भारत सेवाश्रम संघ के संस्थापक स्वामी प्रणवानंद का प्रयागराज से था गहरा आध्यात्मिक संबंध, आज है 125वीं जन्मतिथि Prayagraj News
1924 के अर्ध कुंभ में स्वामी प्रणवानंद ने संगम-तट पर संन्यास की दीक्षा ली। 1930 के कुंभ में प्रयागराज में भारत सेवाश्रम संघ की शाखा की स्थापना कराई।
प्रयागराज, जेएनएन। आज से 125 वर्ष पहले माघी पूर्णिमा के ही दिन पूर्व बंगाल के मदारीपुर जनपद के छोटे से गांव वाजितपुर में एक शिशु का जन्म हुआ। वही बाद में देश, विदेश में युगाचार्य स्वामी प्रणवानंद जी महाराज के नाम से विख्यात हुए। यह स्थान अब बांग्लादेश में है और आज भी लोग यहां माघी पूर्णिमा के उत्सव का आयोजन कर स्वामी जी का स्मरण-वंदन करते हैं ।
1924 के अर्ध कुंभ में संगम तट पर संन्यास की दीक्षा ली थी
पं. देवीदत्त शुक्ल-पं. रमादत्त शुक्ल शोध संस्थान के सचिव व्रतशील शर्मा बताते हैं कि स्वामी प्रणवानंद का प्रयागराज से गहरा आध्यात्मिक संबंध था। वर्ष 1924 के अर्ध कुंभ के अवसर पर उन्हें संगम-तट पर संन्यास दीक्षा प्राप्त हुई थी। स्वामी जी ने 1930 के कुंभ पर्व पर प्रयागराज (पूर्ववर्ती इलाहाबाद) में भारत सेवाश्रम संघ की शाखा की स्थापना कराई। प्रारंभ में यह शाखा किराये के मकान में बैरहना में स्थापित हुई, जो बाद में सावित्री पार्क, मधवापुर में स्थानांतरित होकर वर्तमान में तुलारामबाग स्थित अपने आश्रम-परिसर से संचालित हो रही है।
1923 में माघी पूर्णिमा पर चिंतन-सभा का आयोजन किया : व्रतशील शर्मा
व्रतशील शर्मा ने कहा कि इससे पहले स्वामी प्रणवानंद ने 1923 में माघी पूर्णिमा पर चिंतन-सभा का आयोजन करवाकर संगठन का प्रभावी सूत्र अपने अनुगामियों को दिया था। अनुयायियों को आध्यात्मिक चिंतन परक समर्पण-भाव के संदेश से अनुप्राणित किया। उस समय उन्होंने कहा था कि 'स्वयं आचरण करके जो शिक्षा देते हैं, वही आचार्य हैं। इस युग में जो कुछ कल्याणकारी है, वही मेरी चिंता, वाक्य एवं कार्य-पद्धति के माध्यम से, मेरे इस अलौकिक व्यक्तित्व से ही स्फुरित व विकसित होगा। आचार्य युग-युग में एक ही आते हैं।'
स्वामी प्रणवानंद ने माघी पूर्णिमा पर भारत सेवाश्रम संघ की नींव रखी थी
व्रतशील शर्मा का कहना है कि यह भी संयोग है कि अपने ध्येय की प्राप्ति के लिए स्वामी प्रणवानंद जी ने माघी पूर्णिमा के ही दिन संगठन की नींव रखी और उसका नाम रखा भारत सेवाश्रम संघ। संघ-संगठन , अध्यात्म-चिंतन, श्रद्धा-श्रद्धालुजन के परिप्रेक्ष्य में मानव-सेवा के माध्यम से नारायण-सेवा के लक्ष्य को प्राप्त करने का गुरु-गंभीर अमर संदेश सुनाया। अपने संदेश को स्पष्ट करते हुए स्वामी जी ने कहा मैं संघ-शक्ति सृष्टि करना चाहता हूं, अत: नाम के साथ (संस्था/संगठन के विषय में) संघ-शक्ति सूचक शब्द रखना चाहिए। समग्र भारत इसका कर्म-क्षेत्र है, भारतीय जातीयता का पुनर्गठन इस संघ का उद्देश्य है। इसलिए भारत शब्द रखना आवश्यक है। सनातन वैदिक आदर्श इस संघ का आधार होगा, इसलिए आश्रम शब्द रहना ही चाहिए । जाति-समाज-व्यक्ति की सेवा करना ही इस संघ का उद्देश्य है, अत: सेवा शब्द भी रखना महत्वपूर्ण है।