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ये हैं चाय वाली भउजी..., इनकी चाय की चुस्कियों में है अपनत्व की मिठास, खिंचे चले आते हैं विश्वविद्यालय के छात्र

इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय (इविवि) के छात्रसंघ भवन के पास उनकी छोटी सी दुकान है। यहां ज्यादातर छात्र ही चाय पीने आते हैं। महंगाई के इस दौर में भी उनके पांच रुपये की चाय के साथ सफलता की बेशुमार दुआएं मुफ्त में मिलती हैं। चाय वाली भउजी ऊषा गुप्ता हैं।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Published: Sat, 24 Oct 2020 10:12 AM (IST)Updated: Sat, 24 Oct 2020 10:12 AM (IST)
ये हैं चाय वाली भउजी..., इनकी चाय की चुस्कियों में है अपनत्व की मिठास, खिंचे चले आते हैं विश्वविद्यालय के छात्र
इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय (इविवि) के छात्रसंघ भवन के पास चाय वाली भौजी की छोटी सी दुकान है।

प्रयागराज, [गुरुदीप त्रिपाठी]। चेहरे पर मुस्कान...। हाथों में गरमागरम चाय से भरी केतली...। लंबे अंतराल के बाद दिखने पर चाय देने से पहले फटकार...। फिर सिर पर हाथ फेरकर मां के अपनत्व का भी अहसास...। यह कोई और नहीं...। झंझावतों से भरी है चाय वाली भउजी की जिंदगानी। 54 साल की उम्र में भी जिम्मेदारियों के बोझ को हंसकर ढो रही हैं। अपनी तकलीफों को कभी चेहरे पर न उतरने दिया।

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विश्वविद्यालय छात्रसंघ भवन के निकट है चाय की दुकान

इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय (इविवि) के छात्रसंघ भवन के पास उनकी छोटी सी दुकान है। यहां ज्यादातर छात्र ही चाय पीने आते हैं। महंगाई के इस दौर में भी उनके पांच रुपये की चाय के साथ सफलता की बेशुमार दुआएं मुफ्त में मिलती हैं। चाय वाली भउजी का नाम है ऊषा गुप्ता। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्रसंघ भवन पर चाहे आंदोलन हो या कोई अन्य कार्यक्रम, उसमें भौजी की चाय न हो तो छात्रों को कुछ अधूरा सा लगता है। भौजी के हाथ से बनी चाय में अपनत्व का मिठास जो घुला रहता है।

चाय की चु‍स्‍की से शुरू होती है राजनीति की पाठशाला

चाय की चुस्कियों से ही यहां राजनीति की पाठशाला शुरू होती है। खुद छात्र भी मानते हैं कि यह चाय नहीं बल्कि भउजी का अपनापन है। यही कारण है कि जो लोग यहां से पढ़कर चले गए और कभी प्रयागराज आए तो विश्वविद्यालय पहुंचकर भौजी की चाय पीना नहीं भूलते। भउजी करीब 20 वर्ष से चाय की दुकान चलाती हैं। इसके पहले उनके ससुर और पति इस दुकान पर बैठते थे। उनके निधन के बाद भउजी ने इसे जारी रखा। उनका अपनत्व और मिलनसार व्यवहार सभी छात्रों को भाता है। राजनीति की नर्सरी में कदम रखने वाले हर शख्स की पाठशाला भउजी के चाय से शुरू होती है। भउजी की खासियत है कि यदि आपके पास रुपये नहीं है तो कोई बात नहीं। वह चाय का पैसा भी नहीं मांगती। छात्र भी बाद में ईमानदारी से उन्हेंं चाय का पैसा दे जाते हैं।

विभागों में भी घुली है चाय की मिठास

भउजी के चाय की मांग केवल छात्रसंघ भवन तक सीमित नहीं है, बल्कि विश्वविद्यालय के विभिन्न विभागों में शिक्षक और कर्मचारी भी पसंद करते हैं। मोबाइल पर घंटी बजते ही वह चाय लेकर संबंधित विभाग में पहुंच जाती हैं। एक फोन पर वह विभागों का कोना-कोना केतली लेकर छान मारती हैं।

छात्रों के जेल जाने पर रो पड़ीं थीं भउजी

पिछले वर्ष छात्रसंघ बहाली की मांग को लेकर सैकड़ों की संख्या में छात्र पूर्व उपाध्यक्ष अखिलेश यादव और छात्रनेता अजय यादव सम्राट की अगुवाई में धरने पर बैठ गए थे। लंबे दिनों तक धरना चलता रहा तो पुलिस ने छात्रों को जबरन गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था। इस दौरान लाठी भी चार्ज हुई थी। इस पर भउजी रो पड़ी थी। जब पूर्व उपाध्यक्ष जेल से रिहा हुए तो वह भउजी से मिलने पहुंचे। उन्हें देखकर भउजी ने गले से लगा लिया। गला रुंध गया। भउजी बोली... ई जुलम आखिर कब तक...।

पूर्व कुलपति ने भउजी को दिया था एक्सीलेंस अवार्ड

पूर्व कुलपति प्रोफेसर रतन लाल हांगलू ने पिछले वर्ष चाय वाली भउजी को एक्सीलेंस अवार्ड से नवाजा था। इसके लिए उन्हें अचानक सीनेट हॉल में बुलाया गया। वह भी हड़बड़ा उठीं कि आखिर ऐसा क्या गुनाह कर दिया। उन्होंने डर के मारे अपना मोबाइल भी बंद कर दिया। जब भउजी पहुंचीं तो उन्हें सम्मानपूर्वक मंच पर ले जाया गया। इसके बाद पूर्व कुलपति ने उन्हें अवार्ड ऑफ एक्सीलेंस से सम्मानित किया। जैसे ही भउजी का नाम से मंच से पुकारा गया तो तालियों की गडग़ड़ाहट से पूरा हॉल गूंज उठा था।


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