विषुवतं्रेखा पर सूर्य के कदम, अगला पड़ाव कर्क रेखा
संगम तीरे : जगदीश जोशी: 14 अप्रैल, शनिवार का दिन अंबेडकर जयंती के रूप में मनाया जा रहा है। लेकिन प्रकृति ने इस दिन को और भी यादगार बनाया है। यह दिन विषुवत संक्रांति का दिन है और सूर्य पक्षपात रहित हो जाता है। इस दिन सूर्य विषुवत रेखा यानी भूमध्य रेखा में प्रवेश करता है, इसे मेष संक्रांति के रूप में भी जाना जाता है।
संगम तीरे
जगदीश जोशी
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चौदह अप्रैल का दिन देशभर में आंबेडकर जयंती के रूप में जरूर मनाया जा रहा है। लेकिन यह दिन प्रकृति के यादगार उपहारों में से भी एक दिन है। इस दिन सभी जीव-जंतुओं को अपनी ऊर्जा से जीवन देने वाला सूर्य अपने कदम उस रेखा पर रखता है, जहां पर पूरी पृथ्वी के लिए पूर्णतया निष्पक्ष दिखाई देता है। इसी दिन को उत्तरगामी सूर्य की विषुवत् संक्रांति अथवा मेष संक्रांति के नाम से जाना जाता है। यहां ध्यान रखना जरूरी है कि विषुवत् संक्रांति साल में दो बार आती है। दक्षिणगामी सूर्य के विषुवत् रेखा में संक्रमण को तुला संक्रांति के नाम से पहचाना जाता है। यानी इस संक्रांति के बाद उत्तरी गोलार्ध में सूर्य की गर्मी रोज तेजी से बढ़ेगी। अब बृष और मिथुन संक्रातियों के बाद सूर्य अगला बड़ा पड़ाव कर्क संक्रांति होगी, यह दिन आधी जुलाई बीतने पर आएगा। इस दिन सूर्य उत्तरी गोलार्ध यानी भारत के सबसे करीब होगा और गर्मी अपने चरम पर।
दोनों विषुवत संक्रांतियों के दिन सूर्य न तो उत्तरी गोलार्ध का पक्षपात करता है और न दक्षिणी। यानी वह दोनों गोलार्धो में से किसी के भी पाले में नहीं होता। अपनी रौशनी दोनों ओर बिना भेदभाव के फैंकता है, ऊर्जा भी दोनों ओर की ढलानों में उसी क्रम में बांटता है। सूर्य को निष्पक्ष बनाने वाली इस रेखा को भूमध्य अथवा विषुवत् रेखा कहा जाता है। सूर्य के इसके ऊपर आने पर यह उत्तरी गोलार्ध के कोर्ट में आ जाएगा और नीचे की ओर जाने पर दक्षिणी गोलार्ध के। इस रेखा से विचलित होते ही सूर्य की निष्पक्षता खत्म हो जाती है। जिस गोलार्ध की तरफ उसके कदम बढ़ते हैं उसे वह अधिक उपहार देने लगता है। ऐसा नहीं कि सूर्य जिस पर मेहरबान होता है, उसे अपनी झोली से कुछ अतिरिक्त निकालकर देता हो। वह कहीं और से भी नहीं लाता, उसी में बंटवारा करता है, एक को अधिक देता है तो निर्मोही होकर दूसरे के हिस्से से कटौती कर देता है। एक गोलार्ध में दिन जितना बड़ा, दूसरे में उतना ही छोटा।
हर रोज कम-ज्यादा का करने की उसकी फितरत साल भर बनी रहती है। हां, वह किसी एक जगह रुकता भी नहीं। रास्ता एक ही है इसलिए उसे साल में दो बार विषुवत् रेखा से होकर गुजरना पड़ता है, उन दो दिनों में बेहद न्यायप्रिय हो जाता है। सूर्य की आदत में लगाम लगाने वाली इस रेखा के बारे ऐसे भी कहा जा सकता है कि चिपटी गेंद की तरह की पृथ्वी के बीचोबीच में एक केंद्र बिंदु होता है। इसी केंद्र पर दोनों ध्रुवों (उत्तरी एवं दक्षिणी) को मिलाने वाली रेखा से समकोण यानी नब्बे डिग्री का कोण बनाने वाली पृथ्वी के सतह पर खींची गई काल्पनिक रेखा ही विषुवत् अथवा भूमध्य रेखा (इक्वेटर) है। इस रेखा के उत्तरी ओर (भारत की ओर) 23.5 डिग्री अक्षांश में कर्क रेखा है और दक्षिणी ओर (आस्ट्रेलिया की ओर) 23.5 डिग्री अक्षांश में मकर रेखा है। सूर्य साल भर कबड्डी खेलता नजर आता है, मकर रेखा को छूता है तो उसके छह माह बाद कर्क रेखा को भी छूता है। मकर रेखा को छूने के बाद जब सूर्य लौटता है तो उत्तरायण यानी उत्तर की ओर बढ़ता है, गर्मी बढ़ना शुरू। कर्क रेखा को छू कर दक्षिण की ओर लौटता है तो दक्षिणायन, जाड़े का आगमन। इसी 'ढैया छुआई' की घटना को संक्रांति कहा जाता है।
भारतीय ज्योतिष शास्त्र इस तरह की बारह संक्रांतियां गिनाता है। बारह राशियों के नाम पर इन संक्रांतियों के नाम रखे गए हैं। मसलन, मेष संक्रांति, वृष संक्रांति, मिथुन, कर्क, सिंह, से होते हुए मकर, कुंभ और मीन संक्रांति। विभिन्न क्षेत्रों में इन्हीं संक्रांतियों के आधार पर धार्मिक पर्व, उत्सव भी मनाए जाते हैं। यह दिन कई समुदायों में महीने की पहली अथवा आखिरी तारीख भी होता है। यानी सूर्य एक राशि से दूसरे राशि में प्रवेश करे तो वह संक्रांति है और उस राशि की संक्रांति जिसमें वह जा रहा है। यूं तो सूर्य की स्थिति हर रोज बदलती रहती है, वह जिस स्थान के ऊपर से गुजरता है वहां उसकी किरणें लंबवत पड़ती हैं। यानी ठीक सिर के ऊपर सूर्य होने के कारण दिन के समय वहां परछाई नहीं बनेगी। उस क्षेत्र के लिए यह सबसे गर्म दिनों में एक होता है। कर्क रेखा भारत से होकर गुजरती है। इसलिए कर्क रेखा को छूने के बाद ही गर्मी के प्रकोप से राहत मिलेगी। इसके लिए तैयार रहना होगा, जून के अंत में आने वाली बारिश जितनी घनघोर होगी, सूर्य की गर्मी का प्रकोप उतना ही कम महसूस होगा। फिलहाल सूर्य की इस वार्षिक परेड के अनुकूल खुद को बना कर मौसम का आनंद लें और इन खगोलीय अनुशासनों के विज्ञान प्रेरणा लें।
विषुवत् रेखा की नाप-जोख
भूमध्य रेखा यानी विषुवत् का अक्षाश शून्य माना जाता है। इसकी लम्बाई 40,075,016.6856 मीटर यानी लगभग 40,075 किलो मीटर अथवा 24,901.5 मील है। पृथ्वी भूमध्य रेखा पर थोड़ी से उभरी हुई है, इस रेखा पर पृथ्वी का व्यास (पृथ्वी के बीच के काल्पनिक केंद्र से होकर गुजरती रेखा) 12759.28 किलो मीटर (7927 मील) है, जो ध्रुवों के बीच के व्यास (12713.56 कीलो मीटर, 7900 मील) से 42.72 किलो मीटर अधिक है।