जन्मतिथि पर विशेष : नेहरू से पैसा मिलने पर दिल्ली गए थे सांस्कृत्यायन, पुस्तक में प्रयागराज से आत्मीय जुड़ाव दर्शाया
राहुल सांकृत्यायन का प्रयागराज से विशेष जुड़ाव था। साहित्यिक गोष्ठियों में शिरकत करने के लिए उनका कुछ सालों के अंतराल में प्रयागराज आना होता था। सूर्यकांत त्रिपाठी निराला महादेवी वर्मा आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी पं. देवीदत्त शुक्ल अज्ञेय जैसे रचनाकारों से उनका आत्मीय लगाव था।
प्रयागराज, जेएनएन। हिंदी के प्रमुख साहित्यकार, घुमक्कड़ी स्वभाव के राहुल सांकृत्यायन का प्रयागराज से विशेष जुड़ाव था। साहित्यिक गोष्ठियों में शिरकत करने के लिए उनका कुछ सालों के अंतराल में प्रयागराज आना होता था। सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला, महादेवी वर्मा, आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी, पं. देवीदत्त शुक्ल, अज्ञेय जैसे रचनाकारों से उनका आत्मीय लगाव था। उन्होंने अपनी पुस्तक 'मेरी जीवन यात्रा में प्रयागराज के अपने संस्मरणों को विशेष स्थान दिया है। राहुल पहली बार चार सितंबर 1937 को प्रयाग आए। छह सितंबर को इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्रों ने उनका 'मेरी कमजोरियां शीर्षक व्याख्यान रखा था। इसकी अध्यक्षता पं. जवाहरलाल नेहरू ने किया था।
समालोचक रविनंदन सिंह बताते हैं कि व्याख्यान के बाद सांकृत्यायन जी को दिल्ली की यात्रा करनी थी, किंतु उनके पास किराया के लिए पैसे कम थे। नेहरू जी को कहीं से इस बात का पता चल गया तो उन्होंने कुछ रुपये उपलब्ध कराए। उन्हें नेहरू से पैसे लेना उचित नहीं लगा, लेकिन पैसे लेने उनकी मजबूरी थी।
नौ अप्रैल को आजमगढ़ में जन्म
आजमगढ़ जिला के रानी की सराय के निकट पंदहा गांव में नौ अप्रैल 1893 को जन्मे राहुल सांकृत्यायन एक स्थान पर कभी नहीं टिके। वरिष्ठ साहित्यकार प्रो. राजेंद्र कुमार कहते हैं कि उनके जीवन का मूलमंत्र गतिशीलता थी। इसी से उनकी छवि खोजी रचनाकार की बनी। यही कारण है कि बौद्ध धर्म से झुकाव होने पर जापान, कोरिया, चीन, मास्को की यात्रा की। हजारों ग्रंथों को संरक्षित करके उसे जन-जन तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई।
प्रयागराज में 21 दिन में पूरा हुआ उपन्यास
राहुल सांकृत्यायन 12 जुलाई 1944 को मुंबई से चलकर प्रयागराज आए। प्रयाग स्टेशन पर रात 10.30 बजे पहुंचे। रविनंदन सिंह बताते हैं कि राहुल जी ने 'जय यौधेय नामक उपन्यास लिखने की योजना बनाई। वह यह उपन्यास बोल कर लिखवाते थे। उनके लिए लिखने का काम प्रयाग के सत्यनारायण दुबे ने किया। 26 जुलाई से उपन्यास लेखन का सिलसिला शुरू हुआ और 16 अगस्त को मात्र 21 दिन में 'जय यौधेय पूरा हो गया। उसके बाद प्रयाग में ही उन्होंने अपनी दूसरी पुस्तक 'भागो नहीं दुनिया को बदलो शुरू की। यह पुस्तक 17 अगस्त को शुरू हुई और 28 अगस्त को मात्र 11 दिन में पूरी हो गयी।
देवीदत्त से मिलकर हुए भावुक
राहुल सांकृत्यायन अक्टूबर 1956 में प्रतिष्ठित पत्रिका 'सरस्वती के पूर्व संपादक पं. देवीदत्त शुक्ल से मिलकर भावुक हो गए थे। राहुल ने उनके बारे में लिखा कि 'लम्बे समय से शुक्ल जी की आंखें जाती रहीं, तीन साल से वह इसी स्थिति में थे। जीवनभर साहित्य की सेवा करते आज जिस तरह का जीवन उन्हेंं बिताना पड़ रहा था, इससे मुझे दु:ख हो रहा था। वे द्विवेदी जी के बाद सबसे अधिक समय तक 'सरस्वतीÓ के कर्णधार थे। मुझे तो उनका और भी अधिक कृतज्ञ होना था क्योंकि देर से जब मैं हिंदी पत्रिकाओं के लिए लेख लिखने लगा तो सबसे पहले संबंध सरस्वती से ही शुरू हुआ। शुक्ल जी ने मेरे लेखों का स्वागत ही नहीं किया बल्कि आगे के लिए मांग भी करते रहे।