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जिस दिन से तुम मुझसे रूठी हो..

जागरण संवाददाता अमेठी विश्व प्रसिद्ध शायर राहत इंदौरी ने शायरी व गजल से लोगों का दिल जीत लि

By JagranEdited By: Published: Tue, 16 Jul 2019 11:55 PM (IST)Updated: Thu, 18 Jul 2019 06:19 AM (IST)
जिस दिन से तुम मुझसे रूठी हो..
जिस दिन से तुम मुझसे रूठी हो..

जागरण संवाददाता, अमेठी : विश्व प्रसिद्ध शायर राहत इंदौरी ने शायरी व गजल से लोगों का दिल जीत लिया। जब वह शायरी पढ़ रहे थे तो पूरा हाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज रही थी। उसकी कत्थई आंखों में है जंतर-मंतर सब, चाकू वाकू, छुरियां खंजर वंजर सब। पढ़ा तो श्रोता झूम उठे। जिस दिन से तुम रूठी हो, मुझसे रूठे हैं चादर, वादर, तकिया वकिया सब। सुन लोग अपनी यादों में खो गए। मौसम विपरित होने के बाद भी राहत इंदौरी को सुनने के लिए उनके चाहने वाले अंत समय तक हाल में जमे रहे। राहत इंदौरी ने बीमार होने के बाद भी अपने चाहने वालों को निराश नहीं किया। जब वह मंच पर आए तो ऐसा लगा, जैसे एक नया उत्साह आ गया हो।

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जो था खराब सबसे, अच्छा वह निकल गया

हास्य रस के कवि अखिलेश द्विवेदी ने तो मंच पर आते ही मानों महफिल ही लूट ली। राजनीति से लेकर आज के बाबाओं तक पर उन्होंने अपनी रचना से ऐसा प्रहार किया कि पूरा कैंपस ही हंस पड़ा। जब उन्होंने जो था खराब सबसे वह अच्छा निकल गया। सुनाया तो सभी हंस कर लोटपोट हो गए। उन्होंने जब पढ़ा चच्चा ने राजनीति में बच्चा जिसे समझा, बच्चा वहीं चच्चा का भी चच्चा निकल गया। जितनी देर तक वह मंच पर हंसी के ठहाके लगते ही रहे।

जब से ख्वाब में तुम आने जाने लगे

सबा बलरामपुरी ने अपने गीत और शायरी से सभी का दिल जीत लिया। वह मंच पर आईं तो श्रोता झूम उठे। जब उन्होंने अपनी रचना जब से ख्वाब में तुम आने जाने लगे, हम गजल मीर की गुनगुनाने लगे, सुनाया तो सभी उनके साथ उनके शब्दों को दोहराने लगे तो पूरा वातावरण ही संगीत मय हो गया। भूल जाओगे तुम मगर वह भी दावा है, हम मगर आपको याद आने लगेंगे। पर भी श्रोता झूम उठे।

सियासत पर किया प्रहार तो बजीं खूब तालियां

कवि सम्मेलन का सफल संचालन करने के साथ ही प्रसिद्ध कवि डॉ. सुरेश अवस्थी ने बीच-बीच में सियासत व व्यवस्था पर खूब कटाक्ष किया। जिसे सुनकर श्रोताओं ने भी खूब तालियां बजाईं। उन्होंने नेताओं पर कटाक्ष करते हुए कहा कि नेता तो सिर्फ एक ही हुआ सुभाष चंद्र बोस। उसके बाद और कोई नेता नहीं हुआ। उन्होंने अपनी हास्य व्यंग्य से सिस्टम पर भी निशाना साधा और खूब कटाक्ष किया।

-कि पानी आंख का हो या जमीं का, इसे मरने न देना तुम कभी

फतेहपुर से आए कवि शिवशरण बंधु ने भ्रूण हत्या पर अपनी कविता के माध्यम से कड़ा प्रहार किया और ऐसे लोगों को कठघरे में खड़ा किया जो कोख में ही बेटियों को मार देते हैं। उन्होंने अपनी कविता कोख में मत मारिए बेटियों को पढ़कर समाज को भ्रूण हत्या को रोकने के लिए जागरूक करने की सफल कोशिश की। वहीं जल ही जीवन पर भी प्रकाश डालते हुए अपनी रचना की पानी आंख का हो या जमीं का, इसे मरने न देना तुम कभी पढ़कर पानी के महत्व के बारे में बताया।

दिल के दरवाजे पर उनका नाम..

देहरादून से आईं कवयित्री गौरी मिश्रा ने कार्यक्रम की शुरुआत में सरस्वती वंदना प्रस्तुत कर सभी को मां के साथ मंच से भी जोड़ दिया। दोबारा जब वह मंच पर आईं तो दिल के दरवाजे पर उनका नाम लिखा है, न फूलों में न कलियों में, न नारी में आती जो मुझको मां की थाली में आती सुनाया तो सभी मंत्रमुग्ध हो गए।


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