Sawan 2021: सावन का पहला Pradosh Vrat आज, शिव-पार्वती संग करें विष्णु की स्तुति, मिलेगी सुख-समृद्धि
Sawan 2021 पराशर ज्योतिष संस्थान के निदेशक आचार्य विद्याकांत पांडेय बताते हैं कि गुरु प्रदोष पर भगवान विष्णु की भी आराधना करनी चाहिए। गुरु प्रदोष व्रत के दिन श्रीराम रक्षा स्तोत्र का जाप अत्यंत लाभकारी माना जाता है क्योंकि भगवान शिव स्वयं प्रभु श्रीराम को अपना आराध्य मानते हैं।
प्रयागराज, जागरण संवाददाता। देवाधिदेव महादेव भगवान शिव व माता पार्वती के अतिप्रिय सावन के महीने का पहला प्रदोष व्रत गुरुवार यानी आज है। वैसे तो प्रदोष हर महीने में दो बार पड़ता है, लेकिन सावन के प्रदोष का महत्व अधिक होता है। ऐसा इसलिए कि इसमें भगवान शिव के साथ माता पार्वती का भी आशीर्वाद मिलता है। इसी कारण सनातन धर्मावलंबियों की सावन के प्रदोष पर अधिक आस्था होती है।
श्रीराम रक्षा स्तोत्र का जाप अत्यंत लाभकारी : आचार्य विद्याकांत
पराशर ज्योतिष संस्थान के निदेशक आचार्य विद्याकांत पांडेय बताते हैं कि गुरु प्रदोष पर भगवान विष्णु की भी आराधना करनी चाहिए। गुरु प्रदोष व्रत के दिन श्रीराम रक्षा स्तोत्र का जाप अत्यंत लाभकारी माना जाता है, क्योंकि भगवान शिव स्वयं प्रभु श्रीराम को अपना आराध्य मानते हैं। इसी कारण गुरु प्रदोष के दिन शिव-पार्वती की पूजा के साथ साथ भगवान विष्णु की आराधना करने से भोलेनाथ शीघ्र प्रसन्न होकर सुख-समृद्धि और सौभाग्य का आशीर्वाद प्रदान करते हैं।
प्रदोष व्रत शिव के साथ चंद्रदेव से भी जुड़ा है
पराशर ज्योतिष संस्थान के निदेशक आचार्य विद्याकांत पांडेय बताते हैं कि प्रदोष व्रत भगवान शिव के साथ चंद्रदेव से भी जुड़ा है। प्रदोष का व्रत सबसे पहले चंद्रदेव ने किया था। शाप के कारण चंद्रदेव को क्षय रोग हो गया था। तब उन्होंने हर माह में आने वाली त्रयोदशी तिथि पर भगवान शिव को समर्पित प्रदोष व्रत रखना आरंभ किया। इसके शुभ प्रभाव से चंद्रदेव को क्षय रोग से मुक्ति मिली थी। इस व्रत को रखने वाले भक्तों के जीवन से दु:ख दरिद्र्रता भी दूर होती है।
सावन में प्रदोष व्रत का कर सकते हैं आरंभ
जो सनातन धर्मावलंबी नियमित प्रदोष व्रत रखना चाहते हैं उनके लिए व्रत आरंभ करने का सबसे पवित्र महीना सावन है। सावन के महीने में पडऩे वाले प्रदोष पर व्रत रखकर उसकी शुरुआत कर सकते हैं। पूजन के समय पूजा स्थल पर गंगा जल छिड़क कर शिव-पार्वती की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें। भगवान शिव को जल चढ़ाकर ओम नम: शिवाय का मन ही मन जप करते रहें। पूरे दिन निराहार रहें। शाम को फिर से भगवान शिव की आराधना करें। उन्हेंं शमी, बेल पत्र, कनेर, धतूरा, चावल, फूल, धूप, दीप, फल, पान, सुपारी आदि चढ़ाएं। अंत में शिव आरती के बाद प्रसाद बांटें और भोजन ग्रहण करें।