उत्तर प्रदेश की पंचायतों में प्रशासक नियुक्ति संशोधन कानून को हाई कोर्ट में चुनौती, सरकार को जवाब तलब
उत्तर प्रदेश पंचायती राज संशोधन अधिनियम 2000 को लखनऊ खंडपीठ के समक्ष चुनौती दी गई थी। लखनऊ पीठ ने संशोधन को असांविधानिक घोषित कर दिया है। प्रशासक या कमेटी का कार्यकाल छह माह पूरा होने तक नया चुनाव कराना उचित नहीं है।
प्रयागराज, जेएनएन। इलाहाबाद हाई कोर्ट में उत्तर प्रदेश की पंचायतों में प्रशासक नियुक्त करने के संशोधन कानून की वैधता को चुनौती दी गई है। कोर्ट ने राज्य सरकार से चार सप्ताह में जवाब दाखिल करने को कहा है। यह आदेश न्यायमूर्ति मनोज मिश्र व न्यायमूर्ति आरएन तिलहरी की खंडपीठ ने पंचायत राज ग्राम प्रधान संगठन की याचिका पर दिया है।
याची का कहना है कि उत्तर प्रदेश पंचायत राज संशोधन अधिनियम 2000 के तहत पंचायतों में प्रशासनिक समिति में ऐसे सदस्यों की नियुक्ति की जाती है, जो ग्राम प्रधान होने की योग्यता रखते हों या फिर प्रशासक नियुक्ति की व्यवस्था है। सामान्य रूप से इनकी नियुक्ति छह माह के लिए होती है या विशेष परिस्थिति में इनके कार्यकाल को बढ़ाया भी जा सकता है।
उत्तर प्रदेश पंचायती राज संशोधन अधिनियम 2000 को लखनऊ खंडपीठ के समक्ष चुनौती दी गई थी। लखनऊ पीठ ने संशोधन को असांविधानिक घोषित कर दिया है। प्रशासक या कमेटी का कार्यकाल छह माह पूरा होने तक नया चुनाव कराना उचित नहीं है। वहीं, प्रदेश सरकार की ओर से अधिवक्ता सुधांशु श्रीवास्तव ने कोर्ट को बताया कि लखनऊ पीठ के आदेश को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई थी। इस दौरान अध्यादेश पारित कर दिया गया।
बाद में सुप्रीम कोर्ट ने याचिका अर्थहीन होने के आधार पर खारिज कर दी। हाई कोर्ट की ही खंडपीठ ने 30 अप्रैल तक पंचायत चुनाव कराने का निर्देश दिया है। ऐसे में याचिका पोषणीय नहीं है। न्यायालय ने कहा कि याचिका में कई महत्वपूर्ण प्रश्न उठाए गए हैं, इसलिए प्रदेश सरकार चार सप्ताह में जवाब दाखिल करे। साथ ही प्रदेश के महाधिवक्ता को भी नोटिस के माध्यम से अवगत करने का निर्देश दिया है।