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World Theater Day : विश्व एक रंगमंच है और हम सब इसके किरदार...Prayagraj News

आज विश्‍व रंगमंच दिवस है। ऐसे में प्रयागराज (पूर्व में इलाहाबाद) के रंगमंच की चर्चा करना सार्थक होगा। यहां का रंगकर्म भारत ही नहीं विश्व भर में विख्यात रहा है।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Published: Fri, 27 Mar 2020 11:10 AM (IST)Updated: Fri, 27 Mar 2020 11:10 AM (IST)
World Theater Day : विश्व एक रंगमंच है और हम सब इसके किरदार...Prayagraj News
World Theater Day : विश्व एक रंगमंच है और हम सब इसके किरदार...Prayagraj News

प्रयागराज, [अमरदीप भट्ट]। आज यानी शुक्रवार को विश्व रंगमंच दिवस है। यह तारीख हर साल विश्लेषण करने को विवश करती है कि मंच पर अभिनय कला की समृद्धशाली परंपरा बनाए रखने में हम कितने सफल हुए? प्रयागराज का रंगकर्म भारत ही नहीं, विश्व भर में विख्यात रहा है। हालांकि धीरे-धीरे सरकारी उपेक्षा और संसाधनों के अभाव में यह विधा ऐसे मोड़ पर आ खड़ी हुई है कि यहां से आगे बढऩे में बड़ी चुनौतियां हैं तो पीछे जाने से एक बड़ी सभ्यता का अंत होगा। इन्हीं मुद्दों पर शहर के वरिष्ठ रंगकर्मी याद कर रहे हैं रंगकर्म के सुनहरे पल।

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जब संसाधन नहीं थे तब एक प्रस्तुति के कई दिन हाउसफुल शो हुए : भौमिक

वरिष्ठ रंगकर्मी अनिल रंजन भौमिक कहते हैं कि शेक्सपियर के कथन के अनुसार 'विश्व ही रंगमंच है हम सब इसके किरदार हैं'। पं. माधव प्रसाद शुक्ल से आज के युवा रंगकर्मियों तक की यह यात्रा प्रयागराज के रंगकर्म की पक्की बुनियाद को विश्व पटल पर कई बार दस्तक देकर साबित करता रहा है। जब संसाधन नहीं थे तब एक प्रस्तुति के कई दिन हाउसफुल शो हुए। प्रयागराज में रचित अंधायुग से यमगाथा तो भुवनेश्वर प्रसाद ने तांबे के कीड़े जैसे एब्सर्ड नाटक को पहली बार रचकर विश्व में अलग ही स्थान बनाई। एक लंबी फेहरिश्त है जो पंडित माधव प्रसाद शुक्ल से शुरू होती है और धर्मवीर भारती, दूधनाथ सिंह, डॉ राम कुमार वर्मा, लक्ष्मी नारायण लाल, अजित पुष्कल, अमृत राय, डॉ विपिन कुमार अग्रवाल, उपेंद्र नाथ अश्क, लक्ष्मीकांत वर्मा, ममता कालिया तक ही नहीं रुकी बल्कि नीलाभ और यश मालवीय जैसे कवियों ने भी इस परंपरा को आगे बढ़ाया है।

आज संसाधन हैं तो उपयोग नहीं

आज संसाधन हैं लेकिन उनका समुचित उपयोग उस रूप में नहीं हो रहा जैसी आशा की थी। विश्व रंगमंच में शिल्प, भाषा, भंगिमाओं के स्तर पर जो प्रयोग हो रहे हैं उनसे हम अपनी रंगभाषा को नया रूप दे पा रहे हैं? या अभी भी लकीर के फकीर बने हैं। जरूरी नहीं कि पहले जो नाटक किया उसका अभिनय स्टाइल नए नाटक के लिए भी उपयुक्त हो। इसी तरह अभिनेता की ट्रेनिंग के साथ उस नए नाटक में प्रयुक्त होने वाले शिल्प और संगीत का स्वरूप भी भिन्न होगा। और उसे नियमित अभ्यास से एक नया रूप दिया जा सकता है।

मुझे मिला नाटक लेखन का मौका

नवगीतकार यश मालवीय बताते हैं कि रंगकर्मी अनिल रंजन भौमिक ने मुझसे गीत लिखवाए। गीतों को प्रसिद्ध रंग संगीतज्ञ स्मृति शेष रवि नागर व विवेक प्रियदर्शन संगीत देते थे। मैंने स्त्री जीवन पर आधारित नाटक 'मैं कठपुतली अलबेली' लिखा। मुख्य भूमिका निभाई रंगकर्मी स्वर्गीय नंदू ठाकुर की पत्नी पूजा ठाकुर ने। अजामिल, सतीश, अनुपम आनन्द, अनिता गोपेश, अतुल यदुवंशी, सुषमा शर्मा, रतीनाथ योगेश्वर, मीना , आदि रंग प्रतिभाओं का मैं शुरू से ही कायल रहा हूं। लक्ष्मी नारायण लाल, अजित पुष्कल का स्नेह मिला।

अब रंगकर्म में चुनौतियां हैं अधिक

समानांतर संस्था की अध्यक्ष प्रोफेसर अनीता गोपेश कहती हैं कि  आज रंगमंच के सामने अधिक चुनौतियां हैं। धन अपनी जगह, अभ्यास-मंचन को कम खर्च वाले स्थानों की कमी, महिला कलाकारों का अभाव, घटती उपादेयता, समकालीन प्रश्नों पर नाटकों का अभाव है। शहर में 18-20 संस्थाएं सक्रिय हैं। नहीं-नहीं करके भी परेशानियों, शिकायतों अनुराग जीवी और अनुदान जीवी रंगकर्मियों के बहस-मुबाहसे के बीच पारंपरिक प्रयोगधर्मी नाटकों का मंचन होता है। ये शहर समृद्ध परंपरा को जिलाए रखे है। इस हौसले की तारीफ करनी चाहिए।

बड़ा सवाल ऑडियेंस बिल्डिंग का

कुछ संस्थाओं के अपने दर्शक हैं। अब ज्यादातर रंगकर्मी ही दूसरों के नाटक नहीं देखते। नाट्यकर्मियों की आपसी दूरी से वह भी दूसरों के नाटक में नहीं या बहुत कम दिखते हैं। गंभीर रंगकर्म कर रही दो-तीन संस्थाओं ऑडियेंस बिल्डिंग का काम किया है। उनके अपने डाटा बैंक हैं। उनके दर्शक उन संस्थाओं के आंशिक आर्थिक आधार भी हैं लेकिन, इलाहाबादी दर्शकों को मुफ्त में नाटक देखने की लत है।


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