बच्चों की देखभाल संग मरीजों की सेवा में समर्पित 'संगीता'
खुद संक्रमित होने के बाद भी सेवा से नहीं डिगा हौसला बिना अवकाश लिए लगातार ड्यूटी निभा रहीं एएनएम
अंबेडकरनगर: बच्चों की परवरिश से बढ़कर एक मां के लिए कुछ नहीं होता, पर जब पूरी मानवता पर संकट आ जाए तो वह अपनी खुशियों और चिताओं को दरकिनार कर मुश्किलों से लड़ने को भी तैयार दिखाई देती है। सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र जहांगीरगंज पर तैनात एएनएम 'संगीता चौरसिया' की कहानी भी कुछ ऐसी ही है।
कोरोना की इस दूसरी लहर में आमजनों की पीड़ा देख संगीता चौरसिया अपने छोटे-छोटे दो बच्चों को घर पर रख मरीजों की सेवा में दिन-रात जुटी रहीं। इस दौरान वह खुद भी पाजिटिव हो गईं। जीवन-मौत से कई दिनों तक संघर्ष करने के बाद ठीक हुई तो फिर बिना झिझक अपने मिशन में जुट गई।
वर्ष 2012 से यहां तैनात संगीता चौरसिया बताती हैं कि बच्चों से दूर रहने की कमी काफी खलती है, लेकिन मरीजों की सेवा इससे कहीं ज्यादा जरूरी है। ठीक होने के बाद मरीज जो आशीर्वाद देते हैं, उससे मन आनंदित हो उठता है। इस बीच जब समय मिलता है, तो बच्चों से भी लाड़ लड़ा लेती हैं। वह बताती हैं कि कोविड की पहली लहर में भी मरीजों के सेवा की कमान उन्हीं के हाथों में रही। इस बार जब दूसरी घातक लहर आई तो फिर उन्हें यह जिम्मेदारी दी गई। चिकित्सालय में टीकाकरण की डोर भी उन्हीं के हाथों में हैं। पांच लाख से अधिक आबादी का दायित्व इसी चिकित्सालय पर है।
अब तक 600 गर्भवतियों का करा चुकी प्रसव: संगीता केवल कोविड मरीजों की देखभाल ही नहीं करतीं, बल्कि प्रसव कराने का दायित्व भी संभाला है। आठ घंटे की सेवा के बाद छह घंटे अलग से प्रसव के मरीजों की देखभाल करती हैं। कोरोना काल में अब तक वह लगभग 600 प्रसव कराकर जच्चा-बच्चा दोनों को सुरक्षित घर भेज चुकी हैं।
कोविड के कारण जहां कर्मचारी कम हैं, वहीं संगीता ने किसी भी दिन अवकाश नहीं लिया। रविवार को भी वह प्रसव पीड़ित महिलाओं के लिए संकटमोचक साबित हो रही हैं। संगीता बताती हैं कि जो सुकून दर्द से कराहते लोगों को मुस्कान देकर मिलता है, वह अन्यत्र संभव नहीं है।