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लोगो-----मैंने गांधी को देखा है.. 'जो काते सो पहिने, जो पहिने सो काते'

जागरण संवाददाता, फतेहपुर : राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को देखने वाले आज भले ही हमारे बीच न ह

By JagranEdited By: Published: Sat, 29 Sep 2018 11:26 PM (IST)Updated: Sat, 29 Sep 2018 11:26 PM (IST)
लोगो-----मैंने गांधी को देखा है.. 'जो काते सो पहिने, जो पहिने सो काते'
लोगो-----मैंने गांधी को देखा है.. 'जो काते सो पहिने, जो पहिने सो काते'

जागरण संवाददाता, फतेहपुर : राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को देखने वाले आज भले ही हमारे बीच न हों लेकिन गांधी दर्शन पर अपना जीवन न्योछावर करने वाले विश्वनाथ प्रताप गुप्ता ने उनके साथ बिताए अनमोल पलों को 'बापू के बिखरे पुष्पों की सुगंध' किताब में सहेजा है। मैंने गांधी को देखा है का सच इस किताब में मिलता है। गांधी जी के संपर्क में आने के बाद उन्होंने खुद को गांधी दर्शन में समाहित कर लिया। वह खादी का कुर्ता, धोती व टोपी पहन कर घर में चरखा कातते थे। इतना ही नहीं खादी का प्रचार कर उन्होंने कई गांवों को साबरमती आश्रम जैसा बना दिया था। भिटौरा विकास खंड के मोहम्मदीपुर के विश्वनाथ प्रसाद वर्ष 1923 में नागपुर में हुए झंडा सत्याग्रह से गांधीजी से जुड़े तो उनके ही होकर रह गए। किताब में उनके द्वारा सहेजी यादें उन्हीं की जुबानी में कुछ इस तरह हैं..। भूखे लोगों को खिलाएं

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बात 1926 की है गांधी जी अहमदाबाद से कर्नाटक होते हुए वरार (अकोला) रेलवे स्टेशन पर रुके। स्वागत के मौजूद भीड़ के बीच मैं भी मौजूद था। बापू सभी को शांत रहने के लिए कह रहे थे। तभी एक व्यक्ति उनको बोतल में पानी व कपड़े में बंधा खाना देने लगा तो वह बोले मुझे इस समय भूख नहीं है, खिलाना है तो देश के लाखों नंगे व भूखे लोगों को खिलाएं। जाओ गांव-गांव में खादी के कपड़े पहनाओ

छह फरवरी 1927 को अकोला में मुझे उनसे मिलने का मौका मिला। सुबह पांच बजे की गाड़ी पकड़ने के लिए बापू चार बजे ही उठकर स्टेशन के लिए पैदल निकल पड़े, मैं भी साथ में था। मौका मिलते ही कहा कि बापू मेरे गांव व जिले में काफी खादी तैयार होती है। उन्होंने मेरी तरफ देखते हुए कहा कि जो काते सो पहिने, जो पहिने सो काते, जाओ गांव-गांव में खादी के कपड़े पहनाओ। मानव का फर्ज है सफाई करना

अहमदाबाद में वर्ष 1928 में गांधी जी ने सफाई पर कहा था कि प्रत्येक मानव का फर्ज है कि वह मन की सफाई, तन की सफाई, वस्त्र की सफाई, घर की सफाई, गांव की गलियों व खाद्यान्न की सफाई खुद करें।

सूत से तिरंगा झंडा बनवाएं

फतेहपुर के रामलीला मैदान ज्वालागंज में वर्ष 1929 को आए बापू के स्वागत में मुझे खड़ा किया गया तो खादी प्रेमियों की तरफ से काता हुआ सूत भेंट किया। एक हाथ से लिया तो दूसरे से वापस करते हुए कहा कि इस सूत से तिरंगा झंडा बनवाएं।


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