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आडंबर के नहीं भगवान भाव के भूखे-आचार्य

संवादसूत्र रुरुगंज(औरैया) कस्बा के तिराहे स्थित बाबा ब्रह्मदेव मंदिर पर चल रही भागवत के दूसर

By JagranEdited By: Published: Mon, 08 Apr 2019 11:14 PM (IST)Updated: Tue, 09 Apr 2019 06:18 AM (IST)
आडंबर के नहीं भगवान भाव के भूखे-आचार्य
आडंबर के नहीं भगवान भाव के भूखे-आचार्य

संवादसूत्र, रुरुगंज(औरैया): कस्बा के तिराहे स्थित बाबा ब्रह्मदेव मंदिर पर चल रही भागवत के दूसरे दिन भागवताचार्य दीदी सुधा जी ने धुंधकारी की कथा का वर्णन किया। कहा कि संत का दिया हुआ प्रसाद का अपमान नहीं करना चाहिए। उन्होंने कहा कि भगवान को पूजा पाठ में आडंबर नही चाहिए वह तो सिर्फ भाव के भूखे होते है।

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आचार्य दीदी सुधा ने बताया कि दक्षिण भारत मे टुंगभद्र नदी के किनारे एक ब्राह्मण आत्मदेव रहते थे। आत्मदेव की पत्नी धुंधली अत्यंत रूपवती थी। पर उनके यहां कोई संतान नही होती थी, इस कारण दुखी मन से आत्मदेव अपने प्राण देने जंगल की ओर गए। जहां एक सन्यासी से उनकी मुलाकात हुई। सन्यासी ने आत्मदेव को देखकर जान लिया कि इसे सात जन्म तक कोई संतान न होगी। सन्यासी ने एक फल आत्मदेव को देते हुए कहा कि इसे अपनी पत्नी को खिला देना। पत्नी को फल देते हुए सारी बात बताई, तो पत्नी ने सोचा कि गर्भ धारण करते ही उसका सुंदर शरीर विकृत हो जाएगा। इस डर से उसने फल गाय को खिला दिया। इस दौरान आत्मदेव की पत्नी धुंधली की बहन ने एक पुत्र को जन्म दिया। जिसका नाम धुंधकारी रखा। बहन ने उसे धुंधली के पास ही भेज दिया। इसी बीच गाय ने भी एक बच्चे गौकर्ण को जन्म दिया। धुंधकारी बहुत ही दुष्ट व छली निकला। वह अपनी मा धुंधली के साथ मारपीट करता था। एक दिन उसने पिता आत्मदेव व माता धुंधली को भी मौत के घाट उतार दिया। धुंधकारी प्रेत योनि मे था तब गोकर्ण ने अपने तपोबल से मुक्ति दिलाई। भागवत कथा के दौरान रात में मां की भव्य झांकियां भी प्रस्तुत की जा रहीं है।


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