रमजान के तीसरे अशरे में मिलती है जहन्नुम से निजात
अमरोहा : मुकददस रमजान अल्लाह रब्बुल इज्जत का महीना है। आखिरी अशरा जहन्नुम से निजात का है
अमरोहा : मुकददस रमजान अल्लाह रब्बुल इज्जत का महीना है। आखिरी अशरा जहन्नुम से निजात का है। इस अशरे में ही शब-ए-कद्र की रात है। रिवायतों में तीसरे अशरे की खासी फजीलत बयान की गई है।
मंगलवार रात जामा मस्जिद के उस्तादे हदीस मुफ्ती मोहम्मद अफ्फान मंसूरपूरी ने रमजान के आखिरी अशरे पर रोशनी डालते हुए कहा जहन्नुम की आग से निजात का अशरा शुरू हो गया है। इस अशरे में अल्लाह का कोई भी बंदा अगर सच्चे दिल से अपने गुनाहों की माफी मांगता है, तो रब्बुल आलामीन उसे माफ फरमा देते हैं। उन्होंने कहा कि वैसे तो पूरा महीना ही रहमतों का महीना है। लेकिन, इस अशरे की एक रात में कुरआने करीम नाजिल हुआ है। इसीलिए, इस अशरे की रातों की अहमियत बढ़ जाती है।
कहा इस अशरे की ताक रातों में शब-ए-कद्र की रात होती है जो हजार महीनों की रातों से अफजल है। कुरआने करीम किस रात में नाजिल हुआ है। मुफ्ती अब्दुर्रहमान कासमी नौगांवी ने रमजान के महीने में रोजे रखकर सच्चे दिल से तौबा करने वाले बंदे के अल्लाह सारे गुनाह माफ कर देता है। तीसरे अशरे में इफ्तार के वक्त बड़ी तादाद में लोगों को दोजख से निजात मिलने का जिक्र है। इसीलिए इसे जहन्नुम की आग से खलासी का अशरा कहा गया है। हालांकि इस दौरान उन्हें ही राहत मिलती है जो अल्लाह के हुक्मों को बजा लाते हैं, रोजा रखते हैं। नमाज की पाबंदी करते हैं। कुरान की तिलावत और खुदा के जिक्रका एहतमाम करते हैं।
उन्होंने आगे कहा कि खुदा ने कुराने करीम में नमाज को कायम करने और जकात अदा करने का हुक्म दिया है। अल्लाह ने किस तरह इस पूरी दुनिया का निजाम बनाया और दौलतमंदों पर जकात की शक्ल में गरीबों की मदद की जिम्मेदारी तय कर दी। साहिबे निसाब मुसलमानों पर जकात फर्ज की गई है। पूरे साल की आमदनी में से ढाई फीसदी हिस्सा गरीबों, यतीमों, कमजोरों और मिसकीनों को देना चाहिए। बाद में दुआ कराई गई।