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गरीबों को इंसाफ दिलाने का जज्बा, 68 साल की उम्र में पढ़ रहे कानून की पढ़ाई Prayagraj News

राजेंद्र सिंह रज्‍जू भइया राज्‍य विवि से संबद्ध एमपी सिंह विधि महाविद्यालय में झूंसी निवासी 68 वर्षीय सुरेश चंद्र एलएलबी की पढ़ाई कर रहे हैं। ध्‍येय गरीबों को इंसाफ दिलाना है।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Published: Tue, 31 Dec 2019 03:14 PM (IST)Updated: Tue, 31 Dec 2019 03:17 PM (IST)
गरीबों को इंसाफ दिलाने का जज्बा, 68 साल की उम्र में पढ़ रहे कानून की पढ़ाई Prayagraj News
गरीबों को इंसाफ दिलाने का जज्बा, 68 साल की उम्र में पढ़ रहे कानून की पढ़ाई Prayagraj News

प्रयागराज, [गुरुदीप त्रिपाठी]। 60वां वसंत देखने के बाद लोग नाती-पोतों के साथ खेलने और परिवार संग समय बिताने की ख्वाहिश रखते हैं। वहीं, झूंसी स्थित कटका निवासी 68 वर्षीय सुरेश चंद्र यादव गरीबों और असहायों को इंसाफ दिलाने के लिए विधि की पढ़ाई कर रहे हैं। वह कहते हैैं कि उनके गांव और आसपास तमाम गरीब-असाहय न्याय के लिए ठोकरें खा रहे हैं। ऐसे लोगों को निश्शुल्क विधिक सलाह देने की सोच के साथ पढ़ाई कर रहे हैं।

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एमपी सिंह विधि महाविद्यालय से सुरेेश चंद्र कर रहे एलएलबी

सुरेश चंद्र प्रोफेसर राजेंद्र सिंह (रज्जू भइया) राज्य विवि से संबद्ध अंदावा स्थित महेंद्र प्रताप सिंह विधि महाविद्यालय में एलएलबी तृतीय सेमेस्टर के छात्र हैं। गुरुग्राम की एक कंपनी से वर्ष 1998 में सेवानिवृत्त होने के बाद सुरेश प्रयागराज पहुंचे। इसके बाद उन्होंने जिला कचहरी में एक अधिवक्ता के साथ 20 वर्ष तक मुंशी के रूप में कार्य किया। इस दौरान उन्होंने फाइलें ढोने के साथ कानून की किताबों से भी गहरी दोस्ती कर ली। सुरेश बताते हैं कि मुंंशी के रूप में काम करने के दौरान गरीबों और असहायों को इंसाफ के लिए ठोकर खाते देखा। इस पर उनका मन विचलित हो उठा और उन्होंने कानूनी पढ़ाई करने की ठान ली। उन्होंने राज्य विवि से संबद्ध महाविद्यालय में न केवल दाखिला लिया बल्कि रोज कक्षा में उपस्थित होकर गंभीरता से अध्ययन कर रहे हैं। इस बार कुलभाष्कर आश्रम स्नातकोत्तर महाविद्यालय परीक्षा केंद्र में तृतीय सेमेस्टर परीक्षा भी दी। वह कहते हैं पढ़ाई के बाद वकालत के पेशे में आकर गरीबों को निश्शुल्क विधिक सलाह देंगे।

...जब परीक्षा के दौरान चौंक गए थे शिक्षक

कुलभाष्कर आश्रम स्नातकोत्तर महाविद्यालय में जब सुरेश परीक्षा देने पहुंचे तो छात्रों के अलावा ड्यूटी में लगे शिक्षक भी चौंक गए। पहले संदेह हुआ कि कहीं दूसरे की जगह परीक्षा तो नहीं दे रहे हैं। जब प्रवेश पत्र चेक करने के साथ महाविद्यालय से पता किया गया। तब वे परीक्षा दे सके।


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