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पं. नेहरु की यादों को संजोए है रूरे गांव का पीपल वृक्ष

केंद्र में छह दशक तक शासन करने वाली कांग्रेस सरकार भी अपने प्रथम प्रधानमंत्री के राजनीति की प्रथम पाठशाला का वह विकास नहीं कर पाई जिसका उसे अधिकार था। इस बात को लेकर ग्रामीणों को मलाल है।

By JagranEdited By: Published: Wed, 14 Nov 2018 10:35 AM (IST)Updated: Wed, 14 Nov 2018 10:35 AM (IST)
पं. नेहरु की यादों को संजोए है रूरे गांव का पीपल वृक्ष
पं. नेहरु की यादों को संजोए है रूरे गांव का पीपल वृक्ष

प्रयागराज : देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरु की बुधवार को जयंती है। देश भर में धूमधाम से यह जयंती मनायी जाएगी। यह दिन बेल्हा के लिए कुछ ज्यादा ही खास है। प्रतापगढ़ जिले से पं. नेहरू के रिश्ते की खुशबू आज भी यहां बसती है। आखिर हो भी क्यों न, पं. नेहरू का आगमन पट्टी क्षेत्र में उस समय हुआ था, जब राष्ट्र गुलामी की जंजीरों में जकड़ा हुआ था।

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राष्ट्र को अंग्रेजों के चंगुल से मुक्त कराने के लिए देशवासियों में आजादी का बिगुल फूंकने पं. जवाहर लाल नेहरू का आगमन पट्टी नगर से चार किलोमीटर दूर रूरे गांव में जून 1920 में उस समय हुआ था जब ज्येष्ठ की दोपहरिया तप रही थी। लू के थपेड़े इंसानों का रास्ता रोक रहे थे। उसी चिलचिलाती धूप में पं. नेहरू पैदल ही रूरे गांव पहुंचे और उन्हें यह देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ कि जय सीताराम के एक उद्घोष पर चारों ओर से जय सीताराम का उद्घोष करती चिथड़ों में लिपटी किसानों की भीड़ आजादी के दीवानों के रुप में उमड़ने लगी। किसानों के इस भीड़ के अगुवा थे बाबा रामचन्द्र, जिन्हे अंग्रेज अवध का तूफान कहा करते थे।

रूरे गांव के ठाकुर सहदेव ¨सह, ठाकुर ¨झगुरी ¨सह तथा अन्य गांवों से भगवानदीन वर्मा, अयोध्या प्रसाद व काशी प्रसाद जैसे सैकड़ों किसानों का एकत्र कर किसान सभा के नाम से संगठन स्थापित कर देश आजाद कराने के लिए किसान आंदोलन की ऐसी शुरुआत किया कि उससे प्रभावित होकर पं. जवाहर लाल नेहरू पट्टी क्षेत्र के रूरे गांव आए और पीपल के उस वृक्ष, जो आज भी आजादी के दीवानों की कहानी बयां करता हुआ खड़ा है, के नीचे किसानों के साथ एक सभा की और नेहरू जी ने यह स्वीकार किया कि इन किसानों की बदौलत उनकी झेंप निकल गई और वह सभाओं में बोलना शुरू किए। मेरी किताब में इस बात का उल्लेख स्वयं नेहरू जी ने किया है।

नेहरू जी के सभा के बाद से गांव का अवध किसान आंदोलन प्रांत के तत्कालीन 12 जनपदों में फैल गया। चारों तरफ किसान राष्ट्र के प्रति अपनी कुरबानी देने के लिए अपनी जान हथेली पर लेकर जयसीताराम के उद्घोष के साथ संगठित होकर जगह-जगह आंदोलन कर अंग्रेजों को भगाने के लिए मजबूर कर दिया। पं. जवाहर लाल नेहरू के प्रवास के दौरान हुई सभा स्थल एवं पीपल का वह वृक्ष, जो उस 1920 की किसान सभा का गवाह था आज भी वैसे ही खड़ा है। इस स्थल के विकास के लिए किसी ने विशेष प्रयास नहीं किया। केंद्र में छह दशक तक शासन करने वाली कांग्रेस सरकार भी अपने प्रथम प्रधानमंत्री के राजनीति की प्रथम पाठशाला का वह विकास नहीं कर पाई जिसका उसे अधिकार था। इस बात को लेकर ग्रामीणों को मलाल है।


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