पालीथिन से जंग में दी कुर्बानी पर हार नहीं मानी
पर्यावरण से इतना प्रेम की उसकी सुरक्षा के लिए अपने व्यवसाय की कुर्बानी दे दी परिवार और मित्रों ने बहुत समझाया लेकिन पालीथिन से समझौता नहीं किया। बात हो रही है शहर के कुंदीगढ़ मोहल्ला निवासी हरिकेश विक्रम श्रीवास्तव की। लगभग ढाई दशक पहले वर्ष 1994 में उन्होंने अपने मकान में ही प्रोविजन स्टोर खोला और
शक्ति शरण पंत
आजमगढ़ : पर्यावरण से इतना प्रेम की उसकी सुरक्षा के लिए अपने व्यवसाय की कुर्बानी दे दी, परिवार और मित्रों ने बहुत समझाया लेकिन पालीथिन से समझौता नहीं किया। बात हो रही है शहर के कुंदीगढ़ मोहल्ला निवासी हरिकेश विक्रम श्रीवास्तव की।
लगभग ढाई दशक पहले वर्ष 1994 में उन्होंने अपने मकान में ही प्रोविजन स्टोर खोला और उनके व्यवहार के कारण दुकान भी चलने लगी। व्यवसाय ठीक से चला तो गांव में आटा चक्की भी खोल ली। घर का आटा हर किसी को पसंद आने लगा तो अन्य दुकानदार भी खरीदने लगे। यानी खुद के साथ आटा चक्की से दूसरों को भी रोजगार मिलने लगा।
इस बीच जरूरत महसूस हुई तो उन्होंने नलकूप लगाने के लिए अपने गांव महराजगंज में बोरिग शुरू कराई लेकिन कई स्थानों पर खोदाई के बाद भी पानी ही नहीं निकला। उन्होंने अधिकारियों से संपर्क करके समस्या बताई तो बताया गया कि पालीथिन के बढ़ते प्रयोग के कारण यह स्थिति आई है।
वहीं से उनका माथ ठनका और फिर क्या था, उन्होंने अपने सभी ग्राहकों से कह दिया कि अब पालीथिन में सामान नहीं देंगे। ग्राहकों की सुविधा के लिए उन्होंने कपड़े का झोला भी वितरित किया लेकिन तमाम ग्राहक बिना झोला के सामान लेने पहुंच जाते थे। उन्होंने दोबारा प्रयास किया और फिर सौ झोला बनवाकर ग्राहकों को इस अनुरोध के साथ दिया कि अब झोला लेकर जरूर आएंगे लेकिन लोगों की आदत में शुमार हो चुके पालीथिन के कारण ग्राहक फिर बिना झोला के आने लगे।
पालीथिन में सामान न मिलने पर दूसरी दुकान से सामान खरीदने लगे। धीरे-धीरे ग्राहकों की संख्या कम होने लगी लेकिन उन्होंने पालीथिन से समझौता नहीं किया और एक दिन ऐसा भी आया कि दुकान में ताला लग गया। तब तक वर्ष 1997-98 में विधि की पढ़ाई पूरी हो गई तो उन्होंने व्यापार छोड़ प्रैक्टिस शुरू कर दी।