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देश और समाज से जुड़ी हैं प्रो. हांगलू की 'हसरतें' Prayagraj News

काव्य संग्रह हसरतें का विमोचन किया गया। इसे लिखने वाले इलाहाबाद विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. रतन लाल हांगलू हैं। कहा कि कविता के लिए शांत वातावरण जरूरी है।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Published: Tue, 30 Jul 2019 11:10 AM (IST)Updated: Tue, 30 Jul 2019 11:10 AM (IST)
देश और समाज से जुड़ी हैं प्रो. हांगलू की 'हसरतें' Prayagraj News
देश और समाज से जुड़ी हैं प्रो. हांगलू की 'हसरतें' Prayagraj News

प्रयागराज, जेएनएन। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. रतन लाल हांगलू की हिंदी में प्रकाशित प्रथम काव्य संग्रह 'हसरतें' का इविवि के नॉर्थ हाल में विमोचन किया गया। इस दौरान प्रसिद्ध आलोचक विजय बहादुर सिंह ने कहा कि आम आदमी की हसरत उसके रोजमर्रा के जीवन से जुड़ी होती है। हालांकि, प्रो. हांगलू की हसरत देश और समाज से जुड़ी हैं।

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किताबी ज्ञान से नहीं होती शायरी : आलोचक विजय बहादुर

प्रसिद्ध आलोचक विजय बहादुर सिंह नेे कहा कि सिर्फ किताबी ज्ञान से शायरी नहीं होती। शायरी के लिए समाज को देखने का एक नजरिया होना चाहिए। अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ कवि और आलोचक प्रो. राजेंद्र कुमार ने कहा कि उम्मीद और हसरतों से व्यक्ति की जिंदादिली का पता चलता है। जिस समाज में उम्मीद खत्म हो जाए वह समाज मुर्दा समझा जाता है।

कविता एक सामाजिक उत्पाद : कुलपति हांगलू

कुलपति प्रो. रतन लाल हांगलू ने कहा कि कविता एक सामाजिक उत्पाद है। व्यक्ति अपने सामाजिक अनुभव के बिना कविता नहीं लिख सकता। कविता या शायरी लिखने के लिए व्यक्ति को संवेदनशील होने के साथ-साथ समाज की हलचल का भी ध्यान रखना चाहिए। प्रो. हांगलू ने कहा कि उनकी शायरी में निजी अनुभव से ज्यादा सामाजिक अनुभवों का योगदान है। उन्होंने कविता के लिए शांत वातावरण को महत्वपूर्ण माना। कार्यक्रम का संचालन डॉ. धनंजय चोपड़ा, प्रस्तावना प्रो. संतोष भदौरिया और धन्यवाद ज्ञापन डॉ. चित्तरंजन कुमार सिंह ने किया। इस अवसर पर प्रो. हर्ष कुमार, प्रो. राम सेवक दुबे, प्रो. सुनीत द्विवेदी, प्रो. असीम मुखर्जी, प्रो. नरेंद्र शुक्ला, प्रो. एआर सिद्दकी, डॉ. आनंद श्रीवास्तव, डॉ. शैलेंद्र राय, डॉ. मीना झा, डॉ. अमृता, डॉ. दीनानाथ, डॉ. लक्ष्मण, प्रो. सालेहा रसीद, डॉ. शांति चौधरी, डॉ. जनार्दन आदि मौजूद रहे।

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