हाई कोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसले में कहा, गरीबों को आवास देना सरकार का संवैधानिक दायित्व
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपने महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (इ) के तहत आश्रय का अधिकार मूल अधिकार है।
प्रयागराज, जेएनएन। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपने महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (इ) के तहत आश्रय का अधिकार मूल अधिकार है। इसमें अनुच्छेद 21 जीवन के अधिकार के तहत आवास का अधिकार भी शामिल है। सरकार का संवैधानिक दायित्व है कि वह गरीबों को आवास मुहैया कराए। कोर्ट ने कहा कि आवास का अधिकार केवल जीवन का संरक्षण ही नहीं है बल्कि शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक व धार्मिक विकास के लिए जरूरी है। आवास सभी मूलभूत सुविधाओं के साथ होना चाहिए।
यह आदेश न्यायमूर्ति एसपी केशरवानी ने राजेश यादव की जनहित याचिका को खारिज करते हुए दिया है। कोर्ट ने बलिया जिला के पखनपुरा गांव के श्रमिकों की बेदखली की मांग के लिए दाखिल याचिका को जनहित के बजाय व्यक्तिगत हित वाली माना है। याचिका को न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग करार देते हुए 10 हजार रुपये हर्जाने के साथ खारिज कर दिया। कोर्ट ने 1995 से पट्टे पर आवंटित भूमि से पिछड़े वर्ग के श्रमिकों की बेदखली का आदेश देने से इन्कार कर दिया है। कहा कि यदि शासन उन्हें हटाना ही चाहता है तो वैकल्पिक आवास देने के बाद हटाए।
कोर्ट ने कहा कि रोटी, कपड़ा और मकान व्यक्ति की मूलभूत आवश्यकता हैं। राज्य सरकार का दायित्व है कि वह उचित कीमत पर गरीबों को आवास दे। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि किसी भी व्यक्ति को सार्वजनिक उपयोग की भूमि का अतिक्रमण करने का अधिकार नहीं है।
गौरतलब है कि रसड़ा तहसील के एसडीएम ने खलिहान, खाद का गड्ढा व खेल के मैदान की भूमि को दूसरे स्थान पर शिफ्ट करके सार्वजनिक उपयोग की खाली जमीन को बंजर दर्ज कर दिया। ग्राम प्रधान के प्रस्ताव पर पिछड़े वर्ग के पांच भूमिहीन कृषि मजदूरों को 1995 में आवासीय पट्टा दिया गया। इसमें वह मकान बनाकर रह रहे हैं। आबादी से पहले सार्वजनिक भूमि होने के आधार पर पट्टे की वैधता पर आपत्ति की गयी। फिर 12 साल बाद एसडीएम ने पट्टा रद कर दिया। जमीन खाली न होने पर याचिका दाखिल करके बेदखली की मांग की गयी थी।