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आधी-अधूरी दवाओं के भरोसे चल रहा मेडिकल कॉलेज

अंबेडकरनगर : सरकारी अस्पतालों में आने वाले मरीजों को इलाज की बेहतर सुविधा देने का सर

By JagranEdited By: Published: Mon, 24 Sep 2018 10:10 PM (IST)Updated: Mon, 24 Sep 2018 10:10 PM (IST)
आधी-अधूरी दवाओं के भरोसे चल रहा मेडिकल कॉलेज

अंबेडकरनगर : सरकारी अस्पतालों में आने वाले मरीजों को इलाज की बेहतर सुविधा देने का सरकार की तरफ से दावा तो किया जा रहा है, लेकिन वास्तविकता की धरातल पर ये दावे हवा हवाई ही साबित हो रहे हैं। राजकीय मेडिकल कॉलेज में दवाओं का टोटा है। कहने को तो शासन से यहां 364 प्रकार की दवाओं को रखने का मानक बनाया गया है, लेकिन हकीकत में आधी दवाएं भी नहीं है। बताया जा रहा है कि पूरे मेडिकल कॉलेज में 40-45 प्रकार की ही दवाएं हैं, जिनसे पूरा अस्पताल चल रहा है। महामाया राजकीय एलोपैथिक मेडिकल कॉलेज में इस समय तकरीबन ढाई हजार मरीजों की ओपीडी होती है, लेकिन यहां आने वाले मरीजों को ज्यादातर बाहर के दवाओं पर ही निर्भर रहना पड़ता है। कुछ विभाग की दवाएं तो मिल जाती हैं, लेकिन अधिकांश विभाग ऐसे हैं जिनकी इक्का-दुक्का दवाइयां छोड़ सब बाहर से ही लेनी पड़ रही हैं। बताया जा रहा है मेडिकल कालेज में कुल 364 प्रकार की दवाइयों को रखने का मानक शासन से बनाया गया है। विभागीय जिम्मेदारों के मुताबिक यहां 144 प्रकार की दवाइयां हैं, लेकिन ये महज कागजी कोरम ही है। हकीकत में इस समय कुल 44 प्रकार के आसपास ही दवाइयां हैं। मेडिकल कॉलेज में स्किन विभाग, मानसिक रोग, टीबी चेस्ट, बाल रोग सहित कई अन्य ऐसे विभाग हैं जिनकी दवाइयां मेडिकल कॉलेज में न के बराबर ही रहती हैं। इन मरीजों को इक्का-दुक्का दवा ही अंदर से मिलती है शेष बाहर से ही खरीदना पड़ रहा है। सोमवार को अस्पताल आए तीमारदार रंजीत, रणजीत व इस्माइल का कहना है कि दव वितरण खिड़की पर भले की भीड़ दिखाई पड़ रही है, लेकिन कई दवाएं ऐसी हैं जो मेडिकल स्टोर से लेना पड़ रहा है। प्रधानाचार्य डॉ. पीके ¨सह का कहना है कि जरूरत के मुताबिक दवाएं पर्याप्त मात्रा हैं। यदि कहीं पर कोई कमी पाई जाती है तो उसे दूर किया जाएगा।

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----------- -गिने चुने मेडिकल स्टोरों पर मिलती हैं दवाइयां

अंबेडकरनगर : मेडिकल कॉलेज के चर्म रोग, मानसिक, टीबी चेस्ट, बाल रोग आदि के मरीजों को जो दवाएं अंदर नहीं मिलती वह बाहर गिने चुने मेडिकल स्टोरों पर ही मिलती हैं। एक विभाग के डॉक्टर द्वारा लिखी दवा एक मेडिकल स्टोर पर तो दूसरे विभाग के डॉक्टर की दवा दूसरे स्टोर पर ही मिलती है। इसलिए इन मेडिकल स्टोर संचालकों द्वारा मरीजों से मनमुताबिक कीमत भी ली जाती है।


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