खुसरोबाग : जहां महकती है अमरूदों संग मुगल स्थापत्य कला की खुशबू Prayagraj News
यह मुगल स्थापत्य कला का उत्कृष्ट नमूना है। मकबरों की छत व दीवारों पर पेंटिंग के साथ पच्चीकारी भी की गई है। अष्टकोणीय आकार की इमारत पर बनाए गए गुंबद देखने लायक हैं गुंबद पर गोल वृत्त और तारे बनाए गए हैं।
प्रयागराज, जेएनएन। प्रयागराज रेलवे स्टेशन के करीब स्थित खुसरोबाग यहां के दर्शनीय स्थलों में एक है। यहां पर खुसरो, उसकी बहन निसार बेगम, मां शाह बेगम के मकबरों के बीच आम और अमरूद की खुशबू तारी होती है। यहां निर्मित मकबरे मुगल स्थापत्य कला या वास्तुशिल्प के बेजोड़ नमूने हैं। अल्फ्रेड पार्क यानी कंपनी बाग के बाद शहर के बीचोबीच स्थित यह सबसे बड़ा बाग भी है। वर्तमान में यहां पर लोग सुबह-शाम सैर के लिए आते हैं।
मुगल बादशाह जहांगीर ने अपनी सैरगाह के रूप में कराया था निर्माण
कहा जाता है कि वर्ष 1605 में अकबर के इंतकाल के बाद उसके पुत्र सलीम उर्फ जहांगीर ने सैरगाह के रूप में खुसरोबाग का निमार्ण कराया था। जहांगीर के मुख्य वास्तुशिल्पी रहे अका रजा ने बाग के साथ ही यहां बने मकबरों का नक्शा तैयार किया था जिसके आधार पर निर्माण किया गया। जहां पर जहांगीर के ज्येष्ठ पुत्र शाहजादा खुसरो और उसकी मां शाह बेगम को दफनाया गया जबकि खुसरो की बहन सुल्तान बेगम का मकबरा तो यहां पर बना है किंतु उसे यहां दफनाया नहीं गया है।
67 एकड़ क्षेत्रफल में है विस्तारित, चारो तरफ है लाल पत्थरों की दीवार
खुसरोबाग 67 एकड़ क्षेत्रफल में बना है। इसके चारों तरफ लाल पत्थर की ऊंची दीवारें हैं। यहां पर मुगल बादशाह जहांगीर के बड़े बेटे शाहजादा खुसरो (1622 में मौत) और बेटी सुल्तान निसार बेगम (1624 में मौत) व खुसरो की मां शाह बेगम के मकबरे हैं। शाह बेगम जहांगीर की पहली पत्नी व राजपूत राजकुमारी थीं। उनकी मौत 1604 में हुई थी।
मुगलकालीन वास्तुशिल्प का उत्कृष्ट नमूना है खुसरोबाग
यह मुगल स्थापत्य कला का उत्कृष्ट नमूना है। मकबरों की छत व दीवारों पर पेंटिंग के साथ पच्चीकारी भी की गई है। अष्टकोणीय आकार की इमारत पर बनाए गए गुंबद देखने लायक हैं, गुंबद पर गोल वृत्त और तारे बनाए गए हैं जबकि मकबरे भीतरी हिस्सों को फूल और पेड़ों के चित्रों से सजाया गया है। मकबरों के कोनों पर छोटी-छोटी छतरियां भी बनी हैं।
अकबर के किले की बची हुई निर्माण सामग्री का भी हुआ इस्तेमाल
इतिहासकार प्रो. योगेश्वर तिवारी बताते हैं कि प्रयागराज में यमुना के किनारे अकबर के किले की तमाम निर्माण सामग्री बच गई थी जिसका इस्तेमाल खुसरोबाग के निर्माण में किया गया। अकबर किले से तकरीबन छह किलोमीटर दूर स्थित खुसरोबाग में हुए निर्माणों में मुगलों की भवन निर्माण शैली का मुजाहिरा होता है जिसमें बाग पद्धति व चारदीवारी पद्धति का समावेश होता था। बताया कि खुसरोबाग की दीवार बनाने में मीरजापुर के लाल पत्थरों का प्रयोग किया गया है।
लोगों को अपनी ओर खींचती है अमरूद और आम की सुगंध
खुसरोबाग में मुगल वास्तुशिल्प की निशानी के रूप में खुसरो्र उनकी बहन व मां के मकबरे तो बने ही हैं। यहां पर कई एकड़ में अमरूद और आम की बाग भी है। जहां जग प्रसिद्ध इलाहाबादी अमरूद की सुर्खा और सफेदा का स्वाद लेने लोग जाते हैं। सुबह-शाम सैर करने वालों और टूरिस्टों के लिए इन बागों के चारो तरफ व बीच में पाथ-वे का निर्माण किया गया है। जो बाग की खूबसूरती को और बढ़ाते हैं।
बाग को संवारने में खर्च किए गए 12 करोड़ रुपये, फिर बनी है योजना
एक समय जीर्ण-शीर्ण हो चुके खुसरोबाग को प्रयागराज विकास प्राधिकरण की ओर से पिछले कुंभ के दौरान सजाया, संवारा गया। 12 करोड़ रुपये के बजट से पैदल चलने के लिए पाथ-वे बनवाए गए। लोगों के बैठने के लिए बेंच के साथ फौव्वारे भी लगाए गए। लाइटिंग आदि भी दुरुस्त की गई जिसके चलते सुबह-शाम यहां पर सैर करने वाले और टूरिस्टों की भारी आमद होती है। माघ मेला को देखते हुए फिर से पीडीए ने सुंदरीकरण की योजना बनाई है।