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हिमालय की तरह ऊंचे कैलाश के इरादे

अमरोहा : वाकई कैलाश विश्वकर्मा के इरादे हिमालय पर्वत की तरह ऊंचे हैं। सीमित संसाधानों के

By JagranEdited By: Published: Mon, 22 Jan 2018 10:51 PM (IST)Updated: Mon, 22 Jan 2018 10:51 PM (IST)
हिमालय की तरह ऊंचे कैलाश के इरादे
हिमालय की तरह ऊंचे कैलाश के इरादे

अमरोहा : वाकई कैलाश विश्वकर्मा के इरादे हिमालय पर्वत की तरह ऊंचे हैं। सीमित संसाधानों के बावजूद वह पर्यावरण संरक्षण की अलख जगा रहे हैं। सड़कों के किनारे पौधरोपण व पौधरक्षण को जीवन का ध्येय बना लिया है। दुकान खोलने से पहले दो घंटा पेड़ पौधों को देते हैं, अपनी इस मुहिम से वह दूसरे लोगों को भी पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रेरित कर रहे हैं।

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यहां बात हो रही है गजरौला क्षेत्र के सादुल्लापुर निवासी कैलाश विश्वकर्मा की। दसवीं तक पढ़ाई करने वाले कैलाश की गांव में ही इलेक्ट्रीशियन की छोटी सी दुकान हैं। इसी से परिवार की गुजर बसर होती है। करीब 7 से 10 हजार रुपया महीना कमा पाते हैं, इसके बावजूद वह इसी में से पैसा बचाकर पौधरोपण जैसा पुनीत कार्य कर रहे हैं। परिवार में दो बेटे और दो बेटियां हैं। बेटी शिवानी व नीतू की शादी कर चुके हैं। बेटे विनय और र¨वद्र पढ़ाई पूरी कर निजी कंपनियों में काम कर रहे हैं। पारिवारिक जिम्मेदारियों के साथ-साथ समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी का बखूबी निर्वहन कर रहे हैं। अब उन्होंने पर्यावरण की रक्षा को पौधरोपण व पौधरक्षण को ही अपने जीवन का ध्येय बना लिया है। दुकान खोलने से पहले दो घंटे का समय वह पौधों को ही देते हैं। सुबह के समय वह सादुल्लापुर रोड पर सड़क के किनारे गड्ढे खोदते या पौधों को पानी देते मिल जाएंगे। राहगीरों को भावी पीढि़यों का जीवन बचाने के लिए पौधे लगाने की अपील जरूर करते हैं। जन्म दिवस या स्मृति दिवस जैसे अवसरों पर माता-पिता, बेटे-बेटियों को वह पौधरोपण के लिए प्रेरित कर रहे हैं।

47 वर्षीय कैलाश विश्वकर्मा का गांव गजरौला क्षेत्र में आता है और यहां पर बड़ी-बड़ी औद्योगिक इकाइयां हैं। इनसे हो रहे प्रदूषण की वजह से आम जनजीवन के साथ ही पर्यावरण को खतरा उत्पन्न हो चुका है। खेतीबाड़ी भी प्रभावित हो रही है। यह देख 2007 में उन्होंने पर्यावरण संरक्षण का संकल्प लिया और पर्यावरण की रक्षा को अकेले लखनऊ तक की साइकिल यात्रा निकाली। पारिवारिक जिम्मेदारियों की वजह से 2008 में रिलायंस कम्युनिकेशन में टेक्नीशियन की नौकरी कर ली लेकिन यहां भी मन नहीं रमा, पर्यावरण की ¨चता उन्हें यहां भी सताती रही। प्राइवेट नौकरी की वजह से पेड़-पौधों के लिए वह समय नहीं निकाल सके। लिहाजा 2012 में नौकरी छोड़कर गांव में इलेक्ट्रीशियन की छोटी सी दुकान कर ली। 2012 से अकेले काम शुरू किया और 2016 तक करीब 1200 पौधे उन्होंने लगाए और पिछले साल वह सामाजिक कार्यकर्ता संजीव पाल के संपर्क में आए और उनकी सामाजिक संस्था प्रयास से जुड़ गए।

गत वर्ष उन्होंने संस्था के सहयोग से करीब 1000 पौधों का रोपण कर चुके हैं। इनमें से सादुल्लापुर रोड पर ही गांव भावली में 300 पौधे और औद्योगिक इकाइयों की मार से प्रदूषित हो चुकी बगद नदी के किनारे 300 पौधे लगाए। इसके अलावा गांव के आसपास पास सड़क की दोनों साइडों में वह करीब 400 पौधे पिछले साल लगा चुके हैं। पौधे लगाना ही नहीं, उन्हें बचाने के लिए भी रोजाना हाथ में खुरपी और फावड़ा लेकर निकल पड़ते हैं। कैलाश कहते हैं कि पर्यावरण बचेगा तभी तो जीवन बचेगा, इसीलिए पौधरोपण और पौधरक्षण को ही अब जीवन का ध्येय बना लिया है।


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