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आंसू...आक्रोश और आरोप, हासिल कुछ नहीं, अपनी ही सरकार में नारे लगाते थके प्रतापगढ़ के भाजपा नेता

सत्ता दल की लाचारी कई बार पब्लिक ने देखी। कभी सांसद को लोकसभा स्पीकर को पत्र लिखना पड़ा। विधायक को डीएम के कार्यालय पर धरना देना पड़ा। संगठन के नेता को पुलिस ने पानी पी-पीकर गाली दी। कभी विधायक को डीएम व एसपी के खिलाफ सीएम से शिकायत करनी पड़ी।

By Ankur TripathiEdited By: Published: Sun, 04 Jul 2021 07:00 AM (IST)Updated: Sun, 04 Jul 2021 08:09 AM (IST)
आंसू...आक्रोश और आरोप, हासिल कुछ नहीं, अपनी ही सरकार में नारे लगाते थके प्रतापगढ़ के भाजपा नेता
प्रतापगढ़ के भाजपाइयों के दर्द का गुबार जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में कई बार फूटा।

प्रतापगढ़, राज नारायण शुक्ल राजन। प्रदेश से लेकर केंद्र तक में सरकार है। पुलिस-प्रशासन भी अपना ही समझिए। इसके बाद भी उपेक्षा का दर्द। आक्रोश यह कि प्रशासन उनकी सुनता ही नहीं। किससे कहें कोई समझता ही नहीं। भाजपाइयों के दर्द का गुबार जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में कई बार फूटा। अपनी ही सरकार के खिलाफ नारे तक लगाने पड़े, पर अफसोस इससे कुछ हासिल न हो सका। यानि...बड़े बेआबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले।

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डीएम व एसपी के खिलाफ सीएम से शिकायत करनी पड़ी

सत्ता दल की लाचारी कई बार पब्लिक ने देखी। कभी सांसद को लोकसभा स्पीकर को पत्र लिखना पड़ा। कभी विधायक को डीएम के कार्यालय पर धरना देना पड़ा। कभी संगठन के नेता को पुलिस ने पानी पी-पीकर गाली दी। कभी विधायक को डीएम व एसपी के खिलाफ सीएम से शिकायत करनी पड़ी। जिलाध्यक्ष के पत्र को वायरल कर डीएम ने पार्टी की किरकरी की। अब जिला पंचायत का चुनाव आया तो इस तरह के नजारे आम हो गए। भाजपा के जिला पंचायत अध्यक्ष की प्रत्याशी क्षमा सिंह के पति अभय सिंह पप्पन को मिसाल के तौर पर लें तो संगठन में कार्यकर्ता की पीड़ा को समझा जा सकता है। वह फूट-फूटकर रोए। कई बार रोए। उनके आंसू की नुमाइश भी हुई, पर हासिल कुछ न हो सका।

मतदान के दिन भी संगठन दयनीय दिखा

यही नहीं मतदान के दिन भी संगठन दयनीय दिखा। जब सांसद, विधायकों, जिलाध्यक्ष, जिला प्रभारी समेत नेताओं को विपक्षी की तरह धरने पर लोगों ने बैठे देखा। गला फाड़कर उन्होंने अपनी ही सरकार के डीएम, एसपी, एडीजी पर आरोपों के तीर चलाए। उनको शराब माफिया का हमदर्द और जाने क्या-क्या कहा। आक्रोश में मु_ियां भींची गईं। ताल ठोंकी गई। अफीम कोठी में लगा ही नहीं कि धरना सत्ता वाले दे रहे हैं। आरोपों की बौछार ऐसी कि शायद सरकार भी जवाब न खोज सके। यह सब होने के बाद प्रशासन अपने कार्य में लगा रहा। चुनाव हो गया, जीत का प्रमाण पत्र बंट गया और इधर भाजपा वालों के सपने बिखर गए। बड़े नेता कुर्ता झाड़कर चले गए। कार्यकर्ता उनको कोसते हुए लौट गए। कोई कुछ कहने-सुनने की स्थिति में नहीं रहा। हां विपक्षी दलों को जरूर मौका मिल गया है। वह कहने लगे हैं कि सत्ता का जादू न चल पाने पर भाजपा वाले प्रलाप कर रहे हैं। इतनी ही एकता आपस में होती तो यह दिन देखने ही क्यों पड़ते।

नहीं मानी थी बड़ों की बात

अफीम कोठी में कई नेता आपस में बात कर रहे थे। कह रहे थे कि प्रदेश के नेता कह रहे थे कि जीतने की उम्मीद हो तो ही प्रत्याशी उतारना। जिले स्तर पर इस बात को नहीं माना गया। क्षमा को आगे करके भाजपा ने चंद सदस्यों के बल पर ताल ठोंक दी। जोश में होश खोने का परिणाम सामने है।

जो कभी न बोले, वह भी गुर्राए

अफीम कोठी में कई नौसिखिए नेता भी तेवर में दिखे। किसी नेता के बगल खड़े होने लायक क्या बने जो धारदार आरोप लगा रहे थे कि लोग सुनकर दंग रह जा रहे थे। नारों में हवा भर रहे एक नवागंतुक भाजपाई ने कहा कि जरा लहराकर नारे लगाओ। चुनाव तो रद होकर ही रहेगा। हम चुप न रहेंगे।

न...न, हम क्यों करें आत्मदाह

अफीम कोठी में धरना प्रदर्शन के दौरान पप्पन ने कहा मिट्टी का तेल लाओ, मैं आत्मदाह करूंगा। दो-चार और ने कहा कि हम भी करेंगे, तभी एक दिमागी नेता ललकारा...हम संघर्ष करेंगे, आत्मदाह नहीं। हम जान क्यो दें। हम लोकतंत्र का आत्मदाह नहीं होने देंगे। उसे बचाकर ही दम लेंगे।


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