कण-कण गाता, आजादी की गौरव गाथा
अमेठी के हर कोने में क्रांति की ज्वाला जली थी। यहां से जुड़ी आजादी के संघर्ष की तमाम कहानियां हैं।
दिलीप सिंह, अमेठी
देश को आजादी दिलाने के लिए हमारे पूर्वजों ने अपना जीवन बलिदान कर दिया और हमारे आज को सुंदर व सुरक्षित करने के लिए उन्होंने अपने आज को अंग्रेजी हुकूमत से संघर्ष में होम कर डाला। 1857 में क्रांति की ज्वाला जली तो देश को आजादी दिलाकर ही यहां के सपूतों ने दम लिया। एक-दो नहीं सैकड़ों की संख्या में भारत मां की बलिवेदी पर यहां के वीरों ने अपना लहू अर्पित कर इतिहास लिख डाला। जिसकी अमर गाथा आज भी अमेठी का कण-कण गा रहा है।
भाले सुल्तानियों की वीरता की कहानी अब भी कादू के नाले के बहते पानी के साथ यहां घर-घर सुनाई पड़ती है। कादू नाला पुल के आगे स्थित कुआ अब भी भाले सुल्तानियों की बलिदान की गवाही दे रहा है, जिसमें 1958 में आठ मार्च को अंग्रेजी फौज ने वीरगति पाए वीर जवानों के सिर को काट के डाला था। किसानों के बलिदान की अमर गाथा फुरसतगंज का शहीद स्थल नई पीढ़ी को समझा रहा है। स्मारक उसी स्थान पर बना है, जहां 1947 में छह जनवरी को किसानों पर गोलियां दागी गई थी। गौरीगंज रेलवे स्टेशन से आजादी की बड़ी याद जुड़ी है। यहीं जिले के आजादी के दीवाने किसानों ने महात्मा गांधी की मुलाकात हुई थी, लेकिन रेलवे स्टेशन या फिर उसके आस-पास भी उस घटना की याद दिलाती न तो कोई प्रतिमा अब तक लगी और न ही कहीं घटना उल्लेख ही इस तरह से है, कि नई पीढ़ी उसे जान व समझ सके। फोटो-3
-फर्ज है हमारा सपूतों का सम्मान करना
हमें अपने वीर सपूतों पर गर्व है। अमेठी की माटी में देश के लिए बलिदान देने वालों का लहू मिला है। इस मिट्टी का सम्मान करना सभी का फर्ज है।
दिनेश सिंह, एसपी, अमेठी
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धरोहर को संजोएगें हम
आजादी से जुड़ी धरोहर को बचा के रखाने व उससे प्रेरणा लेने की चाहत सभी के मन में होनी चाहिए। प्रशासनिक स्तर पर हम धरोहरों को संरक्षित करने का प्रयास करेंगे।
अरुण कुमार
डीएम, अमेठी