झाड़ू से राजरानी चमका रहीं स्वावलंबन की डगर, गांव की अनेक महिलाओं को मुहैया कराया रोजगार
कहानी उत्तर प्रदेश के गांव बहादुर इंगुठिया की राजरानी के हौसले की, स्वयं सहायता समूह बना शुरू किया झाड़ू बनाने का काम
औरैया [सुबोध दुबे]। उत्तर प्रदेश के औरैया जिले का गांव बहादुर इंगुठिया आज इस क्षेत्र में झाड़ू उत्पादन के लिए ख्याति पा रहा है। इसका श्रेय गांव की एक साधारण महिला राजरानी को जाता है, जिन्होंने स्वयं सहायता समूह के जरिये झाड़ू बनाने का कार्य शुरू कर न केवल खुद को बल्कि गांव की अनेक महिलाओं को रोजगार मुहैया करा दिया है। आज उनकी बनाई झाड़ू जनपद के कई कस्बों में सप्लाई हो रही है। हाल में औरैया विकास खंड के साथ झाड़ू देने का अनुबंध भी हो गया है। उनसे अब और महिलाएं जुड़कर जिंदगी को नई दिशा दे रही हैं। इन महिलाओं की स्वस्थ सोच और प्रयास का नतीजा है कि झाड़ू बनाने के काम को अब समाज में प्रतिष्ठा हासिल हो चली है।
हौसला बुलंद और नीयत साफ हो तो रास्ते खुद व खुद बन जाते हैं। ऐसा ही राजरानी के साथ हुआ। उन्होंने फरवरी 2016 में गांव की दस महिलाओं के साथ स्वयं सहायता समूह बनाया, घरेलू उत्पाद के लिए 50 हजार रुपये का लोन भी मिल गया, लेकिन बेहतर आइडिया अब भी उनके पास नहीं था। तभी उनका ध्यान प्रधानमंत्री के ‘स्वच्छ भारत स्वस्थ भारत’ अभियान की ओर गया तो आइडिया मिल गया। झाड़ू बनाने की योजना बनाई गई।
महिला एवं बाल विकास समिति की सचिव रीना पांडेय ने इसमें सहयोग किया। उनकी मदद से कानपुर से झाड़ू बनाने का कच्चा माल आने लगा। घर पर ही राजरानी ने झाड़ू बनाने का काम शुरू कर दिया। बनी हुई झाड़ू की सप्लाई उनके पति सुघर सिंह आसपास के कस्बों में करने लगे।
आमदनी और मांग बढ़ने पर उन्होंने समूह में महिलाओं की संख्या बढ़ा दी और उन्हें प्रति झाडू़ के हिसाब से भुगतान करने लगीं। झाडू़ सस्ती और अच्छी होने से अब लोग खुद पहुंचकर खरीदने लगे हैं। इसकी चर्चा अधिकारियों के बीच पहुंची तो औरैया विकास खंड के बीडीओ ने उनसे झाड़ू सप्लाई करने का अनुबंध कर लिया।
राजरानी के बांके बिहारी स्वयं सहायता समूह से गांव की अन्य महिलाएं भी प्रभावित हैं। पति के साथ खेतों में काम करके परिवार चलाने वाली अधिकतर महिलाएं भी अब झाड़ू बनाने में रुचि ले रही हैं। वह राजरानी से कच्चा माल तौल कर ले जाती हैं और झाड़ू बनाकर उनके घर दे जाती हैं, इसका उन्हें मेहनताना मिल जाता है।
इससे आर्डर मिलने पर राजरानी को उसे जल्द पूरा करने में दिक्कत नहीं आती है। वहीं गांव की महिलाओं की भी आमदनी बढ़ गई है। राजरानी बताती हैं कि वह प्रति माह डेढ़ से दो हजार झाड़ू सप्लाई कर देती हैं। एक झाड़ू पर करीब चार से पांच रुपये बच जाते हैं।