Move to Jagran APP

पौधों से नाता जोड़ा तो मिला परिवार की खुशियों का संसार

आजमगढ़ जन्म लिया तो धरती पर बड़े हुए तो धरती से नाता की कीमत समझ में आई। घर पर मौसमी खेती तो होती थी लेकिन उससे संतोष नहीं मिला क्योंकि तब धरती से लेते तो थे मगर लौटाने के नाम पर कुछ नहीं। पिता शिवनाथ सिंह थोड़ा-बहुत पौध लगाते थे जिसे देखकर मन में आया कि पौधों की नर्सरी लगाई जाए। उससे दो तरह के फायदे होंगे। एक ओर रोपण के लिए पौधों की कमी नहीं होगी और दूसरी ओर कुछ आमदनी भी हो जाएगी। इसी सोच के साथ वर्ष 1994 में अजतमगढ़ ब्लाक के कोटा गांव निवासी एमएससी (कृषि) पास वंशगोपाल सिंह ने गांव में ही 10 बिस्वा में विभिन्न प्रजाति की नर्सरी तैयार की तो 37 हजार पौधों की बिक्री से लगभग एक लाख प्राप्त हुआ। उसके बाद तो हरियाली की राह पर उनके कदम बढ़ते गए और आज गांव से हटकर शहर से सटे हाफिजपुर में 22 बीघा जमीन लीज पर लेकर नर्सरी का कारोबार कर रहे हैं। उनकी शिक्षा भी इस व्यवसाय में सहायक बन रही है। --------

By JagranEdited By: Published: Mon, 06 Jul 2020 07:01 PM (IST)Updated: Mon, 06 Jul 2020 07:01 PM (IST)
पौधों से नाता जोड़ा तो मिला परिवार की खुशियों का संसार
पौधों से नाता जोड़ा तो मिला परिवार की खुशियों का संसार

शक्ति शरण पंत, आजमगढ़ : जन्म लिया तो धरती पर, बड़े हुए तो धरती से नाता की कीमत समझ में आई। घर पर मौसमी खेती तो होती थी लेकिन उससे संतोष नहीं मिला, क्योंकि तब धरती से लेते तो थे मगर लौटाने के नाम पर कुछ नहीं। पिता शिवनाथ सिंह थोडे़-बहुत पौधे लगाते थे, जिसे देखकर मन में आया कि पौधों की नर्सरी लगाई जाए। उससे दो तरह के फायदे होंगे। एक ओर रोपण के लिए पौधों की कमी नहीं होगी और दूसरी ओर कुछ आमदनी भी हो जाएगी।

loksabha election banner

इसी सोच के साथ वर्ष 1994 में अजतमगढ़ ब्लाक के कोटा गांव निवासी एमएससी (कृषि) पास वंशगोपाल सिंह ने गांव में ही 10 बिस्वा में विभिन्न प्रजाति की नर्सरी तैयार की तो 37 हजार पौधों की बिक्री से लगभग एक लाख प्राप्त हुआ। उसके बाद तो हरियाली की राह पर उनके कदम बढ़ते गए और आज गांव से हटकर शहर से सटे हाफिजपुर में 22 बीघा जमीन लीज पर लेकर नर्सरी का कारोबार कर रहे हैं। उनकी शिक्षा भी इस व्यवसाय में सहायक बन रही है।

--------

खुद के 60 फीसद, बाकी गैर प्रांतों से मंगाते पौधे

आजमगढ़ : जय भारत नर्सरी के संचालक वंश बहादुर सिंह के अनुसार नर्सरी में 60 फीसद पौधे खुद तैयार करते हैं, जबकि बाकी पौधे आंध्र प्रदेश, पूना व कोलकाता आदि से मंगाते हैं। इसका लाभ यह मिलता है कि यहां आने वालों को सभी प्रकार के पौधे एक ही स्थान पर मिल जाते हैं। पांच रुपये से लेकर 15 हजार तक के पौधे की मांग बनी रहती है। पिछले साल बारिश देर से होने के कारण मांग कुछ कम थी लेकिन इस बार समय पूर्व बारिश से डिमांड बढ़ गई है।

-------

लीची से लेकर संतरा तक के पौधे

आजमगढ़ : नर्सरी में लीची, मोसम्मी, सेव, संतरा, आम, अमरूद, आंवला, बेल, अनार, नींबू, चीकू, नाशपाती, अंजीर, सहतूत समेत लगभग सभी फलदार पौधे हैं लेकिन आम और अमरूद की मांग अधिक है। बाकी लीची, संतरा आदि लोग दरवाजे की शोभा बढ़ाने के लिए खरीदते हैं, जिनकी संख्या कम है।

---------

फोटो-20--खुद के साथ 75 परिवार भी खुशहाल

आजमगढ़ : नर्सरी संचालक वंशगोपाल सिंह कहते हैं कि नर्सरी के कारोबार से जहां परिवार की खुशियों का संसार मिल गया वहीं 25 महिला और 50 पुरुषों का भी परिवार खुशहाल रहता है। इसमें 32 कर्मचारी परमानेंट हैं तो बाकी को भी बारहों महीने गार्डेन निर्माण का काम दिलाते हैं। कहते हैं कि पूरा भारत खुशहाल हो, इस कामना के साथ नाम भी जय भारत नर्सरी रख दिया। सपना भी सच साबित हो रहा, क्योंकि पूर्वांचल के जनपदों के साथ बिहार तक हमारी नर्सरी के पौधों की मांग है। शायद ही कोई ऐसी प्रजाति होगी जो यहां न हो। सजावटी से लेकर फलदार व सभी प्रकार के फूल और सब्जी के पौधे लेने के लिए दूर-दराज से भी लोग आते रहते हैं।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.