दागी राइस मिलों को नाम बदल कर दे दिया लाइसेंस
धान की खरीद में किसानों को लाभ हो या न हो लेकिन इसमें राइस मिलों की चांदी हो गई है।
अंबेडकरनगर: धान की खरीद में किसानों को लाभ हो या न हो, लेकिन इसमें राइस मिलों की चांदी रहती है। कुटाई व प्रोत्साहन धनराशि आदि मिलने के बाद भी क्रय एजेंसियां व मिलर साठगांठ कर कागजों पर किसान से खरीद कर लेती हैं।
इसी का नतीजा है कि जब समीक्षा होती है तो कस्टम मिल्ड राइस (सीएमआर) बकाया दिखाई देता है। प्रतिवर्ष लगभग करोड़ रुपये का सरकारी चावल का गोलमाल हो जाता है। नए सत्र में खरीद के लिए कई मिल संचालकों ने नाम बदलकर नया पंजीयन करा लिया, इसमें दागी मिलें भी शामिल हैं। फिलहाल विभाग का दावा है कि सीएमआर का सत्यापन पूर्ण हो चुका है, लेकिन अभी तक रिपोर्ट नहीं मिल सकी है। खाद्य विभाग, पीसीएफ और अन्य क्रय एजेंसियों के माध्यम से धान और गेहूं की खरीद की जाती है। सबसे अधिक लापरवाही धान खरीद में होती है। बीते वर्ष धान खरीद होने के पहले कुल 39 राइस मिलों को इस आधार पर विभाग से संबद्ध नहीं किया गया कि उनके ऊपर सीएमआर का बकाया, मुकदमा दर्ज जैसी कार्रवाई हो चुकी थी। लेकिन, पीसीएफ व अन्य एजेंसियों पर खरीद का दबाव बढ़ा तो अधिकारियों ने तत्काल ऐसे लोगों का नाम परिवर्तन कर उन्हीं मिलों को नए नाम से संबद्ध कर लिया, इसमें साईंबाबा राइस मिल, देवधाम राइस मिल, महावीर फूड, ग्लांस केयर फूड, मीसम फूड आदि शामिल हैं। विभाग के मुताबिक ऐसी 39 राइस मिलों पर रिकवरी की तलवार लटकी है। तत्कालीन डीएम ने ऐसे आधा दर्जन से अधिक मिल मालिकों पर मुकदमा भी दर्ज कराया था। अब दोबारा सीएमआर बकाया होने पर शासन सख्त हो गया है। पीसीएफ, पंजीकृत समितियां, मल्टी सेक्टोरल, साधन सहकारी समितियां आदि जांच के दायरे में आई हैं।
जिन राइस मिलों पर सीएमआर बकाया है, उन सभी का सत्यापन पूर्ण हो चुका है। शुक्रवार तक सभी की रिपोर्ट आ जाएगी। शासन को रिपोर्ट भेजने के बाद रिकवरी की कार्रवाई की जाएगी। नामों में फेरबदल के मामले की जांच होगी और कार्रवाई भी होगी।
राजेश कुमार, जिला खाद्य एवं विपणन अधिकारी