खुले में शौच, गड्ढे और अधूरे इज्जतघर
संवाद सहयोगी, अजीतमल : ओडीएफ की भ्रष्टाचार से पूर्ण सूचनाओं की हकीकत जाननी हो तो अजीतमल
संवाद सहयोगी, अजीतमल :
ओडीएफ की भ्रष्टाचार से पूर्ण सूचनाओं की हकीकत जाननी हो तो अजीतमल ब्लाक के ग्राम पंचायत बड़ैरा में चले आइए। 211 लोगों को शौचालय बनवा कर गांव को पूर्ण रूप से ओडीएफ घोषित कर दिया गया। जिला स्तरीय व मंडलीय स्तर की टीम ने भी उसी सूचना के आधार पर शत प्रतिशत गांव को ओडीएफ बना दिया। पर हालत यह है कि कई शौचालयों में छत नहीं है, तो कई शौचालयों के सिर्फ गड्ढे ही खुद सके हैं। लोगों की मानें तो किसी को एक किस्त मिल गई। दूसरी किस्त की आस में छत व सीट नहीं रख पा रही है। तो किसी का नाम ही सूची में नहीं है। चुन-चुन कर अपने अपने अपनों को शौचालय देने का भ्रष्टाचार गांव में दिखाई पड़ रहा है। इससे गरीब तबके के लोग आज भी खेत, जंगल या कहीं खुले में शौच जाने को मजबूर हैं। रोजाना सुबह शाम खेतों में बोतल लेकर जाते दिखाई देते हैं। क्या कहते हैं ग्रामीण रामश्री - प्रधान ने इत्ती बनवाय दई। हमें तो एकऊ रुपया नई दयो। लेंटर डरो नई सो जैसी बनी तैसी न बनी। का फायदा। जयचन्द - गड्ढा खोद चुके हैं। पैसा मिला नहीं। कैसे बनवाएं शौचालय। गुड्डी - वोट नहीं दये, तो बताओ अब शौचालय कैसे दे दे। जा कहत हैं ग्राम प्रधान। रामदेवी - बीहड़ में सुबह ही निकल जाती है शौच के लिए। काहे की योजना सरकार की। जब गरीबन को नाहीं मिल रहो कोई लाभ। मनोज ू- न ही आवास मिला है। न ही शौचालय। पत्नी बच्चे सभी जंगलों में शौच को जाने को मजबूर हैं। बरसात का मौसम है। जहरीले कीड़ो का भी डर लगता है। ग्राम प्रधान व सचिव से कई बार गुहार लगा चुका हूं। कुछ सुनवाई नही हो रही है। चन्द्रिका - बुढ़ापे में कौन किसी की सुनता है। लड़कों ने अलग कर दिया है। हम पति पत्नी खुले में आज भी जंगल में जाने को मजबूर है। जब तक लड़का बहू की मर्जी है तो उनके शौचालय में चले जाते हैं। कबहूं ताला डाल देत है। तो जंगल में जाने पड़ता हैं। ये तो सिर्फ बानगी भर है। आलम तो यहां तक है कि बड़ैरा गांव में अरविन्द, वीरेन्द्र, छोटे, आताराम, ओमवीर, जयवीर, गंगा देवी, रेशम देवी, कैलाश, शैलेन्द्र, टिल्लू, पप्पू, आदि करीब दो दर्जन से अधिक लोग आज भी शौचालय की आस देख रहे हैं। इन घरों के लोग आज भी खेतों, जंगलों और बीहड़ की बरसात में उग आई लंबी लंबी घास में अपनी जान जोखिम में डालकर शौच जाने के लिए मजबूर हैं।
गरीबों को कब मिलेगी
छत, कब मिलेगा इज्जत घर
भूमिहीन बादशाह की पत्नी राममूर्ति हों या शेष ¨सह पुत्र जमादार हों, टूटे घर में पड़े जर्जर छप्पर में खुद को बरसात से बचने का प्रयास कर रहे हैं। राममूर्ति ने बताया कि शौचालय तो प्रधान ने बनवा दिया। लेकिन लेंटर नहीं पड़वाया। छप्पर कब गिर पड़े कुछ कहा नहीं जा सकता। वहीं सुरेन्द्र पाल पुत्र दिवोल के पास आवास भी नहीं है। शौचालय भी नहीं मिला। आंगनबाड़ी कार्यकर्ता भी बिना
आवास व बिना शौचालय के
बड़ैरा गांव की आंगनबाडी कार्यकत्री माण्डवी देवी का इटावा जनपद के बिनायकपुर में गांव में ससुराल है। वह बीते करीब 25 साल से गांव में ही रह रही है। गांव के आंगनबाड़ी केंद्र पर बतौर कार्यकर्ता तैनात है। लेकिन न तो उसे आवास ही मिला है न ही शौचालय। सूची गई थी। उसी के आधार पर ओडीएफ किया गया है। जो लोग शौचालय से रह गये, उनकी सूची तैयार कराई जा रही है। निर्धारित समय तक सभी पूर्ण कर दिये जाएंगे।-राम¨सह, ग्राम पंचायत अधिकारी।