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Examination Phobia से परेशान बच्‍चे को लेकर अभिभावक घबराएं नहीं, बच्चों का आत्मविश्वास बढ़ाएं, दें यह टिप्‍स

परीक्षाओं की घोषणा हो गई है लेकिन जिन बच्चों ने साल भर लिखने के लिए पेन ही नहीं उठाया है तो प्रश्नों के उत्तर लिख कैसे सकेंगे। प्रश्न के उत्तर कितने शब्दों में और कैसे लिखना है यह भी उन्हें नहीं बताया गया है। ऐसे में आत्मविश्वास कम हुआ है।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Published: Sat, 06 Mar 2021 08:24 AM (IST)Updated: Sat, 06 Mar 2021 08:24 AM (IST)
Examination Phobia से परेशान बच्‍चे को लेकर अभिभावक घबराएं नहीं, बच्चों का आत्मविश्वास बढ़ाएं, दें यह टिप्‍स
कोरोना से बच्‍चों का जीवन एकांकी हो गया है। परीक्षा को लेकर परेशान हैं, अभिभावक मनौवैज्ञानिक की सलाह मानें।

प्रयागराज, जेएनएन। कोरोना कॉल में ऑनलाइन पढ़ाई ने बच्चों के विजन को प्रभावित किया है। एक कमरे में सिमट जाने से उनमें एकांकीपन घर कर गया है। अब परीक्षा के दौर में उनको तमाम दुश्वारियां पेश आ रही हैं। ऐसेे तमाम मामले मनोवैज्ञानिकों तक पहुंच रहे हैं। अपने तई वे बच्चों को उनकी समस्या से उबारने की कोशिश कर रहे हैं।

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एकांकी जीवन बिताने से समझने व करने की क्षमता को क्षति

प्रयागराज की मनोविज्ञानशाला से लंबे समय तक जुड़े रहे मनोवैज्ञानिक डा. कमलेश तिवारी कहते हैं कि कोविड-19 ने जनजीवन को क्षति पहुंचाने के साथ शिक्षा प्रणाली को भी प्रभावित करने का काम किया है। कोरोना संक्रमण की वजह से स्कूल बंद कर दिए गए थे। इसका परिणाम यह हुआ कि बच्चों के संबंध अपने स्कूल के साथ ही टीचर्स व दोस्तों से खत्म हो गया। उनका जीवन एकांकी हो गया। उनकी दुनिया मोबाइल फोन, लैपटॉप व टेलीविजन तक सिमट कर रह गई है। एक तरह से आइसोलेटेड जीवन बिता रहे हैं।

आइसोलेट होने से थम गया बच्चों की क्षमता का विकास

डा. तिवारी कहते हैं कि दरअसल स्कूल कॉलेज बंद हो जाने से बच्चे घरों में कैद होकर रह गए हैं। इससे उनकी सोचने-विचारने और करने की क्षमता बुरी तरह से प्रभावित हुई है। कॉगनेटिव (निश्चित पाठ्यक्रम) और नॉन कॉगनेटिव (पाठ्यक्रम के इतर) क्रियाकलाप करने में उनको परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। उनका कहना है कि बच्चे स्कूल जाते थे तो उनको किताबें पढऩा, लिखना, प्रश्नों के उत्तर लिखने की विधियां बताई जाती थीं। अन्य पाठ्य सहगामी क्रियाएं भी होती थीं जिससे बच्चा सीखता था। किंचित स्कूलों ने मोबाइल, टीवी आदि माध्यम से उनको जोडऩे की कोशिश की किंतु वे नाकाफी ही रहे।

परीक्षा तिथि की घोषणा के बाद से तमाम बच्चे हैं परेशान

परीक्षाओं की घोषणा हो गई है लेकिन जिन बच्चों ने साल भर लिखने के लिए पेन ही नहीं उठाया है तो प्रश्नों के उत्तर लिख कैसे सकेंगे। प्रश्न के उत्तर कितने शब्दों में और कैसे लिखना है यह भी उन्हें नहीं बताया गया है। ऐसे में वह घबरा रहे हैं, उनमें आत्मविश्वास कम हो रहा है। परीक्षा से दूर भागने, गुस्सा और चिड़चिड़ेपन की प्रवृत्ति बढ़ रही है। इसके पीछे कोरोना संक्रमण ही है।  

अभिभावक बढ़ाएं अपने बच्चों में आत्मविश्वास, दें यह सलाह

बच्चों को उनकी समस्या से उबारने का काम अभिभावकों को करना होगा। वह बच्चों की निगरानी करें और समय समय पर बेहतर करने की सलाह दें। यह देखें की उनका बच्चा समय से सोए, जागे और पढ़े। हर विषय को बराबर समय दें। कठिनाई के स्तर के आधार पर पढऩे के लिए विषयों को पढऩे का वक्त तय करें। जब तरोताजा हों तो कठिन विषय पढ़े फिर दूसरे विषय। निर्धारित पाठ्यक्रम से अपने से प्रश्न बनाएं और उनको परीक्षा कक्ष की तरह निर्धारित समय में हल करने की कोशिश करें। अपने उत्तर का मूल्यांकन करें। गलत उत्तरों को सही करने में टीचर, मित्रों या अभिभावक की मदद लें। पिछले सालों के प्रश्न पत्र देखकर प्रश्न बनाएं व उसके उत्तर लिखेें, इससे लेखन भी अच्छा होगा, आत्मविश्वास भी बढ़ेगा।


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