फूलकली के जज्बे ने 'जैविक खेती' की राह कर दी आसान
मेजा ब्लाक के हरदिहा गांव की फूलकली का जज्बा काबिले तारीफ है। उन्होंने अपनी मेहनत और लगन से जैविक खेती की राह को आसान कर दिया है। गांव की 35 महिलाओं को जुटाकर कारवां बनाया है।
विमल पांडेय, इलाहाबाद : उत्तम खेती मध्यम बान, निषिद्ध चाकरी भीख निदान। कवि घाघ की इस कहावत को मेजा ब्लाक के हरदिहा गांव की रहने वाली फूलकली ने चरितार्थ कर दिया। अपने बुलंद इरादों के बल पर फूलकली ने अपनी ग्राम पंचायत में जैविक खेती की शुरुआत की। गांव की महिलाएं इनके जज्बे के साथ कंधे से कंधा मिलाकर जैविक खेती पर काम कर रहीं हैं। धान हो या गेहूं की फसल उन्होंने यह प्रण कर लिया कि रासायनिक उर्वरक के बगैर ही खेती करेंगी। गांव के बेहद गरीब मजदूर लाल जी की पत्नी फूलकली के पास पास बीस बिस्वा जमीन है। इसी जमीन से फूलकली ने छह माह पहले जैविक खेती शुरू की थी। धान की फसल में वर्मी कम्पोस्ट युक्त खाद के कारण फसल और भी अच्छी तैयार हुई तो फूलकली के इस प्रयास की सराहना गांव के चारों ओर होने लगी। फूलकली के इस जैविक अभियान में अब गांव की 35 महिलाएं शामिल हैं। गांव की प्रभावती, शोभा, राजकुमारी, कविता अनारकली, वंदना आदि ऐसे नाम हैं जो गांव में महिला किसान बनकर जैविक खेती की दिशा में एक सार्थक कदम बढ़ा रहीं हैं। बकौल फूलकली गांव में रासायनिक उर्वरकों के बगैर कोई भी फसल नहीं तैयार की जाती थी। प्रदेश सरकार ने जब से जैविक खेती पर जोर दिया तब से इन्होंने ठान लिया कि इस अच्छे अभियान को गांव के घर-घर तक पहुंचाएंगी। जिला कृषि अधिकारी डा. अश्वनी कुमार सिंह कहते हैं कि जैविक खेती को बढ़ावा देने वालों को सरकार अनेक प्रोत्साहन, अनुदान दे रही है। योजनाओं को लाभ लेकर ग्रामीणों को ऐसी फसलों पर ही जोर देना चाहिए।