बिखरे अरमानों संग अमरोहा पहुंची अरमाना
जीवनसाथी की बैसाखी पर जिदगी के अरमानों को पूरा करने का ख्वाब सजाया था।
जेएनएन, अमरोहा। जीवनसाथी की बैसाखी पर जिदगी के अरमानों को पूरा करने का ख्वाब सजाया था। बेटे को जन्म दिया तो लाचारगी से जंग जीतने का हौसला भी मिल गया। मगर अचानक किस्मत रूठ गई और पति बेवफा हो गया। ठिठुरती रातों में दुधमुंहे के साथ सड़कों पर बेसहारा छोड़ दिया। पांच माह का दूसरा बच्चा कोख में है। शेल्टर होम ठिकाना बन गया है, मगर कब तक? इस सवाल के साथ अफसरों के माथे पर भी चिता की लकीरें खिची हुई हैं। डिडौली की रहने वाली अरमाना खुद लाचार है। पोलियो ने जन्म से ही पैरों पर नहीं खड़े होने दिया। माता-पिता बचपन में ही गुजर गए थे। ताऊ ने भी कुछ ही दिनों में उसका बोझ उठाने से इन्कार कर दिया। इसके बावजूद हिम्मत नहीं हारी। सरकारी इमदाद से मिली एक ट्राइसाइकिल के सहारे गजरौला की एक फैक्ट्री में नौकरी कर ली। वहीं रहरा के रहने वाले शख्स टीटू से मुलाकात हुई। उसने न सिर्फ हमदर्दी दिखाई बल्कि जिदगी भर साथ निभाने का भरोसा भी दिया। ढाई वर्ष पूर्व टीटू ने बतौर पत्नी उसे अपने साथ रख लिया। साल भर बाद अरमाना ने बेटे को जन्म दिया। इसके बाद उसे टीटू नूरपुर बिजनौर ले गया। वहीं एक ईंट भट्ठे पर मजदूरी शुरू कर दी। इसी दौरान उसे शराब की लत लग गई। अरमाना बताती है कि विरोध करने पर पहले तो वह गालीगलौज ही करता था, बाद में बेइंतहा पिटाई शुरू कर दी। अब पेट में पांच माह का दूसरा बच्चा है। छोटी सी बात पर झगड़ा हुआ तो गुरुवार को टीटू ने पिटाई के बाद उसे सड़क पर बेसहारा छोड़ दिया। धक्के खाते-खाते अरमाना किसी तरह अमरोहा पहुंच गई। कहीं कोई ठिकाना नहीं मिला तो एक ई-रिक्शा चालक ने स्टेशन रोड पर बने अस्थाई रैन बसेरे में छोड़ दिया। यहीं वह दुधमुंहे बच्चे व आंसुओं संग उलझी जिदगी को सुलझाने का तानाबाना बुन रही है।
ईओ बने सांता क्लॉस
अमरोहा : रैन बसेरों की जिम्मेदारी संभाल रहे नगर पालिका के अधिशासी अधिकारी डॉ. मणिभूषण तिवारी को जब अरमाना के बारे में जानकारी हुई तो वह क्रिसमस की सुबह ही वहां पहुंच गए। फल, ब्रेड, दूध आदि का इंतजाम कराया। इसके बाद स्थायी इंतजाम होने तक उसे शेल्टर होम में रखने के निर्देश दिए। ट्राइसाइकिल की दरकार
अमरोहा : अरमाना बताती है कि चलने-फिरने के लिए उसे सरकार की ओर से एक ट्राइसाइकिल मिली थी मगर पति ने शराब के लिए उसे भी बेच दिया है। कहती है कि अब उसे एक ट्राइसाइकिल मिल जाए तो वह बच्चे को लेकर चल-फिर सकती है। जिला प्रोबेशन अधिकारी शक्ति सरन ने बताया कि वह जल्द ही अरमाना को ट्राइसाइकिल के साथ दिव्यांग पेंशन दिलाने का प्रयास करेंगे।