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अमेठी के गेंदा फूल से महकेंगे लखनऊ और प्रयागराज

फूल के साथ मौसमी सब्जियों की खेती करने से दोहरा मुनाफा होगा।

By JagranEdited By: Published: Sun, 06 Jun 2021 11:28 PM (IST)Updated: Sun, 06 Jun 2021 11:28 PM (IST)
अमेठी के गेंदा फूल से महकेंगे लखनऊ और प्रयागराज

आनंद यादव, मुंशीगंज (अमेठी)

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बाजार में पूरे साल गेंदा के फूलों की मांग रहती है। इसकी कुछ ऐसी प्रजातियां हैं, जिनकी खेती सालभर कर किसान आय स्थायी साधन बना सकते हैं। ढाई से तीन माह में तैयार होने वाले गेंदा की खेती में हजारा किसानों के बीच सबसे लोकप्रिय है। मंदिरों में पूजा-अर्चना के साथ त्योहार, शादी, समारोह, दुकानों, प्रतिष्ठानों के उद्घाटन में फूलों की मांग अधिक रहती है। इस लिए बिक्री में किसी तरह की असुविधा नहीं होती है।

गेंदा के फूल की मांग जन्मदिन से लेकर विवाह समारोह में सजावट के लिए होती है। गेंदा फूल आमतौर पर बाजार में 70 से 80 रुपये किलोग्राम बिकता है। वहीं, कुछ दवा निर्माता कंपनियां भी गेंदा फूल को खरीदती हैं। अमेठी सहित सुलतानपुर, अंबेडकर, प्रतापगढ़, लखनऊ और प्रयागराज आदि पड़ोसी जिलों में गेंदा फूल वहां की मंडियों में पहुंच रहा है।

जिला उद्यान अधिकारी डॉ. बल्देव प्रसाद ने बताया कि फूल की खेती को बढ़ावा देने के लिए किसानों को हर संभव मदद दी जाएगी। उन्हें उन्नत खेती का प्रशिक्षण दिलाया जाएगा।

होती है दोहरी कमाई :

दरअसल, जिस खेत में गेंदे का पौधा लगाते हैं, उसके सूखने से पहले ही निराई-गुड़ाई कर सब्जियों की बुआई कर दी जाती है। इस तरह एक बार में दो फसल लेने का प्रयास होता है। इससे कम खर्च में दोहरी लाभ मिलता है। सिंचाई में पानी भी कम लगता है। एक तरफ फूल तैयार होता है तो दूसरी तरफ मौसमी सब्जियां भी तैयार हो जाती हैं।

फूल की खेती से परिवार का होता भरण-पोषण :

गेंदा फूल की खेती करने वाले विजय कुमार मौर्या ने बताया कि वाराणसी से पौधा लाकर तैयार करते हैं। लखनऊ सुलतानपुर व प्रतापगढ़ जिलों की मंडियों में गेंदा भेजकर धन अर्जित करते हैं, जिससे परिवार का भरण-पोषण होता है। फूल की खेती करने के पहले उद्यान विभाग से उन्नतिशील प्रजाति व अन्य सुविधाओं की जानकारी हासिल की थी।

यह हैं समस्याएं :

जिले में फूल का बाजार उपलब्ध नहीं होने से किसानों को महानगरों में भेजने से पूरी कीमत नहीं मिल पाती हैं। विभागीय प्रशिक्षण व तकनीकी सलाह न मिलने से सभी किसान सही से खेती का लाभ नहीं उठा पा रहे हैं। ऐसे में किसान फूल की खेती करना बंद कर देते हैं।


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