भारत-पाक के बीच इत्तेहाद का पुल थे शमीम हादी
वो वाकई में उम्मीदों के 'शमीम' यानि 'सवेरा' थे। दोनों मुल्कों के बीच शांति व भाईचारा की हिदायत देने वाले 'हादी' भी। शायद इसलिए वालिदेन ने उनका नाम शमीम हादी रखा था।
अमरोहा : वो वाकई में उम्मीदों के 'शमीम' यानि 'सवेरा' थे। दोनों मुल्कों के बीच शांति व भाईचारा की हिदायत देने वाले 'हादी' भी। शायद इसलिए वालिदेन ने उनका नाम शमीम हादी रखा। 57 साल उन्होंने अमरोहा से पाकिस्तान तक अमन व भाईचारा के धागे मजबूती के साथ बांधे रखे। मुहर्रम का चांद नजर आते ही शमीम हादी के लिए अमरोहा दस दिन तक उनका अस्थायी घर बना जाता था। वह पाकिस्तान से अमरोहा भाईचारा की खुशबू लाते थे तो यहां से पाकिस्तान तक अमन व मोहब्बत का पैगाम ले जाते थे। उनकी वफात के बाद बेटा मुमताज हादी इस रिश्ते को आगे बढ़ाने आए तो पाकिस्तान की वीजा नीति आड़े आ गई। नतीजतन 57 साल का अमन व दोस्ती के सफर का थम गया।
जी हां, शमीम हादी उस शख्सियत का नाम है जिसने भारत पाकिस्तान के रिश्तों को लगातार 57 साल तक भाईचारा व मोहब्बत की डोर में बांधे रखा। मूल रूप से अमरोहा के मुहल्ला बगला निवासी मुत्तकी हसन के घर जन्म लेने वाले शमीम हादी परिजनों के साथ वर्ष 1948 में पाकिस्तान चले गए थे। वालिद ने वहां करांची शहर में कारोबार शुरू कर दिया। उसके बाद शमीम हादी यहीं रहे। वर्ष 1954 तक अमरोहा के ही आईएम इंटर कालेज में हाईस्कूल पास किया तथा यहां से फिर हमेशा के लिए पाकिस्तान चले गए। पाकिस्तान में शमीम हादी ने कंस्ट्रक्शन का काम शुरू किया। बड़ी कंपनी बनाई परंतु शमीम हादी का दिल हमेशा अपनी जन्मभूमि अमरोहा से जुड़ा रहा।
उन्होंने हर साल मुहर्रम के दौरान अमरोहा आना शुरू कर दिया। जैसे ही मुहर्रम का चांद नजर आता तो शमीम हादी परिवार के साथ दिल्ली की फ्लाइट पकड़ लेते। यहां अमरोहा में अपने साथी नवाब इंतकाम अली खां के घर ठहरते। दस दिन तक अमरोहा ही उनका अस्थायी घर बन जाता। शमीम हादी वर्ष 1961 से हर साल मुहर्रम के दौरान परिवार के साथ लगातार अमरोहा आते रहे। चूंकि मुहल्ला बगला उनका पैतृक मुहल्ला रहा है। लिहाजा उन्होंने यहां स्थित अजाखाना में दो मुहर्रम को मजलिस का आयोजन भी शुरू कराया। यह मजलिस शमीम हादी के नाम से मशहूर हो गई। उनके साथ पाकिस्तान के दोस्त भी आया करते थे। यहां के लोगों की मुहब्बत व खुलूस देखकर वह यहां के लोगों के मुरीद बन जाते थे।
अमन व दोस्ती के पैरोकार रहे शमीम हादी का इंतकाल वर्ष 2016 में मुहर्रम के बाद हो गया। उसके बाद दोनों मुल्कों के बीच दोस्ती व अमन के पैगाम को ¨जदा रखने की जिम्मेदारी उनके बेटे मुमताज हादी ने सम्भाली। बीते साल वह अमरोहा आए थे, लेकिन इस बार पाकिस्तान सरकार द्वारा किसी को भी ¨हदुस्तान के लिए वीजा नहीं दिया गया। इससे दोनों मुल्कों के बीच बंधी संबंधों की डोर टूट गई। इस बार अमरोहा के लोग उन्हें मुहर्रम के मौके पर याद कर रहे हैं। शमीम हादी के दोस्त नवाब इंतकाम अली खां के बेटे मुराद अली खां बताते हैं कि पाकिस्तान द्वारा वीजा न दिया जाना वाकई अफसोसजनक हैं। फोन पर शमीम हादी के बेटे मुमताज हादी ने इस बार अमरोहा न आने का अफसोस जताया है। कहते हैं कि सारी बंदिशें खत्म होनी चाहिए। ताकि दोनों मुल्कों के बीच भाईचारा कायम हो सके।