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बुढ़ापे में भी हरियाली के प्रहरी बने मेघराज

उझारी बचपन से पर्यावरण संरक्षण करते चले आ रहे सेवानिवृत अध्यापक मेघराज सिंह नागर एक मिसाल हैं।

By JagranEdited By: Published: Sat, 19 Jun 2021 11:36 PM (IST)Updated: Sat, 19 Jun 2021 11:36 PM (IST)
बुढ़ापे में भी हरियाली के प्रहरी बने मेघराज
बुढ़ापे में भी हरियाली के प्रहरी बने मेघराज

उझारी : बचपन से पर्यावरण संरक्षण करते चले आ रहे सेवानिवृत अध्यापक मेघराज सिंह नागर को प्रकृति को हरा भरा रखने से इतना लगाव है कि जीवन के आखिरी पड़ाव पर भी वह युवाओं को हरियाली का संदेश दे रहे हैं। वह सारे कामों को छोड़कर पेड़ पौधों के लगाने एवं रखरखाव में लगे हुए हैं।

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पतित पावनी गंगा मैया के तटबंध किनारे के गांव सतेडा के मूल निवासी मास्टर मेघराज सिंह नागर ने 1974 से वर्ष 2011 तक सरकारी अध्यापक के रूप में सेवाएं दीं और पंडका गांव में आकर बस गए। बचपन से ही उन्हें पेड़ पौधे लगाने और उनकी देखभाल करने का शौक रहा है। उन्होंने अपने घर को बगीचा बना रखा है। उनके घर के बाहर रास्ते के दोनों तरफ अशोक के पेड़ मकान की शोभा बढ़ा रहे हैं। घर पहुंचने वाले मेहमानों को पेड़ पौधे देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि किसी अफसर के बंगले में जा रहे हैं। उनके बगीचे में अधिक आक्सीजन देने वाले पीपल, बरगद, नीम के वृक्ष लगे हैं। पेड़ पौधों की देखरेख करीब 70 वर्षीय मेघराज सिंह स्वयं करते हैं।

वह युवाओं को संदेश देते हैं मनुष्य के सांसों की डोर पेड़ पौधों से बंधी है। हरियाली के बिना मानव जीवन अधूरा है। इसलिए सभी लोग अपने घर व खाली स्थान पर वट व पीपल के अधिक से अधिक वृक्ष लगाए। क्योंकि ये दोनों वृक्ष रात-दिन कार्बनडाई- ऑक्साइड का अवशोषण कर आक्सीजन देते हैं। इससे वातावरण में आक्सीजन का संतुलन बना रहता है। शास्त्रों में भी इन वृक्षों का काफी महत्व बताया है। ऋषि मुनि इन्हीं वृक्षों के नीचे बैठकर साधना करते थे और कई सौ वर्ष तक जीवित रहते थे। भगवान राम ने भी पंचवटी (पांच वट वृक्षों का समूह) नामक स्थान को ही वन में रहने का स्थान चुना था। मैने भी अपने घर में अब से लगभग 20-25 वर्ष पहले दो पीपल व अशोक आदि के सैकड़ों वृक्ष लगाये थे जो आज पूर्ण विकसित होकर फल-फूल रहे हैं और भरपूर फल, छाया व ऑक्सीजन दे रहे है। गर्मी में बाहरी तापमान से कई डिग्री तापमान कम रहता है।

पेड़ भगाते रोग को, बनकर वैद्य हकीम। प्राण वायु देते हमें, बरगद, पीपल-नीम।


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