अनुशासन की प्रथम पाठशाला मित्रता व परिवार
आपको बता दें कि अनुशासन की पहली पाठशाला मित्रता-परिवार होती है व दूसरी विद्यालय।
आपको बता दें कि अनुशासन की पहली पाठशाला मित्रता-परिवार होती है व दूसरी विद्यालय। इसके बिना एक सभ्य समाज की कल्पना करना दुष्कर है। एक स्वस्थ समाज के निर्माण और संचालन में उस आबादी का बड़ा हाथ होता है, जो अपने किसी भी रूप में अनुशासनरूपी सूत्र में गुंथी होती है। दरअसल, मित्रता के अनुशासन की प्रक्रिया रैखिक ही नहीं, बल्कि चक्रीय भी होती है। वह पीछे की और लौटती है, पर ठीक उसी रूप में नहीं। ऐसे में अगर अनुशासन को सरल रेखा खींच कर उसका स्वरूप निर्धारित करने का प्रयास किया जाए तो उसमें संबंध बिगड़ने की संभावनाएं हैं। जबकि 'अनुशासन के बिना न तो मित्रता चल सकती है और न ही संस्था और राष्ट्र।' इसकी व्यापकता का अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि अनुशासन शब्द समाज की सबसे छोटी इकाई परिवार से लेकर 'विश्व-समाज' की अवधारणा तक अपने विभिन्न अर्थों के साथ किसी न किसी रूप में जुड़ा होता है। लेकिन अपने मूल अर्थ में अनुशासन का अभिप्राय एक ही होता है। देखना यह है कि क्या अनुशासन का स्वरूप भी सभी जगह एक-सा होता है, या मित्रता, परिवार, समाज, राष्ट्र और विश्व आदि हर स्तर पर इसका स्वरूप भी अलग-अलग हो सकता है। किसी भी राष्ट्र का परिचय उसके अनुशासनबद्ध नागरिकों से मिल जाता है। मित्रता के प्रश्न के चलते यहां अनुशासन के अपने मानदंड होते हैं, इनसे कोई समझौता नहीं किया जा सकता। मित्रता के दौरान व्यक्ति को अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए। मित्रता के समय मित्रता और काम के समय काम यह अनुशासन है। अनुशासन का सबसे सरलतम रूप समाज में दिखाई देता है, जहां लोग आपसी सदभाव से बिना किसी टकराव के रहते हैं। आखिर व कौन-से कारण होते हैं, जिनके चलते 'शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व' की भावना किसी भी समाज की रीढ़ होती है। विभिन्न समुदायों को मिला कर समाज बनता है, फिर राष्ट्र और विश्व। हर क्षेत्र में विविधता होने पर भी 'विश्व-मानव' और 'विश्व-समाज' की परिकल्पना की जाती है, जिसका मूल अनुशासन में निहित है। क्षेत्र विशेष के अनुसार अनुशासन की सीमाएं भी निर्धारित होती हैं। जबकि शिक्षा का उद्देश्य समाज को बेहतर नागरिक प्रदान करना होता है, जो स्वस्थ समाज के निर्माण में भागीदार बने। अनुशासन का लक्ष्य शिक्षा में नैतिकता का समर्थन करना है तो भले ही अनुशासन की पहली पाठशाला परिवार होता है, पर एक स्वस्थ समाज के निर्माण में निर्णायक भूमिका उसके विद्यालय निभाते हैं। ऐसे में यह प्रश्न और महत्त्वपूर्ण हो जाता है कि हमारे विद्यालयों में अनुशासन का कौन-सा स्वरूप होना चाहिए। इससे विद्यार्थियों में जहां शील, संयम, नम्रता और ज्ञान पिपासा जैसे गुणों का विकास होता है, वहीं विद्रोह की भावना के भी जन्म लेने के आसार बराबर बने रहते हैं। अधिकतर लोग अनुशासन का अर्थ किसी सैन्य परिसर, वहां के कठोर नियम और उनके पालन में ही खोजते हैं।
कपिल अग्रवाल, प्रबंधक हीरा इंटरनेशनल स्कूल, मंडी धनौरा।