Move to Jagran APP

UP में छाया है प्रतापगढ़ की महिलाओं का हुनर, चप्‍पल का व्‍यवसाय बना आजीविका का साधन

समूह से जुड़ी महिलाएं इस कारोबार को बढ़ाने के लिए भी प्रयासरत हैं। प्रयागराज वाराणसी सुल्तानपुर एवं जौनपुर के बाजार में भी वे प्रतापगढ़ से बने चप्‍पलों को बिक्री के लिए भेजेंगी। इन जिलों के ज्यादातर व्यापारी कानपुर और आगरा से चप्पलें मंगाते हैं।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Published: Wed, 21 Jul 2021 02:40 PM (IST)Updated: Wed, 21 Jul 2021 02:40 PM (IST)
UP में छाया है प्रतापगढ़ की महिलाओं का हुनर, चप्‍पल का व्‍यवसाय बना आजीविका का साधन
प्रतापगढ़ की महिलाओं के बनाए चप्‍पल की ख्‍याति यूपी में फैली है।

प्रयागराज, जेएनएन। यूपी के प्रतापगढ़ में समूह की महिलाएं राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन से जुड़कर विकास की इबारत लिख रही हैं। महिलाओं के चप्पल व्‍यवसाय से जुड़ने और इसे बनाने की पहल से जिले का नाम सुर्खियों में आ गया है। अब यह चप्पल प्रदेश के कई जिलों में छा गया है। इससे एक ओर जहां समूह की महिलाएं आत्मनिर्भर बनी हैं, वहीं दूसरी ओर गरीब महिलाओं को भी आजीविका से जोड़ रही हैं। इससे महिलाओं की अच्छी आय भी हो रही है।

loksabha election banner

स्‍वयं सहायता समूह की महिलाएं बनीं आत्‍मनिर्भर

यूं तो प्रतापगढ़ के कई क्षेत्रों में महिलाएं आत्‍मनिर्भर बन रही हैं लेकिन यहां हम बात करेंगे बिहार ब्लाक के हरिहरपुर गांव की। यहां की सरिता देवी, सुमन देवी सहित अन्य महिलाएं अक्टूबर 2019 में स्वयं सहायता समूह से जुड़ी। इसके बाद उनको ट्रेनर के माध्यम से उनको पखवारे भर प्रशिक्षित किया गया। रिवाल्विंग फंड व सामुदायिक निवेश निधि के तहत महिलाओं को करीब डेढ़ लाख रुपये मिले। इस धनराशि से उन्‍होंने चप्पल बनाने की योजना बनाई।

कानपुर से मंगाती हैं कच्‍चा माल

महिलाओं ने उस पैसे से कानपुर सहित अन्य जिलों से कच्चा माल मंगाने लगीं। चप्पल तैयार करने के बाद महिलाएं उसे कुंडा, जेठवारा, कालाकांकर सहित अन्य बाजारों में बेच रही हैं। पिछले आठ महीने से यह काम कर रही हैं। वे अब दिनों दिन विकास के पथ पर अग्रसर हैं। एक चप्पल बनाने की लागत 50 रुपये है, जबकि बिक्री 90 से 100 रुपये में हो रही है।

अब कारोबार बढ़ाने की है तैयारी

समूह से जुड़ी महिलाएं इस कारोबार को बढ़ाने के लिए भी प्रयासरत हैं। प्रयागराज, वाराणसी, सुल्तानपुर एवं जौनपुर के बाजार में भी वे प्रतापगढ़ से बने चप्‍पलों को बिक्री के लिए भेजेंगी। इन जिलों के ज्यादातर व्यापारी कानपुर और आगरा से चप्पलें मंगाते हैं। महिलाओं का कहना है कि उनकी बनाई चप्पल कानपुर की अपेक्षा सस्ती पड़ेगी।

ऐसे बनाती हैं महिलाएं चप्‍पल

समूह की महिलाओं के पास चप्पल बनाने के लिए ग्लाइंड मशीन, कटिंग मशीन, चप्पल बनाने का सांचा है। वह सबसे पहले कच्चे माल को मशीन में डालती हैं। सांचा से चप्पल तैयार हो जाता है। चप्पल तैयार करने में करीब आधे से एक घंटे का ही समय मिलता है। इसके बाद उसकी बद्धी ऊपर से लगा दी जाती है।

आइए जानें क्‍या कहती हैं रोजगार से जुड़ी महिलाएं

चप्‍पल व्‍यवसाय से जुड़ीं सरिता देवी कहती हैं कि शादी के बाद जब अपने ससुराल पहुंची तो परिवार आर्थिक संकट से गुजर रहा था। समूह से जोड़ने के लिए गांव में आई टीम से उनका संपर्क हुआ। इसके बाद प्रशिक्षण प्राप्‍त कर चप्पल के व्यवसाय से जुड़ीं तो उनकी तकदीर ही बदल गई। सुमन देवी ने कहा कि स्‍वयं सहायता समूह से जुड़ने के बाद काफी बदलाव हुआ। खासकर चप्पल बनाने के बाद होने वाली आय से परिवार की आर्थिक स्थिति काफी मजबूत हुई। गांव की कई महिलाओं को भी रोजगार से जोड़ा है।

ब्‍लाक मिशन प्रबंधक ने यह कहा

ब्‍लाक मिशन प्रबंधक बिहार अमित कुमार तिवारी का कहना है कि स्वयं सहायता समूह से काफी संख्‍या में महिलाएं व्यक्तिगत एवं सामूहिक तौर पर रोजगार से जुड़ी हैं। उनकी विभिन्न आवश्यकताएं पूरी हो रही है। महिलाओं के आर्थिक विकास में एनआरएलएम ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। काफी हद तक उन्हें स्वावलंबी बनाया है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.