इलाहाबाद विश्वविद्यालय प्रॉक्टर की नोटिस से छात्रसंघ चुनाव की प्रक्रिया कठघरे में
अगर अर्हता नहीं थी तो इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ चुनाव में महामंत्री पद पर शिवम सिंह ने कैसे नामांकन किया था। स्क्रीनिंग कमेटी ने क्यों दे दी थी रिपोर्ट। यह सब सवाल हैं।
प्रयागराज : ताराचंद हॉस्टल में वॉश आउट के बाद से इलाहाबाद विश्वविद्यालय का माहौल एक बार फिर गरमा गया है। जिस मुद्दे को तूल देकर छात्रसंघ महामंत्री शिवम सिंह को नोटिस दिया गया, वही मुद्दा इविवि प्रशासन के गले की फांस बन गया है।
दरअसल, इलाहाबाद विश्वविद्यालय प्रशासन की ओर से सोमवार को ताराचंद छात्रावास से अवैध छात्रों को बाहर किया गया था। इसमें छात्रसंघ महामंत्री शिवम सिंह समेत चार लोगों को बाहर करने के साथ काली सूची में डाल दिया गया था। इसके अलावा इनके चरित्र प्रमाण पत्र निरुद्ध करने और डिग्री रोके जाने की कार्रवाई का निर्णय लिया गया।
पुलिस ने छात्रसंघ महामंत्री को गिरफ्तार किया था
इस मामले में अगले दिन प्रॉक्टर दफ्तर पहुंचे छात्रसंघ महामंत्री शिवम सिंह पर प्रॉक्टर प्रोफेसर रामसेवक दुबे ने धमकी देने का आरोप लगाते हुए पुलिस से शिकायत की। इसके अलावा विवि परिसर में प्रवेश प्रतिबंधित कर दिया गया। मामले में पुलिस ने गिरफ्तार किया था। सूचना पर पहुंचे छात्रसंघ उपाध्यक्ष अखिलेश यादव को भी पुलिस ने पकड़ लिया था। दूसरे दिन इविवि प्रशासन की ओर से नोटिस जारी की गई, जिसमें 29 अगस्त 2017 का हवाला देते हुए यह कहा गया है कि शिवम का परीक्षाफल रोक दिया गया था। बाद में शिवम की ओर से सौ रुपये का अर्थदंड देने पर परीक्षाफल घोषित किया गया था।
इविवि छात्रसंघ के महामंत्री पद को शिवम ने किया था नामांकन
वर्ष 2018 में शिवम ने छात्रसंघ के महामंत्री पद के लिए नामांकन किया था। नियमों के मुताबिक किसी भी उम्मीदवार के नामांकन के बाद बाकायदा स्क्रीनिंग कमेटी बनाई जाती है। वह परीक्षा नियंत्रक की ओर से परीक्षा के दौरान किसी कार्रवाई और प्रॉक्टर से भी पढ़ाई के दौरान की किसी तरह कार्रवाई के बाबत जांच करती है। इसके अलावा थाने से भी आपराधिक गतिविधि की जानकारी ली जाती है। स्क्रीनिंग कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर ही वैध प्रत्याशियों की सूची जारी की जाती है। शिवम सिंह को गई नोटिस में इस बात का जिक्र भी किया गया है। ऐसे में अब यह सवाल उठ रहा है कि यदि शिवम पर विवि प्रशासन की ओर से कार्रवाई की गई थी तो उनके नामांकन को वैध कैसे पाया गया।
पहले भी विवादों में रही चुनाव प्रक्रिया
इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के अध्यक्ष दिनेश यादव के निर्वाचन को भी अवैध ठहराया गया था। मामले में उनके निकटतम प्रतिद्वंदी रहे अभिषेक सिंह सोनू ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर चुनौती भी दी। याचिका पर न्यायमूर्ति अरुण टंडन सुनवाई कर रहे हैं। आरोप है कि दिनेश यादव का निर्वाचन अवैध था, क्योंकि नियमों को दरकिनार कर चुनाव लडऩे की अनुमति प्रदान की गई। दरअसल, वर्ष 2012 में दिनेश यादव चुनाव लडऩे से पूर्व एक परीक्षा में फेल हो चुके हैं। उनको एक वर्ष के लिए अनुशासनात्मक कार्रवाई करते हुए डिबार भी किया जा चुका था। बाद में विश्वविद्यालय प्रशासन ने उनको परीक्षा में बैठने की अनुमति दे दी थी।
कहना है याची का
याची का कहना है कि नियमानुसार ऐसा छात्र जो फेल हो चुका हो या जिसके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई हो चुकी हो, चुनाव नहीं लड़ सकता है। इसके अलावा चुनाव लडऩे की आयुसीमा का मुद्दा भी उठाया गया है। याची के मुताबिक छात्रसंघ अध्यक्ष चुनाव लडऩे की आयु पार कर चुके थे।
इविवि के चीफ प्राक्टर बोले
इलाहाबाद विश्वविद्यालय के चीफ प्राक्टर प्रो. रामसेवक दुबे कहते हैं कि मैंने जो नोटिस दी है वह सौ फीसद सत्य है। उसमें कुछ भी गलत नहीं है। हो सकता है कि नामांकन के दौरान तथ्य छिपाए गए हों। प्रॉक्टर ऑफिस से रिपोर्ट कैसे लगी यह तत्कालीन प्रॉक्टर ही बता सकते हैं।
हलफनामे में तथ्यों को छिपाया गया था : प्रो. उपाध्याय
इविवि के तत्कालीन चीफ प्राक्टर प्रो. एचएस उपाध्याय कहते हैं कि हलफनामे में अपराधिक कृत्य के बारे में जानकारी नहीं दी गई थी। तथ्यों को छिपाया गया था। सभी प्रत्याशियों के बारे में जांच कर पाना मुश्किल है। बाकी हमें याद नहीं है। कुलानुशासक की ओर से जो आदेश आया होगा, उसी निर्देश के तहत काम किया गया होगा। दूसरा यह कि मुझे आकस्मिक प्रॉक्टर पद की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। ऐसे में कार्यालय से संबंधित ज्यादा जानकारी मेरे पास नहीं थी।