अनीता का हुनर बना हथियार, पांच सौ महिलाएं आत्मनिर्भर
राकेश श्रीवास्तव आजमगढ़ मैं अकेला चला था जानिए-ए-गालिब मगर लोग साथ आते गए और कारंवा बन
राकेश श्रीवास्तव, आजमगढ़ : मैं अकेला चला था जानिए-ए-गालिब, मगर लोग साथ आते गए और कारंवा बनता गया..। आजमगढ़ में जन्मे मजरूह सुल्तानपुरी का शेर मेजवां की रहने वाली अनीता पर सटीक बैठता है। इस गृहिणी ने आत्मनिर्भर बनने को एक बैंक की ट्रेनिग में जाने की इच्छा जताई तो स्वजन नाराज हुए, लेकिन उनके इरादे कमजोर नहीं पड़े। ट्रेनिग पूरी हुई तो अनीता ने हुनर को आत्मनिर्भरता का हथियार बनाया। समूह बनाकर अगरबत्ती का कारोबार शुरू किया। लिहाजा, खुशियों की सुगंध नौ परिवारों में फैलने लगी। अनीता का कारवां अपने नाम के अर्थ मुताबिक आगे बढ़ा तो उनके जुनून को सिने तारिका शबाना आजमी भी सराहना करने से नहीं रोक सकीं। इस पर उत्साह ऐसा बढ़ा कि पांच सौ महिलाओं के जीवन में अपने ज्ञान की रोशनी फैला डालीं।
राष्ट्रीय आजीविका मिशन ने बनाया ट्रेनर
वर्ष 2010 से शुरू अनीता की मुहिम रंग लाने लगी है। वह महक इंडिया स्वयं सहायता समूह चलातीं हैं। उनके जुनून को देख राष्ट्रीय आजीविका मिशन (फूलपुर) ने उन्हें अपना ट्रेनर बना लिया। वह दिल्ली समेत कई जगहों पर आजीविका मिशन के तहत ट्रेनिग देने जातीं हैं। यह गुर मेजवां के कस्तूरबा गांधी व पूर्व माध्यमिक विद्यालय की लड़कियों को भी सिखा चुकीं हैं। वाराणसी व दिल्ली से पहुंचता कच्चा माल
अगरबत्ती बनाने का काम शुरू में छोटे स्तर पर था। आजमगढ़ या पास-पड़ोस के बाजार से भी कच्चा माल मंगाकर काम चलता था। धीरे-धीरे मांग बढ़ने व प्रतिस्पर्धा के कारण अब कच्चा माल दिल्ली व वाराणसी से मंगाना पड़ता है। महिलाएं रोजाना घरेलू काम निबटाने के बाद दो किलो कच्चे माल से अगरबत्ती बना लेतीं हैं। इससे उनको औसतन डेढ़ से दो सौ रुपये की आय होती है। 'पड़ोस के घनश्याम प्रजापति ने अगरबत्ती बनाने का सुझाव दिया था। पति दिल्ली रहते हैं। यहां रहकर बेटा और बेटी को पढ़ा रही हूं। खर्च प्रबंधन के लिए आत्मनिर्भर बनने की सोची तो हिस्से में उपहास ही आया, लेकिन मैं अडिग रही, अब दूसरे लोग मुझसे सलाह लेने आते हैं।'
-अनीता प्रजापति