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Vijay Dashami Festival of Prayagraj : प्रयागराज में शंकरगढ़ राजघराने के राजगद्दी समारोह में दिखी राजशाही की झलक

शंकरगढ़ में रामभवन चौराहा स्थित राजभवन परिसर में विजयदशमी के मौके पर आयोजित ऐतिहासिक राजगद्दी समारोह का शुभारंभ वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ हुआ। राजशाही शानो-शौकत के साथ समारोह जब शुरू हुआ तो देखते ही बनता था। अमूमन अब टीवी सीरियल व फिल्मो में ही यह दृश्य दिखाई पड़ते हैैं।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Published: Tue, 27 Oct 2020 01:57 PM (IST)Updated: Tue, 27 Oct 2020 01:57 PM (IST)
Vijay Dashami Festival of Prayagraj : प्रयागराज में शंकरगढ़ राजघराने के राजगद्दी समारोह में दिखी राजशाही की झलक
महेंद्र प्रताप सिंह ने कहा कि विजयदशमी का पर्व अधर्म पर धर्म की विजय का प्रतीक है।

प्रयागराज, जेएनएन। देश में लोकतंत्र की शुरुआत के साथ ही राजशाही का युग समाप्त हो चुका है। अलबत्ता कई रॉयल फेमिली अब भी प्राचीन परंपराओं के साथ विरासत को संजो कर रखा है। इनमें से ही एक है शंकरगढ़ राजघराना। उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की सीमा पर स्थित है शंकरगढ़ स्टेट। इस राजघराने की 36वीं पीढ़ी द्वारा राजगद्दी समारोह का आयोजन इस बार हुआ। इसमें विरासत के साथ ही परंपरा और राजशाही की झलक दिखी।

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राजा का तिलक हुआ और मुकुट पहनाकर उन्हें गद्दी पर बैठाया गया

शंकरगढ़ में रामभवन चौराहा स्थित राजभवन परिसर में विजयदशमी के मौके पर आयोजित ऐतिहासिक राजगद्दी समारोह का शुभारंभ वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ हुआ। राजशाही शानो-शौकत के साथ समारोह जब शुरू हुआ तो देखते ही बनता था। अमूमन अब टीवी सीरियल व फिल्मो में ही इस तरह के दृश्य दिखाई पड़ते हैैं। समारोह में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान रामचंद्र के अयोध्या लौटने पर फूलों की वर्षा हुई। दर्शक इस दृश्य को देख विभोर हो गए। मानो अयोध्या का दृश्य सामने हो। इसके बाद भगवान रामचंद्र को राजशाही मुकुट पहनाया गया। जैसे ही राजा का तिलक हुआ और मुकुट पहनाकर उन्हें गद्दी पर बैठाया गया, वैसे ही जै श्रीराम के उद्घोष से राजमहल परिसर गूंज उठा।

स्‍थानीय लोगों को नजर स्‍वरूप मुद्रा भेंट कर अभिवादन

इस राजशाही परिवार के वारिश राजा महेंद्र प्रताप सिंह हैैं। उन्हें स्थानीय लोगों ने नजर स्वरूप मुद्रा भेंट कर अभिवादन किया। महेंद्र प्रताप सिंह ने कहा कि विजयदशमी का पर्व अधर्म पर धर्म की विजय का प्रतीक है। जटायू ने माता सीता की रक्षा कर भगवान श्रीराम का गोद पाया। द्रौपदी के चीर हरण में आखें बंद करने वाले भीष्म पितामह को बाड़ों की शैय्या मिली। कहा कि दुराचार, नकारात्मकता एवं अहंकार रूपी रावण का विनाश ही आज के पर्व का मुख्य उद्देश्य है। हमें बुराइयों से घबराना नहीं चाहिए। बुराई कितनी भी ताकतवर क्यों न हो जीत हमेशा अच्छाई की ही होती है। यदि समाज में कुछ गलत कार्य हो रहा हो तो विजयदशमी पर्व पर उसका विरोध करने का संकल्प लेना चाहिए।


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