मधुमक्खी पालन से किसानों की बढ़ेगी आमदनी
आजमगढ़ : मधुमक्खी पालन कृषि से ही जुड़ा व्यवसाय है। इसमें कम लागत और अधिक मुनाफा है। कृषि
आजमगढ़ : मधुमक्खी पालन कृषि से ही जुड़ा व्यवसाय है। इसमें कम लागत और अधिक मुनाफा है। कृषि से जुड़े लोग या फिर बेरोजगार युवक इस व्यवसाय को आसानी से अपना सकते हैं। लघु सीमांत किसानों के लिए मधुमक्खी पालन (मौन पालन) लघु उद्योग के रूप में है। लघु सीमांत किसानों के लिए शासन ने इस बाबत पहल शुरू कर दी है। कक्षा आठ पास किसानों को मधुमक्खी पालन के लिए 90 दिन का प्रशिक्षण देकर रोजगारपरक बनाने का फैसला लिया है। इसके तहत जनपद के किसानों को बस्ती में 16 सितंबर से प्रशिक्षण दिया जाएगा। प्रशिक्षण के बाद किसान खेती के साथ ही मधुमक्खी पालन शुरू कर देंगे। इससे न सिर्फ उन्हें रोजगार मिलेगा, बल्कि वे आत्मनिर्भर बनकर जीवन खुशहाल भी बना सकते हैं। उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग द्वारा मधुमक्खी पालन प्रशिक्षण केंद्रों पर दीर्घकालीन मधुमक्खी पालन प्रशिक्षण की व्यवस्था की गई है। मौन विशेषज्ञ राघवेंद्र यादव ने बताया कि इस कार्यक्रम के अंतर्गत तीन माह का प्रशिक्षण सत्र 16 सितंबर से 15 दिसंबर तक जनपद के बस्ती में शुरू हो रहा है। यह प्रशिक्षण निश्शुल्क रहेगा लेकिन प्रशिक्षार्थियों को रहने व खाने की व्यवस्था खुद करनी होगी। इस प्रशिक्षण में किसी भी आयु वर्ग के पुरुष व महिलाएं भाग ले सकेंगी। प्रशिक्षण में भाग लेने के लिए न्यूनतम शैक्षिक योग्यता कक्षा आठ रखी गई है। इसके लिए अभ्यर्थी संयुक्त निदेशक औद्यानिक प्रयोग एवं प्रशिक्षण केंद्र बस्ती में आवेदन कर सकते हैं। रानी मधुमक्खी पालन के लिए उपयुक्त
इस व्यवसाय के लिए चार तरह की मधुमक्खियां इस्तेमाल होती हैं। ये हैं एपिस मेलीफेरा, एपिस इंडिका, एपिस डोरसाला और एपिस फ्लोरिया। इस व्यवसाय के लिए एपिस मेलीफेरा मक्खियां ही अधिक शहद उत्पादन करने वाली और स्वभाव की शांत होती हैं। इन्हें डिब्बों में आसानी से पाला जा सकता है। इस प्रजाति की रानी मक्खी में अंडे देने की क्षमता भी अधिक होती है। ऐसे बनाती हैं मोम
शहद के बाद दूसरा मूल्यवान तथा उपयोगी पदार्थ, जो मधुमक्खियों से मिलता है, वह मोम है। इसी से वे अपने छत्ते बनाती हैं। मोम बनाने के लिए मधुमक्खियां पहले शहद खाती हैं, फिर उससे गर्मी पैदाकर अपनी ग्रंथियों द्वारा छोटे-छोटे मोम के टुकड़े बाहर निकालती हैं। मधुमक्खियों के शत्रु : मोमी कीड़ा, ड्रैगन फ्लाई, मकड़ी, गिरगिट, बंदर, भालू। ये होता है प्रयोग : मधुमक्खी पालन के लिए लकड़ी का बॉक्स, बॉक्सफ्रेम, मुंह पर ढकने के लिए जालीदार कवर, दस्ताने, चाकू, शहद, रीमू¨वग मशीन, शहद इकट्ठा करने के लिए ड्रम। सावधानी : जहां मधुमक्खियां पाली जाएं, उसके आस-पास की जमीन साफ-सुथरी होनी चाहिए। बड़े चींटे, मोमभक्षी कीड़े, छिपकली, चूहे, गिरगिट तथा भालू से बचाव के पूरे इंतजाम होने चाहिए। उपयुक्त समय : मधुमक्खी पालन के लिए जनवरी से मार्च का समय सबसे उपयुक्त है, लेकिन नवंबर से फरवरी का समय तो इस व्यवसाय के लिए वरदान है। 50 डिब्बे वाली इकाई पर करीब दो लाख रुपये तक का खर्च आता है। ''मौन पालन के इच्छुक अभ्यर्थी 16 सितंबर तक किसी भी कार्यदिवस में आवेदन कर सकते हैं। सभी अभ्यर्थियों के आवेदन को एकत्र कर चयनित किया जाएगा। चयनित किसानों को विभाग अपने वाहन से प्रशिक्षण स्थल तक पहुंचाएगा और सहयोग भी करेगा।''
-बालकृष्ण वर्मा, जिला उद्यान अधिकारी।