सियासत में बढ़ते वर्चस्व ने ली सुरेंद्र की जान
अमेठी पुलिस भले ही प्रधानी चुनाव के रंजिश में बरौलिया के पूर्व प्रधान व भाजपा नेता सुरेंद्र
अमेठी : पुलिस भले ही प्रधानी चुनाव के रंजिश में बरौलिया के पूर्व प्रधान व भाजपा नेता सुरेंद्र सिंह की हत्या की बात कह रही हो, लेकिन यह पूरा सच नहीं है। पिछले दो दशकों में लगातार सियासत में बढ़ रहे सुरेंद्र का कद ही उनका दुश्मन बन गया और उनके बढ़ते वर्चस्व को खत्म करने के लिए ही विरोधियों ने उनकी जान ले ली। घटना ने एक साथ गांव के हर उस खेमे को खत्म कर दिया जो आपस में टकरा रहे थे। एक की मौत हो गई तो दूसरे खेमे के लोग सलाखों के पीछे हैं। यह फरारी काट रहे हैं।
बरौलिया गांव के साथ जामों ब्लाक की सियासत में पिछले चार दशक से सक्रिय सुरेंद्र सिंह को पहला राजनीतिक मुकाम 2005 में तब मिला, जब वह बरौलिया गांव की सामान्य सीट से ग्राम प्रधान निर्वाचित हुए। पिछड़ी व दलित जाति के बहुल वाली ग्राम पंचायत का मुखिया का पद मिलने के बाद गांव में धीरे-धीरे उनका प्रभाव इस कदर बढ़ गया कि 2010 में हुए पंचायत चुनाव में बरौलिया में प्रधान पद की सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हो गई। विरोधियों को लगा कि अब सुरेंद्र सिंह की गांव की सियासत खत्म हो गई, लेकिन जब चुनाव हुआ तो सुरेंद्र के खास शोभन की पत्नी सूर्यसती रिकार्ड मतों से प्रधान बन गईं। 2015 के चुनाव में प्रधान पद की सीट पिछड़ी जाति के लिए आरक्षित हुई तो एक फिर उनका करीबी राम प्रकाश गांव का प्रधान बन गया। इन 15 सालों में सुरेंद्र भी गांव की सियासत से निकल जिले की राजनीति का एक नामी चेहरा बन गए। जामों ब्लाक के दक्षिणी भाग में सुरेंद्र सियासी केंद्र बन गए। पैतृक गांव अमर बोझा से दो किमी. दूर कमाल नगर में अर्द्धनारीश्वर मंदिर के करीब बना उनका नया आशियाना राजनीति का अड्डा बन गया था। जहां हर कोई आम व खास बैठने लगा। यह बात विरोधियों को हजम नहीं हो रही थी। 2014 में हुए आम चुनाव में जब सुरेंद्र स्मृति के साथ चुनाव प्रचार में लगे तो उन्हीं के होकर रह गए। आम चुनाव 2019 में तो उन्होंने जामों ब्लाक के दक्षिणी भाग में बड़ा उलट पलट कर स्मृति को बरौलिया के बाहर दूसरे गांवों में जीत दिलाने में अहम भूमिका निभाई। स्मृति की जीत के बाद सभी को यह लगने लगा कि जब स्मृति हारने के बाद सुरेंद्र व बरौलिया के लिए 16 करोड़ से अधिक लागत के विकास कार्यो की सौगात दे सकती हैं तो जीतने के बाद तो कहना ही क्या। बस, इसी सोच ने बरौलिया की उम्मीदों का स्मृति की जीत के तीसरे दिन ही कत्ल कर दिया।
बेटे के साथ खड़ा है पूरा गांव व समाज
सुरेंद्र की मेहनत व ईमानदारी के साथ अपनों से लगाव ही है कि सुरेंद्र की हत्या के बाद पूरा का पूरा गांव व समाज उनके बेटे अभय व परिवार के साथ मजबूती से खड़ा है।
कोट
सुरेंद्र कार्यकर्ता के साथ हमारे भाई थे, उन्होंने अपनी मेहनत से भाजपा को मजबूती दी। परिवार को मैं उनकी कमी का अहसास नहीं होने दूंगी।
-स्मृति इरानी, सांसद, अमेठी