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बदनसीबी भी नहीं तोड़ सकी स्वावलंबी बनने का जज्बा

अमेठी : शक्ति स्वरूपा नारी कितनी भी विपरीत परिस्थितियों में क्यों न रही हों वह अचल आरावली की

By JagranEdited By: Published: Thu, 18 Oct 2018 01:00 AM (IST)Updated: Thu, 18 Oct 2018 01:00 AM (IST)
बदनसीबी भी नहीं तोड़ सकी स्वावलंबी बनने का जज्बा
बदनसीबी भी नहीं तोड़ सकी स्वावलंबी बनने का जज्बा

अमेठी : शक्ति स्वरूपा नारी कितनी भी विपरीत परिस्थितियों में क्यों न रही हों वह अचल आरावली की तरह उनसे लड़ी है। इसी की एक मिसाल है कस्बा निवासी गिरीश कुमारी। सिलाई, कढ़ाई व बुनाई से पिछले डेढ़ दशक से अपना जीविकोपार्जन करने के साथ ही सैंकड़ों बालिकाओं को प्रशिक्षित भी कर चुकी हैं।

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एक गरीब परिवार में जन्मी गिरीश को परिस्थितियों ने भले ही हताश किया हो, लेकिन वह कभी हिम्मत नहीं हारी। हाई स्कूल पास गिरीश का विवाह बाराबंकी जिले के पतरंगा में हुआ था। किसी अनबन के चलते पति ने उसे त्याग दिया। तब से परिस्थितियों की मारी गिरीश अपनी जीविका के लिए दर-दर की ठोकरें खाती रही। आगनबाड़ी से लेकर आशा बहू तक की नौकरी ढूंढ़ी, किन्तु कहीं कुछ न मिला। इतने के बाद भी वह हिम्मत नहीं हारी और अपने को स्वावलंबी बनाया। रेशा उद्योग से प्रशिक्षण लेकर पायदान व बैग बनाकर जीवन यापन करना शुरू कर दिया। 2006 में गिरीश ग्रामाचल विकास संस्थान के संपर्क में आई और गरीब परिवार की बच्चियों को भी स्वावलंबी बनाने का संकल्प लिया। इसके बाद क्षेत्र के हुसेनपुर में चिकन कढ़ाई, पूरे नेवाजी गाव में रेशा उद्योग के उत्पाद व सिरयारी में सिलाई का निशुल्क प्रशिक्षण केंद्र खोला। केंद्र में वह महिलाओं युवतियों को सिलाई, कढ़ाई व बुनाई का प्रशिक्षण देने लगी। गिरीश की मानें तो वह अब तक सैकड़ों बालिकाओं को प्रशिक्षण दे चुकी है।

-नहीं मिल सकी सरकारी सुविधा

सरकारें परित्यक्ता महिलाओं के उत्थान के लिए भले ही संजीदा हो, किन्तु गिरीश कुमारी के लाख प्रयास के बाद भी उसे सरकार की तरफ से उसे कोई लाभ नहीं मिल सका। आज वह मुफ लिसी का शिकार है। कपड़ों की सिलाई से प्राप्त पारिश्रमिक ही उसकी जीविका का साधन है फि र भी लोग उसके जज्बे को सलाम करते हैं।


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