एमफिल कर किसान बने शर्म सिंह पर सभी गौरवान्वित
पढ़-लिख कर हर कोई अच्छी नौकरी की तलाश में रहता है। इस चक्कर में वह गांव छोड़ शहर की और रूख करता है। लेकिन इससे इतर क्षेत्र के गांव आशूवाला निवासी सरदार शर्म सिंह ने उच्च शिक्षा प्राप्त कर नौकरी करने के बजाय खेती को आधुनिक तकनीक के सहारे अधिक पैदावार कर आय बढ़ाने का संकल्प लिया जो अब उनका यह सपना पूरा हो रहा है। वह दूसरे किसानों के लिए उत्तम श्रेणी के बीज तैयार कर उनकी भी पैदावार को दो गुना तक कर दिया है जिससे उनकी किसानों में काफी लोकप्रियता बढ़ रही है।
जगजीत सिंह, मंडी धनौरा : पढ़-लिखकर हर कोई अच्छी नौकरी की तलाश में रहता है। इस चक्कर में वह गांव छोड़ शहर की और रूख करता है। लेकिन इससे इतर क्षेत्र के गांव आशूवाला निवासी सरदार शर्म सिंह ने उच्च शिक्षा प्राप्त कर नौकरी करने के बजाय खेती को आधुनिक तकनीक के सहारे अधिक पैदावार कर आय बढ़ाने का संकल्प लिया जो अब उनका यह सपना पूरा हो रहा है। वह दूसरे किसानों के लिए उत्तम श्रेणी के बीज तैयार कर उनकी भी पैदावार को दो गुना तक कर दिया है, जिससे उनकी किसानों में काफी लोकप्रियता बढ़ रही है। तहसील क्षेत्र के गांव आसूवाला निवासी सरदार शर्म सिंह ने हरियाणा के कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय से एमफिल करने के पश्चात नौकरी करने के बजाय खेती को अपनाया। अपने परिजनों के संग मिल कर खेती की शुरूआत की। परंपरागत खेती के समय जहां गन्ना 150 से दो सौ कुंतल प्रति एकड़ की पैदावार होता था। अब उन्होंने कृषि वैज्ञानिकों की राय पर गन्ने की ट्रेंच विधि से बुआई की, गन्ने की नई-नई किस्म लगा कर गन्ने की पैदावार को छह सौ से सात सौ कुंतल प्रति एकड़ तक बढ़ा दिया। साथ ही साथ गन्ने की फसल के साथ आलू व मटर की सह खेती कर आमदनी बढ़ाई। धान की भी दो-दो फसलें एक ही सीजन में लेने लगे। गेंहू, गन्ने एवं धान की ब्राडिग शुरू कर अपना व्यवसाय शुरू कर दिया। इसका लाभ क्षेत्रीय एवं अन्य प्रदेशों जैसे हरियाणा, पंजाब जैसे विकसित प्रदेशों के किसानों ने भी उठाया। उनके इन बीजों की काफी मांग है। शर्म सिंह बताते हैं कि जब वह कालेज में पढ़ाई करते थे, तो उनके अधिकतर मित्र पढ़ाई पूरी करने के पश्चात अच्छी नौकरी करना चाहते थे, लेकिन उनका इरादा इससे अलग था। उनके पारिवारिक लोग खेती से जुड़े हुए थे। कम पढ़े लिखे होने के चलते फसलों की पैदावार काफी कम होती थी। नतीजन लागत अधिक होने के कारण मुनाफा अधिकतर ऐसे ही गायब हो जाता था। उन्होंने नौकरी करने के बजाय आधुनिक तरीके से खेती करने का संकल्प लिया। अब वह कृषि वैज्ञानिकों से सलाह लेकर फसलों की बुआई एवं अन्य दवाई आदि के बारे में जानकारी कर ही उपयोग करते हैं। इससे उनकी फसलों की पैदावार बढ़ने लगी तथा आय में भी काफी वृद्धि हुई है। अब वह साल में 25 से 30 लाख तक आराम से कमा लेते हैं, जो नौकरी में कभी नहीं कमा सकता था। उन्होंने बताया कि अब वह धान की पुआली को जलाते नहीं वरन उसे जोत देते हैं जिससे खेत की उर्वरा शक्ति बढ़ती है। रसायनिक खाद का भी बहुत कम मात्रा में प्रयोग करते हैं। गोबर एवं कम्पोस्ट खाद के प्रयोग से फसलों की पैदावार को बढ़ाया जा सकता है। उन्होंने इसी वर्ष जैविक विधि से खेती की भी शुरूआत की है। प्रदेश सरकार में अपना रजिस्ट्रेशन भी कराया है। अपने बेटे हरसिमरन सिंह को भी एमएससी कृषि में कराई है। अब वह फ्रांस में इन्टर्नशिप कर रहा है। ताकि वह अपनी खेती को आधुनिक और बेहतर ढंग से कर सके। निकट भविष्य में उनका प्रयास पर्यावरण संरक्षण के ²ष्टिगत अपने खेतों में फलदार एवं अन्य पेड़ लगाने का है। साथ ही सामूहिक खेती करने पर भी जोर दिया। इससे कम जोत वाले किसान भी अपनी फसल का वाजिब दाम ले सकते हैं। अगर किसी कारण एक फसल के दाम कम भी मिले तो दूसरी फसल से उसकी भरपाई हो सकती है।