजियारा को फैला रहे हैं। यही वजह है कि रिटायर्ड होने के 15 साल बाद अब तक हालैंड, बेल्जियम, फ्रांस, इटली, यूरोप, इंग्लैंड, स्विट्जरलैंड, ऑस्ट्रिया सहित एक दर्जन देशों की यात्रा कर चुके हैं और भारतीय संस्कृति का पैगाम दे रहे हैं। पिछले वर्ष वह अंडमान निकोबार गए और वहां भी लोगों को संदेश दिया। अब भविष्य में भी कई देशों की यात्रा वह करने वाले हैं। वह मूल रूप से शहर के अराजीबाग मोहल्ले के निवासी हैं तथा इंटरनेशनल गुडविल सोसाइटी के पूर्व सदस्य भी हैं। इस गुडविल सोसाइटी के अध्यक्ष पूर्व मंडलायुक्त आरके भटनागर हैं।

loksabha election banner

डा. केएन श्रीवास्तव क्षेत्रीय सेवायोजन अधिकारी के रूप में गोरखपुर से वर्ष 2004 में रिटायर्ड हुए। इसके बाद वह विशेष न्यायिक मजिस्ट्रेट आजमगढ़ नियुक्त हो गए। यहां से भी वह कार्यमुक्त हो गए। उन्होंने हाईकोर्ट इलाहाबाद में दो साल तक वकालत भी की। वर्तमान में भी वह मंडलायुक्त आजमगढ़ के न्यायालय में वकालत करते हैं। डा. श्रीवास्तव का कहना है कि नौकरी के दौरान व्यस्त रहने की वजह से वह लोगों की सेवा करते रहे, लेकिन रिटायर्ड होने के बाद उनमें कुछ और करने का जज्बा जागा। पहले भी उनका साहित्य से बड़ा लगाव था और किताब पढ़ने में रुचि रखते हैं। सेवानिवृत्ति के बाद वह अवसर आ गया जो काफी दिनों से उनके दिमाग में था। वह अपने आवास पर कुछ किताबों को लिखना शुरू किए। वह भारतीय संस्कृति को देश-विदेश में फैलाना चाह रहे थे, लेकिन उन्हें मजबूत आधार नहीं मिल रहा था। इस बीच वह इंटरनेशनल गुडविल सोसाइटी से जुड़ गए और उनको सदस्य बना दिया गया। फिर क्या था, उन्हें पहली बार वर्ष 2012 में इंग्लैंड में लेक्चर देने का मौका मिला। वहां उन्होंने भारतीय संस्कृति पर ओत-प्रोत कर देने वाला भाषण दिया। अभी वर्ष 2018 में वह अंडमान निकोमान की यात्रा की और यहां भारतीय संस्कृति व मिसाल पर वक्तव्य दिए। दर्जनों पुस्तकों का कर चुके हैं प्रकाशन

डा. श्रीवास्तव अब तक दर्जनों पुस्तकों का प्रकाशन करवा चुके हैं। उनकी पहली पुस्तक हिमालय दर्शन में पूरी तरह से हिमालय के यथार्थ पर लिखी गई है। अध्यात्म व साहित्य से लबरेज यह पुस्तक है। इसके अलावा घोसले के तिनके व विजेता बनो पुस्तक काफी चर्चा में रही। मेरी यूरोप यात्रा, भारत के उत्थान व पतन की कहानी, वकालतनामा, परमात्मा की खोज पुस्तकों में भारतीय संस्कृति की जहां झलक दिखती है, वहीं एक देशवासी के लिए न्याय कैसे मिलता है, यह प्रस्तावना में है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.