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राहुल गांधी की अमेठी के 'कामगारों' को भाया नरेंद्र मोदी का गुजरात

अमेठी के तमाम लोगों के लिए सूरत, अहमदाबाद का मतलब अब भी परदेश है। रोजी, रोटी की तलाश में यहां के लोगों का वहां आना जाना बना ही रहता है।

By Ashish MishraEdited By: Published: Mon, 04 Dec 2017 06:51 PM (IST)Updated: Tue, 05 Dec 2017 12:40 PM (IST)
राहुल गांधी की अमेठी के 'कामगारों' को भाया नरेंद्र मोदी का गुजरात

अमेठी [दिलीप सिंह]। कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए नामाकंन कर चुके अमेठी के सांसद राहुल गांधी के संसदीय क्षेत्र के लोगों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का गुजरात काफी भा गया है। काम के मामले में यहां से दस हजार से अधिक लोग गुजरात में हैं। 

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सूरत, अहमदाबाद, बड़ौदा से लेकर गुजरात के लगभग सभी बड़े शहरों में अमेठीवंशी रह रहे हैं। वहां पर यहां के लोग कामगीर से लेकर व्यवसाई व राजनीति तक में किस्मत आजमा रहे। आकड़ों पर गौर करे और जानकार लोगों की माने तो गुजरात में अमेठी के लगभग दस हजार परिवार रहते हैं। गुजरात में चुनाव हो रहे है और वहां अमेठी की बात हो रही है। ऐसे में अमेठी-गुजरात कनेक्शन काफी दिलचस्प हो गया है।

कपड़ा व हीरा उद्योग में किस्मत संवारने की लालसा पाले लंबे समय से अमेठी के लोग सूरत जाते रहे हैं। धीरे-धीरे बड़ी संख्या में रोजगार की तलाश में पहुंचे लोगों का गुजरात के कुछ खास शहरों से खास नाता बन गया और तमाम लोग वहीं के होकर रह गए। 

जिला मुख्यालय से 12किमी. दूर बसा गांव पूरे भदौरियन निवासी नरेंद्र सिंह की सूरत में दुकान है, उनका पूरा परिवार वहीं रहता है। शादी विवाह या फिर किसी खास मौके पर ही यहां आना होता है। तिलोई के चंद्रकिशोर मिश्र की नई पीढ़ी के लिए गुजरात ही मातृभूमि है। 

सरायभागमानी के पांडेपुर गांव के सूर्यपाल चौहान व बाबूलाल चौहान का आधा परिवार में अहमदाबाद  में रहता है। जन्में भले ही अमेठी गांवों में हैं, लेकिन गुजरात में इंजीनियङ्क्षरग से लेकर अन्य छोटे बड़े काम कर रहे। हरदों के मूल निवासी व गौरीगंज से विधानसभा का चुनाव लड़ चुके रामभवन ओझा का सूरत में व्यवसाय है। ओझा ने वहां मानवाधिकार पार्टी के नाम से पार्टी बनाई है और गुजरात चुनाव में भी खम ठोंक रहे हैं।

सूरत बदल रहा अमेठी की सूरत

अमेठी के सहजीपुर निवासी हरीराम गुप्ता व श्रीराम गुप्ता 15 वर्ष पहले सूरत गए थे। वहां पर सब्जी का धंधा शुरू किया और आज उनकी माली हालत बिल्कुल बदल गई है। लालूपुर के राजेंद्र सिंह व रामू सिंह का सूरत में हीरा का व्यवसाय है। उनके परिजनों की माने तो यहां का भी पूरा खर्च उन्हीं की कमाई से चलता है।

बरौलिया के महेश व लाल बहादुर कपड़े का काम करते हैं, जब दोनों परदेश गए तो गांव में उनके परिवार की हालत भी दूसरे परिवारों की तरह ही थी, लेकिन आज वक्त बदल गया है और उनकी हैसियत पहले से बढ़ गई है। 

अमेठी का 'परदेश' है सूरत व अहमदाबाद

अमेठी के तमाम लोगों के लिए सूरत, अहमदाबाद का मतलब अब भी परदेश है। रोजी, रोटी की तलाश में यहां के लोगों का वहां आना जाना बना ही रहता है। सिंहपुर के सातन पुरवा के दर्जनों लोग सूरत में दुपट्टा रंगाई के कारोबार से जुड़े हुए है। खारा, टेढई, जैतपुर के लोगों की भी वहां अच्छी खासी संख्या है।

परिवारीजन नहीं चाहते की हो रिश्तों पर सियासत

गुजरात में रहने वाले लोगों के परिवार के लोग नहीं चाहते, कि उनके अपनों के वहां रहने पर कोई सियायत हो। उनका तो बस इतना ही कहना है, कि देश में कोई कहीं भी रोजी-रोटी के लिए जा व रहा सकता है। इसे सियासत से नहीं जोडऩा चाहिए।


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