Coronavirus Effect : श्रुति परंपरा को ऑनलाइन जीवंत कर रहे वेदपाठी, मंत्रों को कर रहे कंठस्थ Prayagraj News
जो विद्यार्थी अपने घर जा चुके हैं अथवा जो अलग-अलग जगहों में अभी रह रहे हैं उनके लिए विद्यालय से ही ऑनलाइन पढ़ाई की व्यवस्था कराई जा रही है।
प्रयागराज, जेएनएन। कोरोना वायरस के संक्रमण की वजह से गुरुकुल परंपरा भी प्रभावित हुई है। ऐसे में गुरुकुल के विद्यार्थी भी ऑनलाइन शिक्षा की ओर बढ़ चुके हैं। अपने-अपने घरों से मोबाइल व लैपटॉप के जरिए वेद, संस्कृत, गणित, विज्ञान और अन्य विषयों की पढ़ाई कर रहे हैं। कह सकते हैैं कि श्रुति परंपरा ऑनलाइन जीवंत हो चली है। गूगल मीट के माध्यम से आचार्य द्वारा बोले मंत्रों को वेदपाठी कंठस्थ कर रहे हैं। आचार्य समय सारिणी बनाकर अध्यापन करवा रहे हैैं।
वेद विद्यालयों के समन्वयक ने कहा
वेद विद्यालयों के समन्वयक आचार्य चंद्रभानु शर्मा कहते हैैं कि बच्चों की शिक्षा प्रभावित न हो, इसलिए यह पहल की गई है। जो विद्यार्थी अपने घर जा चुके हैं अथवा जो अलग-अलग जगहों में अभी रह रहे हैं, उनके लिए विद्यालय से ही ऑनलाइन पढ़ाई की व्यवस्था कराई जा रही है।
एप के सहारे चल रहा पठन-पाठन
आचार्य चंद्रभानु ने कहा कि आवश्यकता ही आविष्कार की जननी होती है, ऐसे में उन्होंने एप की जानकारी ली और विद्यार्थियों को जोडऩे का प्रयास किया। प्रयास हो रहा है कि विद्यार्थियों को निजी साधनों से बुलाया जाए पर अभी सरकार की गाइडलाइन का इंतजार है।
निरुक्त, अष्टाध्यायी का करा रहे अध्ययन
महावीर भवन व केशर भवन मेें संचालित वेद विद्यालयों के प्रधानाचार्य पंकज शर्मा के अनुसार प्रतिदिन दो घंटे ऑनलाइन कक्षाएं चलाई जा रही हैं। एक विषय की कक्षा 40 मिनट चलती है। वर्तमान में वह विद्यार्थियों को अष्टाध्यायी, निरुक्त, याज्ञवल्क की शिक्षा संबंधी पाठ पढ़ा रहे हैं। स्वर व मंत्रोच्चार आदि के तौर तरीके भी सिखाए जा रहे हैं।
बोले गुरुकुल के छात्र
वर्तमान में मैं वेद के अंग निरुक्त शास्त्र एवं व्याकरण की पढ़ाई ऑनलाइन कर रहा हूं। सभी कक्षाएं गूगल मीट पर चल रही हैं। वाट्सएप पर ग्रुप बनाकर भी आचार्य प्रश्न-उत्तर का अभ्यास करा रहे हैं।
- कमल त्रिपाठी, वेद विभूषण सप्तम वर्ष
अभी आचार्य याज्ञवल्क्य शिक्षा का अध्ययन करा रहे हैं। गीता एवं स्त्रोत की भी कक्षाएं चल रही हैं। संध्या वंदन के बारे में भी पढ़ाया जा रहा है। संस्कृत व्याकरण की भी जानकारी दी जा रही है।
- अक्षत शुक्ल, वेद भूषण चतुर्थ वर्ष