घर में कमरों से ज्यादा बना दिए शौचालय
गजरौला यूं तो जिला खुले में शौच मुक्त हो चुका है। हकीकत इससे जुदा है। ग्रामीण अभी भी खुले में ही शौच जाने को विवश हैं। वजह यह है कि कहीं पात्र को शौचालय मिल नहीं पाया है तो कहीं गुणवत्ता के अभाव में बदहाल हो गया है। कहीं भूसा भरा पड़ा है। नतीजा यह कि मजबूरी में अभी लोग खुले में शौच को जाने को मजबूर हैं।
गजरौला : यूं तो जिला खुले में शौच मुक्त हो चुका है। हकीकत इससे जुदा है। ग्रामीण अभी भी खुले में ही शौच जाने को विवश हैं। वजह यह है कि कहीं पात्र को शौचालय मिल नहीं पाया है, तो कहीं गुणवत्ता के अभाव में बदहाल हो गया है। कहीं भूसा भरा पड़ा है। नतीजा यह कि मजबूरी में अभी लोग खुले में शौच को जाने को मजबूर हैं।
स्थानीय ब्लाक क्षेत्र के गांव कांकाठेर की तो लगभग यही स्थिति है। यह गांव गंगा के नजदीकी गांवों में गिना जाता है। शुरुआत में मोदी सरकार बनने के बाद गंगा किनारे के जिन गांवों का चयन कर स्वच्छता पर जोर देते हुए शौचालय निर्माण की शुरुआत की गई थी। उन गांवों में कांकाठेर भी शामिल था। लिहाजा यहां भी शौचालय बनाए गए थे। उसके बाद हर साल नए पात्रों का चयन कर शौचालयों का निर्माण किया जाता रहा, लेकिन नतीजा यह कि गांव में भूप सिंह समेत दर्जनों ग्रामीण ऐसे हैं, जिन्हें पात्र होते हुए भी अभी तक शौचालय नहीं मिले हैं। अतर सिंह के मकान में इतने कमरे नहीं हैं, जितने शौचालय बना दिए गए। इसी कारण इनमें दो शौचालय स्टोर के रूप में प्रयोग हो रहे हैं, जिनमें भूसा भरा है। गांव के गंगा सरन पुत्र होरी लाल का बिना छत वाला शौचालय मानकों व गुणवत्ता की पोल खोल रहा है। गांव के विजेंद्र सिंह ने बताया कि ऐसे बदहाल शौचालयों की भरमार है। उनका दावा है कि इसी अव्यवस्था के चलते गांव के काफी लोग अभी भी खुले में शौच जाने को मजबूर हैं। सुबह गांव का दौराकर इसकी पुष्टि की जा सकती है। यह हाल अकेले इसी गांव का नहीं है। अधिकांश गांवों में शौचालयों को लेकर यही स्थिति बनी है। उधर, ग्राम प्रधान जाहिद का दावा है कि उनकी ग्राम पंचायत में नियमों का पालन करते हुए 600 से अधिक शौचालयों का निर्माण कराया जा चुका है। 40 की ओर मांग की गई है।
900 शौचालयों की मांग
गजरौला ब्लाक की सभी ग्राम पंचायतों में अभी तक नमामि गंगे, स्वच्छ भारत मिशन, एलओसी प्रथम इत्यादि में 18 हजार के लगभग शौचालयों का निर्माण कराया जा चुका है। कोई गांव ऐसे नहीं है, जहां ग्रामीण शौच को खुले में जा रहा है। कुछ गांवों में और शौचालयों की आवश्यकता है। यूनिवर्सल सेनीटेशन कवरेज के तहत 900 शौचालयों की मांग और की गई है। मदन पाल सिंह-एडीओ पंचायत, ब्लाक गजरौला। गांव ओडीएफ, खुले में शौच को लगती है लाइन
हसनपुर : अमरोहा जनपद को ओडीएफ घोषित हुए साल भर बीत चुका है। वहीं हसनपुर व गंगेश्वरी ब्लाक के ओडीएफ गांवों में सुबह को खुले में शौच के लिए लाइन लग रहीं है। गंगेश्वरी के बहादुरपुर मिश्र गांव में दर्जन भर से अधिक शौचालय बनने के एक वर्ष के अंदर ही कुछ के गड्ढे बैठ गए हैं तो कुछ की सीट व दरवाजे टूटने से शौचालय उपयोग रहित हो गए हैं। गांव निवासी प्रियंका व भूरी देवी के शौचालय भी घटिया सामग्री लगने के कारण एक वर्ष के अंदर ही खराब हो गए हैं। इस कारण अब उन्हें शौच के लिए जंगल में खुले में जाने को विवश होना पड़ रहा है। उधर, ग्राम प्रधान लालमन सिंह का कहना है कि गांव ओडीएफ घोषित हो चुका है। देखरेख के अभाव में कोई शौचालय खराब हो गया होगा। ग्राम पंचायत सुतावली भी ओडीएफ है, लेकिन गांव के दो दर्जन से अधिक घरों में शौचालय नहीं हैं। ग्राम प्रधान इमरान अहमद का कहना है कि दो दर्जन शौचालयों की डिमांड भेजी गई है। ग्राम पंचायत रामपुर भूड़ में भी महिलाएं व बच्चे तक खुले में शौच जाते हैं। ग्राम पंचायत करनपुर माफी की प्रधान ओमवती का कहना है कि गांव ओडीएफ हो चुका है। लेकिन अभी 40 शौचालयों की कमी है। क्षेत्र में और भी ऐसे दर्जनों गांव है जिनमें शौचालयों की कमी के कारण खुले में शौच हो रहा है। खंड विकास अधिकारी हसनपुर राजीव कुमार एवं गंगेश्वरी सतेंद्र सिंह का कहना है कि जिन गांवों में पात्र लोगों के यहां शौचालय नहीं है, जांच कराकर जल्द शौचालयों का निर्माण कराया जाएगा। आधे-अधूरे शौचालयों के निर्माण से परेशान लाभार्थी
मंडी धनौरा: ब्लाक क्षेत्र की ग्राम पंचायत गादी खेड़ा की मंढैया के हालात बिल्कुल उलट हैं। यहां कुछ ग्रामीण शौचालय न होने के कारण अब भी खुले में शौच के लिए जा रहे हैं। वहीं कुछ के शौचालय आधे अधूरे पड़े हैं। यहां गांव निवासी सरिता पत्नी रावेन्द्र का आरोप है कि शौचालय निर्माण की राशि को ग्राम प्रधान ने निकलवा लिया व उसके यहां आधा-अधूरा शौचालय का निर्माण कराया। न छत पड़ी है और न ही शौचालय में दरवाजा लगा है। जिस कारण उसके परिवार को भारी असुविधा का सामना करना पड़ रहा है। गांव निवासी खचेडू का आरोप है कि प्रधान ने अपात्रों के शौचालय बनवा दिए। जबकि वह पात्र था, उसकी अनदेखी की गई। कल्याण सिंह व चरन सिंह ने भी कुछ ऐसे ही आरोप लगाए। जबकि विकास विभाग के अधिकारी गांव के ओडीएफ होने का दावा करते हुए मामले की जांच कराए जाने की बात कह रहे हैं।