महादेवी वर्मा की जन्मतिथि : दु:ख की बदली नहीं अग्निरेखा भी थीं छायावादी कवियत्री Prayagraj News
छायावाद कवियत्री महादेवी वर्मा की 113वीं जन्मतिथि आज है। वह वर्ष 1960 में प्रयाग महिला विद्यापीठ की कुलपति चुनी गईं थीं। उन्हें हिंदी साहित्य की आधुनिक मीराबाई भी कहा जाता है।
प्रयागराज, [गुरुदीप त्रिपाठी]। छायावाद की दीपशिखा साहित्यकार महादेवी वर्मा की आज यानी गुरुवार को 113वीं जन्मतिथि है। ऐसे में उनके जीवन, व्यक्तित्व से संबंधित चंद बातें हम आपसे साझा कर रहे हैं। 26 मार्च 1907 को फाल्गुनी पूर्णिमा यानी होली के दिन जन्मीं महादेवी वर्मा ने महज छह वर्ष की उम्र में अपनी रचनाओं से न सिर्फ विरह, वेदना, कष्टों और दु:खों की अनुभूति को गंभीर स्वर दिए बल्कि वह वेदना और दुखों से पार पाने की प्रेरणा भी दे गईं। घर में विराजमान भगवान शलिग्राम को ठंड के मौसम में मां को ठंडे पानी से नहलाते देखकर महादेवी ने 'मां के ठाकुर जी भोले हैं...' पंक्तियों से संवेदना व्यक्त की थी। उन्होंने ये संदेश दिया कि वह सिर्फ 'दु:ख की बदली' नहीं बल्कि 'अग्निरेखा' भी हैं।
महादेवी वर्मा ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक किया था
हिंदी साहित्य की आधुनिक मीराबाई महादेवी वर्मा का जन्म फर्रुखाबाद में हुआ था। सात पीढिय़ों के बाद परिवार में पहली बार पुत्री का जन्म होने पर उनके बाबा बांके बिहारी ने घर की देवी मानते हुए महादेव से प्रेरित होकर उनका नाम महादेवी रखा। बचपन में ही मां शिवरानी और पिता बाबू गोविंद प्रसाद वर्मा बेटी की प्रतिभा को समझ चुके थे। मात्र नौ वर्ष की आयु में विवाह ने उनकी शिक्षा को बाधित किया। वह वापस मायके आ गईं और क्राइस्ट चर्च कॉलेज प्रयाग में शिक्षा प्रारंभ की। वर्ष 1929 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बीए पास करते-करते स्थापित कवियत्री बन चुकी थीं। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के संपर्क और प्रेरणा से सामाजिक कार्यों के प्रति रुझान बढ़ा तो उन्होंने प्रयाग और उसके आसपास के गांव में बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया। 11 सितंबर 1987 को प्रयागराज में उनका निधन हुआ।
महादेवी वर्मा
जन्म : 26 मार्च 1907
निधन : 11 सितंबर 1987
महादेवी ने विधान परिषद तक का किया था सफर
वर्ष 1918 से 1936 तक छायावादी रचनाएं प्रमुखता से लिखी गईं। महादेवी की रचना नीहार उनके मैट्रिक पास होने से पहले ही लिखी जा चुकी थी। 1932 में एमए पास करने के साथ ही उन्हें प्रयाग महिला विद्यापीठ के प्रधानाचार्य का दायित्व मिल गया। वर्ष 1933 में उन्होंने मीरा जयंती की शुरुआत की। वर्ष 1952 में उन्हें विधान परिषद का सदस्य मनोनीत किया गया। वर्ष 1955 में उन्हें दिल्ली में साहित्य अकादमी का संस्थापक सदस्य चुना गया। वर्ष 1957 में पद्म भूषण से सम्मानित की गईं। वर्ष 1960 में उन्हें प्रयाग महिला विद्यापीठ का कुलपति चुना गया।
निराला ने मांगा था राखी पर 12 रुपये
साहित्यकार यश मालवीय बताते हैं कि निराला, जयशंकर प्रसाद और सुमित्रानंदन पंत देश के किसी भी हिस्से में रहें लेकिन वह रक्षाबंधन पर महादेवी वर्मा से राखी बंधवाने जरूर पहुंचते थे। सभी बड़े साहित्यकार उन्हें बड़ी दीदी कहते थे। इनमें जयशंकर प्रसाद, सुमित्रा नंदन पंत, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला प्रमुख थे। एक बार रक्षाबंधन पर निराला के पास पैसे नहीं थे। किसी तरह वह राखी बंधवाने महादेवी के आवास पर पहुंचे। घर पहुंचते ही रिक्शे वाले को पैसा देना था और राखी के साथ मिठाई भी खरीदनी थी। निराला ने आवाज लगाया। दीदी, जल्दी आओ...। महादेवी के आते ही निराला बोले, दीदी 12 रुपये दो। महादेवी ने उन्हें 12 रुपये देते हुए वजह पूछा तो निराला ने बड़े ही मासूमियत से जवाब दिया कि इसमें से दो रुपये रिक्शे वाले को देने हैं, बाकी से मिठाई व राखी लानी है और फिर तुम्हें भी तो देने हैं।
खुद बनातीं थीं गुझिया और पापड़
साहित्यकार घराने से ताल्लुक रखने वाली यश मालवीय की पत्नी आरती बताती हैं कि महादेवी वर्मा को हम सब दादी कहते थे। वह खाने की बहुत शौकीन थी और खुद होली पर गुझिया और पापड़ बनाती थीं। वह बताती हैं कि अक्सर जब उन्हें दो-चार दिनों के लिए कहीं बाहर जाना होता था तो वह जाने से पहले पालतू कुत्ते सोमा से कहतीं कि जा रही हूं। इस पर वह रोने लगती और जब तक दादी न आ जाती वह खाना नहीं खाती थी। आरती कहती हैं कि हम लोग अक्सर आइसक्रीम खरीदते और दादी को खाने को देते तो वह मना कर देती। कहती थीं आइसक्रीम बच्चों के खाने की चीज है। एक बार उन्होंने मना किया तो हम लोगों ने कहा फ्रिज में रख दे रहे हैं आप बाद में खा लेना और वहीं छिप गए। जैसे ही हम लोगों को हटते देखा तो दादी उठीं और आइसक्रीम खाने लगी। इस पर जब हम लोग पूछने लगे कि अभी तो मना किया तो दादी कहतीं बच्चों का मन रखने के लिए खा लिया।
महादेवी वर्मा की प्रसिद्ध रचनाएं
महादेवी वर्मा की प्रसिद्ध रचनाओं में- मेरे ठाकुर जी भोले हैं, दु:ख की बदली, नीहार, रश्मि, नीरजा, सांध्यगीत, दीप शिखा, बंग वर्षा, सप्तपर्णा, हिमालय, प्रथम आयाम, अग्निरेखा, अतीत के चल चित्र, श्रृंखला की कडिय़ां, स्मृति की रेखाएं, पथ के साथी।
साहित्यकार यश मालवीय की महादेवी वर्मा से जुड़ी यादें
साहित्यकार यश मालवीय कहते हैं कि महादेवी को याद करना संस्कृति को याद करने जैसा है। बचपन से पिता उमाकांत मालवीय के साथ अशोक नगर स्थित उनके आवास पर जाते थे। वह पिता को राखी बांधती थीं। वर्ष 1982 में पिताजी का निधन हो गया। उनकी अंतिम यात्रा में महादेवी जी भी आईं और फूटकर रोई थीं। बोलीं, ऐसा लग रहा है जैसे हमने अपना सहोदर भाई खो दिया है। अभी तो उनके लेखन का वसंत प्रारंभ हुआ था और वह नेपथ्य में चले गए। यश कहते हैं कि पिता के न रहने के बाद वह मेरे लिए अभिभावक जैसी हो गईं थीं।
यश मालवीय बोले, मेरे शादी का कार्ड भी उन्होंने लिखा था
यश मालवीय कहते हैं कि वर्ष 1986 में वह अपने पुत्रवत डॉ. रामजी पांडेय की बेटी आरती के विवाह का प्रस्ताव लेकर मेरी मां ईशा मालवीय के पास आईं। मां बोली बहुत अच्छा लगा है आप घर आईं। इस पर महादेवी ने कहा अच्छा तो तब लगेगा, जब इस शरारती का विवाह हो जाएगा। उनका प्रस्ताव मां के लिए आज्ञा जैसा था। वह शाम भूलती नहीं, जब मैं उनके दरवाजे बारात लेकर गया था। महादेवी ने अपना स्नेहिल हाथ मेरे सिर पर रखा तो ऐसा प्रतीत हुआ जैसे पूरी सदी का हाथ मेरे सिर पर हो। खिलखिलाते हुए बोलीं गुडिय़ा (आरती) मुझे दादी कहती है। उमाकांत दीदी कहता था। अब भला बताओ तुमसे मेरा क्या रिश्ता हुआ। तुम मेरे जामाता भी हो और बेटे भी। उस दिन भी शहर में कर्फ्यू था। ससुर रामजी पांडेय ने बिस्मिल्लाह खां की कैसेट लगा दी थी। शहनाई गूंज रही थी तभी वह बोल पड़ीं। शहनाई वाले घर नहीं आएंगे तो मजा नहीं आएगा। मुझे याद है उन्होंने तत्कालीन जिलाधिकारी को फोन कर ससुर का पास बनवाया। तब वह नकास कोहना से कार से शहनाई बजाने वाले को कार से लेकर आए। तब महादेवी जी बच्चों की तरह खिलखिला उठीं थीं। मेरे शादी का कार्ड भी उन्होंने लिखा था।
महादेवी के बाद आगे नहीं बढ़ सकी उनकी साहित्यिक विरासत
महादेवी वर्मा का ख्याल जब-जब किसी के मन में आता है तो एक तस्वीर उभरती है कि उन्होंने कविताओं के साथ गद्य के क्षेत्र में उत्कृष्ट कोटि के संस्मरण, रेखाचित्र, निबंध और आलोचनाएं लिखने का महासाम्राज्य स्थापित किया था। मरते दम तक उन्होंने कांपते हाथों से अपनी कलम की ताकत से काव्य-साहित्य को जीवंत रखा, लेकिन महादेवी के बाद उनकी इस विरासत को संभालने या आगे बढ़ाने के लिए गंभीर प्रयास नहीं हो सके। उनके मुंहबोले बेटे रामजी पांडेय ही जब तक ङ्क्षहदुस्तानी एकेडेमी में सचिव रहे तब तक विरासत आंशिक रूप से बची रही या फिर जिन यश मालवीय को महादेवी जी ने अपना दामाद माना था उन्होंने अपने स्तर पर लेखनी में मुकाम हासिल किया।
अपने पुत्र के रूप में जिंदगी भर माना
महादेवी वर्मा ने रामजी पांडेय को अपने पुत्र के रूप में जिंदगी भर माना। रामजी पांडेय हिंदुस्तानी एकेडेमी में सचिव थे। उनका निधन 1998 में हुआ। रामजी पांडेय की पत्नी रानी पांडेय, दो बेटे ब्रजेश और आशीष हैं। इनमें ब्रजेश पांडेय व्यापारिक क्षेत्र में और आशीष शिक्षा विभाग में कार्यरत हैं। दादी की साहित्यिक विरासत को आगे बढ़ाने के संबंध में ब्रजेश कहते हैं कि उनकी जन्म तिथि, पुण्य तिथि या अन्य किसी अवसर पर आयोजन कराते हैं। कवियों व साहित्यकारों को आमंत्रित करते हैं। हालांकि महादेवी के बाद उनके नाम की छाप किस स्वजन पर पड़ी, या लेखन के क्षेत्र में कौन उस तरह से उभरा इस प्रश्न पर ब्रजेश कहते हैं कि ऐसा कोई नहीं।