साल पहले भी जागरुकता से हराया था महामारी को
साल पहले भी जागरुकता से हराया था महामारी को
अशोक त्रिवेदी,औरैया
साल 1940 में भी देश पर महामारी का संकट मंडराया था। यह संकट हैजा और प्लेग की शक्ल लेकर आया था। मौत घर-घर तांडव कर रही थी और स्वास्थ्य सेवाएं न के बराबर थी, लेकिन लोगों का हौसला और उम्मीद बहुत बड़ी थी। इसी की बदौलत लोगों ने जागरुकता और सतर्कता के साथ उस महामारी को मात दी थी। लोगों ने काम-धंधे बंद कर दिए और स्वच्छता पर पूरा ध्यान केंद्रित कर दिया था। तब भी बिना हाथ धुले घर में कोई नहीं प्रवेश करता था। स्वेच्छा से जनता कर्फ्यू खुद को लॉकडाउन कर लिया था। सीमित देसी संसाधनों, सतर्कता और स्वच्छता से जंग जीत ली थी। अंग्रेज नहीं चाहते थे कि बचे कोई..
शहर के मोहल्ला आर्यनगर (काली गार्डन) निवासी 90 वर्षीय प्रकाशानंद बताते हैं कि साल 1940 में जब यह महामारी फैली तब अंग्रेजी हुकूमत थी और वह नहीं चाहती थी कि देश की जनता सुरक्षित हो। आलम ये था कि रोजाना बड़ी तादाद में लोग मर रहे थे। तब पूरा देश एकजुट हो लिया और स्वेच्छा से एकांतवास को अपनाया। अब तो सरकार भी जिदगी बचाने के लिए जतन कर रही है लेकिन तब भी लोग जागरूक नहीं हो रहे हैं। जड़ी-बूटियों से उपचार, एकांतवास ने बचाई जान
वह बताते हैं कि उस वक्त न कहीं लैब थीं और न ही अन्य संसाधन। स्वास्थ्य सुविधा के नाम पर जड़ी बूटियों से निíमत दवाओं पर ही उपचार निर्भर था। उस समय भी लोगों ने साफ-सफाई, एक-दूसरे के संपर्क में न आने और ज्यादातर समय घरों में रहने जैसे कदम उठाए थे। यही सावधानी बीमारी की रोकथाम में अहम कदम साबित हुई। प्रकाशानंद ने कहा कि अब कोरोना वायरस से बचने के लिए भी यही सतर्कता अपनानी है। तब भी महामारी लाइलाज ही थी और अब भी। कोरोना वायरस की महामारी को भी सतर्कता और घरों में रहकर फैलने से रोका जा सकता है। सरकार आज वही कदम उठा रही है, जो पहले भी पालन किए गए थे। आज देश के पास पर्याप्त स्वास्थ्य संसाधन हैं। लोग सतर्कता से इस महामारी को हराएं। (इनसर्ट)
सिरका बना था सैनिटाइजर
वह बताते हैं कि उस समय हाथ धुलने के लिए महज लाही खरी हुआ करती थी। उसी से हाथ धुल जाते थे जिसे अब चिकित्सक एंटीबॉयोटिक भी बता रहे है। उन्होंने कहाकि तब कहां सैनिटाइजर होता था। सिरका में पानी मिलाकर हाथों में लगा लिया जाता था। वही सैनिटाइजर का काम करता था। मुंह पर अंगौछा या सूती कपड़ा बांधकर हिफाजत करते थे।