नजरें तलाशेंगी जरूरतमंदों को, कुम्हारों के बहुरेंगे दिन
व्रत मंगलवार को है। इस दिन लोग कन्याओं मान्यों और असंपन्नों को दान देते हैं। कोरोना संकट काल में व्रतियों व श्रद्धालुओं के एक कदम से उनके चेहरे खिल सकते हैं जो वास्तव में जरूरतमंद हैं। सड़क किनारे बैठे बेसहारा काम धंधा बंद होने के बाद तंग हाथों के चलते सुराही खरीदने से अक्षम लोग और दूसरों को फल आदि खाते देख बेबस निगाहों से ताकने वाले गरीबों के बच्चों के चेहरों पर आपका दान मुस्कान का जरिया बन सकता है। वास्तविक दान भी वही कहा जाता है जो पात्र तक पहुंचे और उसके मन का संतोष आपकी शांति का वाहक बन सकता है।
जागरण संवाददाता, उरई : ग्रीष्म ऋतु के आगमन का संदेश देने वाला निर्जला एकादशी व्रत मंगलवार को है। इस दिन लोग कन्याओं, मान्यों और असंपन्नों को दान देते हैं। कोरोना संकट काल में व्रतियों व श्रद्धालुओं के एक कदम से उनके चेहरे खिल सकते हैं, जो वास्तव में जरूरतमंद हैं। सड़क किनारे बैठे बेसहारा, काम धंधा बंद होने के बाद तंग हाथों के चलते सुराही खरीदने से अक्षम लोग और दूसरों को फल आदि खाते देख बेबस निगाहों से ताकने वाले गरीबों के बच्चों के चेहरों पर आपका दान मुस्कान का जरिया बन सकता है। वास्तविक दान भी वही कहा जाता है जो पात्र तक पहुंचे और उसके मन का संतोष आपकी शांति का वाहक बन सकता है।
निर्जला एकादशी का महत्व पद्म पुराण में बताया गया है। निर्जला एकादशी का व्रत ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को किया जाता है। विद्वान आचार्य व पंडितों का कहना है कि निर्जला एकादशी का व्रत करके श्रद्धा और सामर्थ्य के अनुसार दान करना चाहिए।
पाठकपुरा निवासी मुन्नी देवी कहती हैं कि महिलाएं यह व्रत उद्धार के लिए रहती हैं। इस बार दान-दक्षिणा दी जाएगी, लेकिन महामारी के दौर में संकट झेल रहे लोगों की मदद के लिए। कई महिलाओं को इसके लिए प्रेरित भी किया है। बहुत से ऐसे लोग हैं, जिनके यहां पानी ठंडा करने का कोई साधन नहीं है। अगर हम दान में ऐसे लोगों को सुराही या घड़ा दें तो वह असली दान होगा।
रामनगर में रहने वाली सुमन द्विवेदी कहती हैं कि असली दान तो उनको ही होना चाहिए, जो वास्तव में इसके हकदार हैं। गरीब परिवारों के बच्चों को फल देने से उनकी मुस्कान इसी जन्म को सार्थक कर देगी। उनके घर परिवार के लोग गरीबों के बीच ही दान की वस्तुएं देंगे।
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आचार्य अरविद कुमार पांडेय कहते हैं कि यह अक्षय स्वर्ग प्रदायिनी है। इसे भीमसेनी एकादशी भी कहते हैं। विधिपूर्वक जल कलश का दान करने वालों को पूरे साल की एकादशियों का फल मिलता है। कोशिश करें कि ऐसे व्यक्ति को दान किया जाए, जो उसकी जरूरत पूरी कर दे और वह दिन से आपको दुआ दें।
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यह चीजें दी जाती हैं दान में
- सुराही-घड़े, पंखे (नारियल व खजूर के पत्तों से बने), ठंडक पहुंचाने वाले फल जैसे खरबूजा, तरबूज और ककड़ी आदि।
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कुम्हारों के खिला सकते चेहरे
निर्जला एकादशी यानी बिना जल ग्रहण किए रखा जाने वाला व्रत। इस दिन बहुत से लोग पौशालाओं को भी स्थापित करते हैं। गर्मी में राहगीरों के हलक तर हो सकें, यह उद्देश्य रहता है। साधन संपन्न लोग इस दिशा में आगे बढ़ते हैं। ढड़ेश्वरी मंदिर के महंत सिद्ध रामदास महाराज कहते हैं कि लोग सुराही और घड़े का दान करें तो कुम्हारों के चेहरे भी खिल सकते हैं। लोगों के एक दान से न केवल जरूरतमंद बल्कि उनका भी रोजगार बढ़ेगा, जो पंखे व ऐसे सामान का निर्माण करते हैं।