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कमजोर कंधों पर उठा लिया लोकतंत्र की स्थापना का भार

जागरण संवाददाता, औरैया : दिव्यांग हैं तो क्या हुआ लोकतंत्र में उनके भी वोट की गिनती है। खुद नहीं चल

By Edited By: Published: Mon, 20 Feb 2017 01:01 AM (IST)Updated: Mon, 20 Feb 2017 01:01 AM (IST)
कमजोर कंधों पर उठा लिया 
लोकतंत्र की स्थापना का भार
कमजोर कंधों पर उठा लिया लोकतंत्र की स्थापना का भार

जागरण संवाददाता, औरैया : दिव्यांग हैं तो क्या हुआ लोकतंत्र में उनके भी वोट की गिनती है। खुद नहीं चल सकते, लेकिन जम्हूरियत को दौड़ाने का जज्बा तो है। जिले में दिव्यांगों ने साबित किया कि वह किसी मामले में कम नहीं हैं। वो¨टग के लिए भी वह पूरे उत्साह से बूथ पर पहुंचे और वोट डाले।

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बिधूना क्षेत्र के गांव ऐली के गगन ट्राई साइकिल पर बैठ कर जरूर गए, लेकिन लोकतंत्र के पहले खंभे को मजबूत करने के लिए उन्होंने वोट डाला। खुद के दोनों पैर नहीं हैं, लेकिन लोकतंत्र को आधार देने के लिए उन्होंने अपनी जिम्मेदारी निभाई। रुरुआ में बुजुर्ग रामसेवक पैदल चलने की स्थिति में नहीं थे, लेकिन चारपाई पर लेटे-लेटे ही वह बूथ पर गए। रुरुगंज क्षेत्र के गांव सरमेडी की प्रीती का एक पैर पोलियोग्रस्त है, लेकिन बैसाखी के सहारे बूथ पर पहुंची और वोट देकर अपने विचारों की मजबूती दिखाई। रुरुगंज की रशीदन कुरैशी का एक हाथ टूटा हुआ है, लेकिन वह अपने परिवारीजनों के साथ वोट डालने गई। सबसे प्रेरक रुरुगंज के बंटू दुबे की तस्वीर नजर आई। उनका नीचे का धड़ पूरी तरह निर्जीव है, लेकिन भाई की बाइक पर बैठ कर वह मुस्कारते हुए लोकतंत्र के यज्ञ में आहुति देने पहुंचे। दो सौ मीटर के दायरे में बाइक ले जाना वर्जित था तो भाई ने गोद में उठा लिया। मतदान को लेकर दोनों भाइयों का यह जज्बा क्षेत्र में मिसाल बन गया। लोग उनके बारे में चर्चा करते दिखे।


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