रोज 25 बच्चों को मुफ्त में पढ़ाते हैं दिव्यांग नीलेश
अंबेडकरनगर : नियति ने भले ही शारीरिक पूर्णता को अधूरा छोड़ दिया हो, लेकिन इस अधूरेपन
अंबेडकरनगर : नियति ने भले ही शारीरिक पूर्णता को अधूरा छोड़ दिया हो, लेकिन इस अधूरेपन को कभी भी अपने मार्ग की बाधा दिव्यांग नीलेश यादव ने नहीं बनने दिया। खुद भी अपनी शैक्षिक प्रगति को मुकाम देने में जुटे हैं तो नौनिहालों में भी शिक्षा के प्रकाश पुंज को बिखेरने में अपना योगदान प्रदान कर रहे हैं। कृत्रिम पैरों के सहारे एवरेस्ट फतह करने वाली अरूणिमा सिन्हा को अपना आदर्श मानने वाले रामनगर विकास खंड के सिपाह गांव निवासी 30 वर्षीय नीलेश यादव जन्म से ही दिव्यांग हैं। दोनों पैर तो हैं लेकिन वह निर्जीव हैं, जो सुगम जीवन पथ पर बड़ी बाधा बने। साथ ही गरीबी भी आड़े आई, लेकिन नीलेश ने हार नहीं मानी। गरीबी व संसाधनों की कमी के बावजूद खुद तो उन्होंने लोकमान्य ग्राम उद्योग इंटर कॉलेज नरियांव से हाईस्कूल एवं इंटरमीडिएट की शिक्षा ग्रहण की तथा स्नातक और परास्नातक की डिग्री राम अवध स्मारक महाविद्यालय कसदहा शुकुलबाजार से हासिल की। वर्तमान में वह डीएलएड (बीटीसी) का प्रशिक्षण ¨सगारी देवी महाविद्यालय रामनगर से प्राप्त कर रहे हैं। नीलेश के मुताबिक वह शिक्षक बनकर समाज सेवा करना चाहते हैं। समाज सेवा का यही जुनून है कि नीलेश प्रतिदिन अपराह्न 3:30 से सात बजे तक गांव में ही अपने घर पर करीब 25 बच्चों को निशुल्क पढ़ाने का कार्य काफी दिनों से कर रहे हैं, जो अब भी जारी है। इस कार्य के जरिए बच्चों के लिए भी आदर्श पुरूष बने नीलेश कहते हैं कि जज्बा व जुनून हो तो नियति का कठोर दंड भी रास्ते की रुकावट नहीं बन सकती, बशर्ते सोच सकारात्मक हो।